प्रश्न-81 नित्य महपूजन किसे कहते हैं?
उत्तर- प्रतिदिन अपने घर से गंध, पुष्प, अक्षत आदि ले जाकर जिनालय में श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा करना, सदार्चन या नित्य महपूजन कहलाता है।
प्रश्न-82 नित्य महपूजन के कितने भेद हैं?
उत्तर- नित्य महपूजन के चार भेद हैं- 1 अपने घर से अष्टद्रव्य ले जाकर जिनालय में जिनेन्द्र की पूजा करना। 2 जिन प्रतिमा व जिन मंदिर का निर्माण कराना। 3 दान पत्र लिखकर ग्राम खेत आदि का दान देना। 4 मुनिराजों को आहार दान देना।
प्रश्न-83 सर्व तो भद्र पूजन क्या हैं?
उत्तर- महमुकुटबद्ध राजाओं के द्वारा जो महापूजा की जाती है उसे चतुर्मुख यज्ञ या सर्वतो भद्रपू जन कहते हैं।
प्रश्न-84 कल्प द्रुप पूजन क्या है?
उत्तर- चक्रवर्ती द्धारा किमिच्छिक दान देकर महापूजा की जाती है जिसमें जगत के सर्वजीवों की आशाएं पूर्ण की जाती हैं। वह कल्पद्रुम पूजन है।
प्रश्न-85 अष्टान्हि का पूजन क्या है?
उत्तर- कार्तिक, फागुन, आषाढ़ मास के अंतिम आठ दिनों में देवताओं के द्वारा अष्टम द्वीप ‘नंदीश्वर’ पर अकृत्रिम जिन चैत्यालयों में पूजन की जाती है। उसे अष्टान्हि का पूजन कहते हैं।
प्रश्न-86 इन्द्रध्वज पूजन क्या है?
उत्तर- मध्य लोक में तेरह द्वीपों में जो चार सौ अट्ठावन अकृत्रिम जिनालयों की इन्द्र द्वारा पूजा करने के उपरांत विविध चिन्हों की ध्वजाएं चढ़ाई जाती हैं उसे इन्द्रध्वज पूजन कहते हैं।
प्रश्न-87 निक्षेपों की अपेक्षा पूजन कितने प्रकार के हैं?
उत्तर- निक्षेपों की अपेक्षा पूजन के छः प्रकार हैं-
नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव पूजन।
प्रश्न-88 नाम निक्षेप पूजन क्या है?
उत्तर- अरिहंतादिक का नाम उच्चारण करके विशद्ध प्रदेशों में अक्षत आदिद्रव्य अर्पित करना नाम पूजा कहलाती है।
प्रश्न-89 स्थापना पूजा किसे कहते हैं?
उत्तर- जिनेन्द ्रभगवान की सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापना करके पूजा करना स्थापना पूजा है।
सद्भावस्थापना - आकारवान् वस्तु में अरिहंतादिकों के रूप, गुणों का आरोपण करना अर्थात अरिहंत भगवान के रूप के समान ही काष्ठ, पाषाण, धातु आदि में उनके प्रतिबिम्बबना कर पूजा करना सदभावस्थापना पूजन है।
असद्भावस्थापना - अक्षत, वराटक, कौड़ी, कमल गट्टा, लौंग आदि में अपनी बुद्धि से यह अमुक देवता-ऐसा संकल्प करके उच्चाारण करना असद्भास्थापना पूजा है। परंतु हुण्डावसर्पिणी काल में दूसरी असद्भावस्थापना पूजान हीं करनी चाहिए क्योंकि लिंगमतियों (अन्य सम्प्रदयों) से मोहित इस लोक में संदेह हो सकता है।
प्रश्न-90 द्रव्य पूजाकास्वरूपक्याहै?
उत्तर- अरिहंतादिकों के उद्देश्योंसेगंध, पुष्प, धूप, अक्षतादि, समर्पण करना तथा उठकर के खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार करना, वचनों से जिनेन्द्र के गुण गान स्तवन करना भी द्रव्य - पूजा है।
प्रश्न-91 द्रव्य पूजा कितने प्रकार की होती है?
उत्तर- द्रव्य पूजा तीन प्रकार की होती है-
(1) सचित्त पूजा
(2) अचित्त पूजा और
(3) मिश्र पूजा।
सचित्त पूजा-प्रत्यक्ष उपस्थित (साक्षात्) जिनेन्द्र भगवान गुरू आदि का यथा योग्य पूजन करना सचित्त पूजा है।
अचित पूजा-जिनेन्द्र य तीर्थकर आदि के शरीर की और द्रव्य श्रुत अर्थात कागज आदि पर िलपिबद्ध शास्त्र की जो पूजा की जाती है वह अचित पूजा कहलाती है।
‘मिश्र पूजा है।’
प्रश्न-92 क्षेत्र पूजा किसे कहते हैं?
उत्तर- जिनेन्द्र भगवान की जन्म कल्याणक भूमि, तप कल्याणक भूमि, केवल ज्ञान कल्यषणक भूमि और निर्वाण भूमि आदि का पूजन करना क्षेत्र पूजा है।
प्रश्न-93 काल पूजा किसे कहते हैं?
उत्तर- परमभक्ति के साथ जिनेन्द्र भगवान के अनन्त चतुष्टय आदि गुणों का कीर्तन करके त्रिकाल वंदना (सुबह, दोपहर, शाम) करना काल पूजा है अथवा भगवान के दीक्षा, तप, ज्ञान, मोक्ष आदि के दिनों मंे उनकी पूजा करना काल पूजन कहलाती है।
प्रश्न-94 आत्मोन्नति तोवी तरागता से होती है पूजातोराग है, फिर पूजा से आत्मकल्याण कैसे सम्भव है?
उत्तर- पूजा का राग लौकिक प्रयोजन की सिद्धि नहीं, वरन् लौकिक प्रयोजन से निवृत्ति है। यदि पूजा का लक्ष्य लौकिक सम्पदा हुआ तो संसार वृद्धि में कारण है। चूंकि अरिहंत स्वयं राग-द्वेष से रहित है अतः लौकिक प्रयोजन से उनकी पूजा नहीं की जाती। इसलिए पूजा काराग, प्रशस्त राग अर्थात परम्परा से मोक्ष प्रदायक हे, शुभ है, श्रेष्ठ है एवं पूजा में शुभ राग की मुख्यता रहने से पूजक अशुभराग रूपती व्रकषा यादि पाप परिणति से बचा रहता है तथा वीतराग भगवान की पूजन से सांसारिक विषय-वासना के संस्कार धीरे-2 नष्ट होने लगते हैं और अध्यात्म में रूचि हाने लगती है और अंतिमपरिणति यह होती है कि रागभावका भी अभाव करके पूजक सर्वज्ञ पद प्राप्त कर स्वयं पूज्य हो जाता है।
प्रश्न-95 पूजन श्रावक का कौन-सा आवश्यक कार्य है?
उत्तर- पूजन श्रावक का प्रथम आवश्यक कार्य हैं?