।। आओ मंदिर चले ।।
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आलस्य करना (नाभि के नीचे के अंग) नहीं खुजाना चाहिए।
गद्दी, तकिया व दीवार का सहारा नहीं लेना चाहिए।
पैर पर पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए।
पगड़ी, साफा आदि नहीं बांधना चाहिए।
स्नान, उबटन, तेल, कंघा नहीं करना चाहिए।
सेण्ट, लिपस्टिक, नैल पालिश, क्रीम पाउडर नहीं लगाना चाहिए।
पंखा व रूमाल आादि से हवा नहीं करना चाहिए।
आग नहीं तापना चाहिए।
चमर, छत्र अपने ऊपर नहीं लगाना चाहिए।
दाढ़ी, मूंछ पर ताव नहीं देना चाहिए।
जूता, चप्पल, मोजा पहनकर नहीं आना चाहिए।
शर्त व गप्प आदि नहीं लगाना चाहिए।
फूलों की माला, हार आादि पहनकर नहीं आना चाहिए।
चमड़े की वस्तु को मदिर में नहीं लाना चाहिए।
रोना, बिलखना, हिचकी लेना नहीं चाहिए।
गाली, भंड वचन या कटु वचन कहना नहीं चाहिए।
सब्जी, अनाज, पापड आदि मंदिर में नहीं सुखाना चाहिए।
बिना पैर धोए मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
पान,तम्बाकू, भांग, गुटका, मसाला आदि लाना या खना नहीं चाहिए।
चमड़े की वस्तु पहनकर मंदिर में नहीं आना चाहिए।
भोजन, पान आदि नहीं करना चाहिए।
औषधि, गोली आदि नहीं खाना चाहिए।
प्रसाद आदि मंदिरों में न खाना ओर न ही बांटना चाहिए।
होली आदि मंदिर में नहीं खेलना चाहिए।
पटाखे आदि मंदिर में नहीं फोड़ने चाहिए।
संकल्प, विकल्प नहीं करना चाहिए।
बैर व ईष्र्या भाव नहीं रखना चाहिए।
खाली हाथ मंदिर नहीं आना चाहिए।
राजादिक के भय से छिपना नहीं चाहिए।
झूठ गर्हित अप्रिय वचन नहीं कहना चाहिए।
पशु-पक्षी मंदिर में नहीं पालना चाहिए।
रिश्वत, घूस आदि लेकर मंदिर में नहीं आना चाहिए।
शस्त्र आदि लेकर मंदिर में नहीं आना चाहिए।
विवाह-सगाई संबंधी चर्चा नहीं करना चाहिए।
उधार लेन-देन किसी से नहीं करना चाहिए।
इलायची, लौंग, मसाला आदि नहीं खाना चाहिए।
लड़ाई, झगड़ा, क्लेश, विसंवाद नहीं करना चाहिए।
बिना हाथ धोए शास्त्र व गंधोदक लेना व छूना नहीं चाहिए।
चढ़ा हुआ द्रव्य खरीदना व बेचना (छूना) नहीं चाहिए।
जुहार, मुजरा, बन्दगी आदि मंदिर में नहीं करना चाहिए।

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अन्य व्यक्ति से मांगकर द्रव्य नहीं चढ़ाना चाहिए।
दर्शन करते हुए व्यक्ति के सामने खड़े होकर दर्शन नहीं करना चाहिए।
दूसरों को बाधा हो इतनी जोर से नहीं बोलना चाहिए।
शास्त्र मालादि अनुचित स्थान में रखना नहीं चाहिए।
देव, शास्त्र, गुरू से ऊंचे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए।
विकारोत्पन्न करने वाले चित्र लगाना व लगवाना नहीं चाहिए।
बिना शुद्ध वस्त्र पहनकर गर्भगृह में प्रवेश करना नहीं चाहिए।
शास्त्र, प्रतिमा आदि को नाभि के नीचे के स्थान से स्पर्शित नहीं करना चाहिए।
सिल्क व मखमल के वस्त्र पहनकर नहीं आना चाहिए।
मंदिर में कोई भी कार्य अयत्नाचारपूर्वक नहीं करना चाहिए।
मंदिर में आते वक्त, परिक्रमा लगाते समय असावधानी से नहीं चलना चाहिए।

प्रश्न-45 शास्त्र स्वाध्याय (सभा) में कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?

उत्तर- शास्त्र को पैर पर रखकर नहीं पढ़ना चाहिए।
शास्त्र को नाभि कके नीचे के अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिए।
शास्त्र के पन्ने हाथ में थूक लगााकर पलटना नहीं चाहिए।
शास्त्र सभा में बाद में आकर आगे बैठना नहीं चाहिए।
शास्त्र सभा में दीवार से सहारा लेकर बैठना नहीं चाहिए।
शास्त्र सभा में आगे पैर फैलाकर बैठना नहीं चाहिए।
शास्त्र पढ़ते समय हंसी-मजाक नहीं करनी चाहिए।
शास्त्र सभा में इधर-उधर की बातें नहीं करना चाहिए।
हाथ-पैर धोकर शास्त्र को स्पर्श करना चाहिए।
जब तक शास्त्र पढ़े तब तक मन के अन्य सांसरिक विकल्पों को दूर रखनी चाहिए।
शास्त्र स्वाधय का लक्ष्य ज्ञान और वैराग्य की वृद्धि हो, प्रसिद्धि नहीं होना चाहिए।
शास्त्र स्वाध्याय के समय शब्दों के उच्चारण एवं अर्थ स्पष्ट होना चाहिए।
शास्त्र सभा में गुरू निंदा व विसंवाद नहीं करना चाहिए।

प्रश्न-46 गुरू के निकट कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?

उत्तर- गुरू के निकट व्यर्थ की गपशन मत करो।
गुरू के निकट किसी दूसरे की निंदा मत करे।
गुरू से अविनय से न बोलो।
गुरू के समक्ष पैर पर पैर रखकर मत बैठो।
गुरू के समक्ष छल-कपट मत करो।
हमेशा गुरू के पीछे चलो।
गुरू से कुछ भी मत छिपाओ।
गुरू के समक्ष किसी प्रकार का गर्व मत करो।
गुरू से हमेशा नीचे दृष्टि रखो।
गुरू की बात का हमेशा सही अभिप्राय समझें।
गुरू के उपदेश को ही आदेश समझकर पालन करें।
पीठ पीछे भी गुरू की निन्दा न करें।

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