।। आओ मंदिर चले ।।
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प्रश्न-110 क्या बिना आभूषण पहने जिनेन्द्र का पूजन अभिषेक नहीं हो सकता?

उत्तर- ऐसे अनिवार्य नहीं है कि बिना श्रृंगार के पूजन नहीं होगी। प्रतिदिन जो नित्यमह पूजन हम करते हैं यदि आभूषण उपलब्ध हो य पहनने में सहजता हो तो पहनकर ही करना चाहिए। अन्यथा शुद्ध धोती, दुपट्टे पहनकर भी कर सकते हैं। परंतु महापूजा विधाान आदि आभूषणों से अलंकृत होकर करने की परम्परा आज भी है और होनी भी चाहिए। फिरभी व्रती श्रावक, जो शरीर के संस्कारों से रहित हैं, अखण्ड ब्रह्मचर्य आदि व्रतों का धारी है, वह आभूषण पहनकर पूजन न करें।

प्रश्न-111 पूजन में धोती, दुपट्टा ही पहनना क्यों आवश्यक है?

उत्तर- वस्त्रों का जीवन में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान हैं वस्त्रों के माध्यम से विचारों में काफी प्रभाव पड़ता हैं जैसे वस्त्र होते हैं वैसे भाव और विचार सहज ही बनने लगते हैं। जिस प्रकार शादी के समय पहने गए पैण्ट, शर्ट आदि से भाव सांसारिक विषय वासनामयी होते हैं। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली लड़कियां यदि बाजार से गुजरती हैं तो उसे देखकर लोगों में पूज्यता के भाव बनते हैं और यदि अश्लील पारदर्शी वस्त्र पहनती हैं तो विकारों को जन्म देने में कारण बनती हैं। बच्चा यदि मिलिट्री वेश पहन लेता है तो अपने-आप उसका सीना जवानों की तरह तन जाता है। इसलिए धोती, दुपट्टा पहनान आवश्यक है।

प्रश्न-112 अभिषेक और प्रक्षाल में क्या अंतर है?

उत्तर- अभिषेक-जिन प्रतिमा का शीर्ष भााग (सिर) से सुगंिधत जल आदि से हवन करना अभिषेक है।

प्रक्षाल-जिनेन्द्र भगवान के चरणों में जल धारा आदि छोडकर चरण पखारना प्रक्षाल है। प्रतिमा का गीले कपड़े से परिमार्जन करना भी प्रक्षाल है। जैसे प्रतिदिन गोम्मटेश्वर बाहुबली के चरणों में प्रक्षाल होता है। अभिषेक तो बारह साल बाद होता है।

प्रश्न-113 अभिषेक कितने प्रकार का होता है?

उत्तर- अभिषेक दो प्रकार का होता है-

1 - पंचामृत अभिषेक- (उमास्वामी, श्रावाकाचार, सुनन्दी श्रावकाचार, पूज्यपाद महार्चनवा, गुणभद्र आचार्य के मतानुसार)

2 - जल से अभिषेक- (माघनन्दि आचार्य) के मतानुसार

प्रश्न-114 प्रतिदिन कौन-सा अभिषेक करना चाहिए?

उत्तर- दोनों अभिषेक की परम्परा आज प्रचलित है व आगम मान्य है। जिस अभिषेक से परिणामों में निर्मलता आए, भाव लगे वही अभिषेक विवेकपूर्वक करना चाहिए।

प्रश्न-115 अभिषेक किस प्रतिमा का होता है?

उत्तर- अभिषेक चल (अस्थिर) और अचल (स्थिर) दोनों प्रतिमाओं का होता है। अचल प्रतिमा को वेदी से स्थानान्तरित नहीं करते हैं, उनका अभिषेक वेदी पर ही किया जाता हैं।

