तुम सम बनने हेतु मुझे, पुरूषार्थ बहुत करना होगा। बाहृ और आभ्यंतर तप की, अग्नी में तपना होगा। तभी खान सम सोना यह बन, जाएगा कुन्दन सम है। संसारी और सिद्धों का प्रभु, आज यहां सम्मेलन है।।2।। निज को पूज्य बनाने में प्रभु, की पूजा इस साधन है। जिनवर के गुणगान से समझो, होता निज आराधन है। कर्मों की श्रृंखला का होता, इन सबसे ही छेदन है। संसारी औ सिद्धों का प्रभु, आज यहां सम्मेलन है।।3।। ग्रह का चक्र मेरी आत्मा के, संग अनादीकाल से है। उनमें से इक बुध ग्रह है, जिससे अशांत मुझ तनम न है।। उसी की शांती हेतु ‘‘चन्दना’’ रची नवग्रह पूजन है। संसारी और सिद्धों का प्रभु, आज यहां सम्मेलन है।।4।। ऊँ ह्मीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्रय जयमाला पूर्णाध्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
‘दोहा-