प्रश्न-116 अभिषेक करते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर- अभिषेक करते समय ध्यान देने योग्य बातें-
अभिषेकत्र्ता स्नानादि करके शुद्ध धुले हुए धोती, दुपट्टे पहनें। पैण्ट, शर्ट, कुत्र्ता, पाजामा आदि पहनकर अभिषक न करें।
अभिषेक करने वाले की उम्र आठ वर्ष से कम और अस्सी वर्ष से ज्यादा न हो।
अभिषेक करते समय नाक, कान, मुंह आदि में अंगुली न डाले। नाभि के नीचे का भाग स्पर्श न करें।
सर्दी, जुकाम, बुखार, चर्मरोग, सफेद दाग, खुजली, दाद, चोट लगने पर खून, पीव, मवाद आदि निकलने पर अभिषेक न करें।
अभिषेक करते समय जिन प्रतिमा का स्थान नाभि से ऊंचा होना चाहिए।
अभिषेक करते समय सिर पर दुपट्टा डाल लेना चाहिए।
अभिषेक करने हेतु वेदी से प्रतिमा जी निकालते समय प्रतिमा जी की गर्दन, कमर, पेट एक हाथ आदि अंग पकड़कर नहीं उठाना चाहिए। इससे असाता वेदनीय कर्म का आश्रव होता है। प्रतिमा जी को विनयपूर्वक अपने दोनों हाथों से एक हाथ भगवान के पद्मासन पर और एक हाथ भगवान की पीठ पर रखकर प्रतिमा जी को सिर पर रखकर अभिषेक के सिंहासन पर विराजमान करना चाहिए।
जिन प्रतिमा को अध्र्य चढ़ाने के उपरांत ही वेदी से उठाना चाहिए एवं पुनः वेदी पर विराजमान करने के पूर्व ही अध्र्य चढ़ाना चाहिए।
अभिषेककत्र्ता के वस्त्र धोती, दुपट्टा गृह कार्य में उपयोग न हुए हो, दूसरों के उतारे हुए वस्त्रों से या अकेले एक धोती मात्र से ही अभिषेक नहीं करना चाहिए। कम-से-कम दो वस्त्र धोती, दुपट्टा होना चाहिए।

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प्रश्न-117 अभिषेक करते समय मुख किस दशा में और क्यों होना चाहिए?

उत्तर- दिशाओं का जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः हमें पूजन, सामयिक करते समय प्रतिमा जी का मुख पूर्व की ओर है तो अभिषेककत्र्ता का मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए और यदि प्रतिमा जी का मुख उत्तर की ओर है तो अभिषेककत्र्ता का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर प्रतिमा और पूजक दोनों के मुख नहीं होना चाहिए। क्योंकि उत्तर दिशा को विघ्नान्तक माना है अर्थात आने वाले विघ्नों की शांति। पूर्व दिशा को यमान्तक अर्थात मृत्यु को जीतने वाला। दक्षिण दिशा को प्रज्ञान्तक अर्थात बुद्धि प्रज्ञा की हानि। पश्चिम दिशा को पद्मान्तक अर्थात मन और मस्तिष्क को कमजोर करने वाली होती है एवं पश्चिम और दक्षिण दिशाएं ऋणात्मक हैं जो ऊर्जा का शोषण करती हैं और पूर्व व उत्तर दिशाएं धनात्मक होती हैं और शक्ति का पोषण करती है।

प्रश्न-118 पूजन करने वालों का मुख किस दिशा में होना चाहिए?

उत्तर- पूजन करने वालों का मुख पूज्य अथवा प्रतिमा जी की ओर देव-शास्त्र-गुरू की तरफ होना चाहिए।

प्रश्न-119 पूजन अभिषेक में प्रयोग किए जाने वाले अष्ट द्रव्य कौन-कौन से हैं?

उत्तर- जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फल।

प्रश्न-120 अष्ट द्रव्य कैसे तैयार किए जाते हैं?

उत्तर- कुंआ, नदी, झरना आदि से शुद्ध पानी को छानकर उसे प्रासुक करके चावल, पुष्प, फल आदि को अच्छी तरह तीन बार धो लेना चाहिए। केशर, कपूर, चन्दन तीनों केा पत्थर पर घिसकर एक कटोरी में एकत्र कर लेना चाहिए। चावल के तीन बराबर भाग करके एक भाग चंदन से रंग कर पीले (केसरिया) करके पुष्प बनाना चाहिए एवं एक भाग को बिना रंग श्वेत अक्षत बना लेना चाहिए एवं एक भाग को अष्ट द्रव्य के मिश्रण स्वरूप अघ्र्य बना लेना चाहिए। एवं नैवेद्य, धूप (चंदन चूरा की) व फल धाोकर रखना चहिए।

प्रश्न-121 जिन चैत्य किसे कहते हैं?

उत्तर- चैत्य का अर्थ प्रतिमा होता है। जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को जिनचैत्य कहते हैं।

प्रश्न-122 जिनचैत्यालय किसे कहते हैं?

उत्तर- चैत्यालय दो शब्दों सेमिल करबना हैं

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