प्रश्न-1 मंदिर किसे कहते हैं?
उत्तर- जो पहुंचाए मन को स्वयं के अंदिर (अंदर) उसे कहते हैं मंदिर। जहां पहुंचते ही मन हो जाए थिर उसे कहते हैं-मन्दिर।
प्रश्न-2 मन्दिर किसका प्रतीक है?
उत्तर- मन्दिर शास्त्रीय अर्थां में समवसरण का प्रतीक है और वर्तमान परिप्रक्ष्य में मन्दिर एक विद्यालय, एक चिकित्सालय, एक जलाशय, एक न्यायालय,एक आराधना केन्द्र एवं उद्यान का प्रतीक है।
प्रश्न-3 मन्दिर समवसरण का प्रतीक कैसे है?
उत्तर- जिस प्रकार समवसरण में भगवान का उपदेश प्राप्त होता है ठीक उसी प्रकार मन्दिर में प्रतिमा जी के माध्यम से मौन उपदेश मिलता है। अतः मंदिर समवसरण का प्रतीक है।
प्रश्न-4 मन्दिर विद्यालय का प्रतीक कैसे हैं?
उत्तर- मन्दिर से हमें आचरण की शिक्षा मिलती है। हम किसी तरह पापों से बचें, विषयों से किस तरह मुक्त हों, उपने परिणामों में विशुद्धता कैसे लाएं, प्रति प्रेम के आंगन में कैसे हिलें-मिलें तथा मानवता क्या है? आदि शिक्षाएं हमें अन्यत्र प्राप्त नहीं होतीं। मन्दिर में प्रवेश करते ही मन कषायों से मुक्त होकर शांति का अनुभव करने लगता है। अतः मन्दिर एक विद्यालय का प्रतीक है।
प्रश्न-5 मन्दिर एक चिकित्सालय का प्रतीक कैसे है?
उत्तर- भावों में जो बीमारी (विकार, मलिनता, क्षुब्धता आदि) है उनका तथा सांसारिक विषय-वासना, अहंकार, कषाय आदि का इलाज मन्दिर में होता है। जहां भाव विशुद्ध होते हैं उनमें परिवर्तन आता है। वहीं मन भी बदलने लगता है। अर्थात भाव और मन के रोगों के निदान का स्थान होने से मंदिर एक चिकित्सालय है।
प्रश्न-6 मन्दिर जलाशय का प्रतीक कैसे है?
उत्तर- मन्दिर वह जलाशय है जहां निर्मल, पवित्र वीतरागता का नीर बह रहा है। उस जलाशय के नीर को देखते ही हमरे भाव विश्रांत अर्थात शांत होने लगते हैं। विषमताएं दूर भाग खड़ी होती हैं। उस समय यदि हम उस वीतराग के निर्मल जल में डुबकी लगा लेते हैं, तो हम निर्मल-ही-निर्मल होने लगते हैं। मंदिर की पवित्रता से भाव पवित्र हो जाते हैं। अतः मंदिर एक जलाशय है जहां हमारी गन्दगी धोई जाती है।
प्रश्न-7 मन्दिर न्यायालय का प्रतीक कैसे है?
उत्तर- मन्दिर एक न्यायालय है, जहां हमारे पाप-पुण्य का झगड़ा सुलझाया जाता है। दूध का दूध पानी का पानी करके दिखाया जाता है कि हमने अपने जीवन में कौन-सा कृत्य गलत (अनुचित) किया है और कौन-सा कृत्य सही किया है। अर्थात हमारे शुभ-अशुभ कृत्यों का लेखा-जोखा मंदिर में देखा जाता है जहां से हमें अपने अगले भविष्य का या आगामी गति में जाने का न्याय मालूम होता है। अतः मंदिर न्यायालय का प्रतीक भी है।
प्रश्न-8 मंदिर उद्यान का प्रतीक कैसे है?
उत्तर- जिस प्रकार उद्यान विभिन्न प्रकार के पौधे एवं रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं फिर भी उद्यान एक है उसी तरह मंदिर में विभिन्न प्रकार के लोग आराधना करने आते हैं। हजारों मनुष्यों के उपासना का केन्द्र एक परमात्मा है। मंदिर से हमें प्रीति, प्रेम, वात्सल्य, सामाजिक एकता एवं राष्ट्रीय एकता के संस्कार मिलते हैं। अतः मंदिर एकता का एक उद्यान है।
प्रश्न-9 क्या मंदिर में ही परमात्मा की उपासना हो सकती है, मंदिर से बाहर नहीं?
उत्तर- परमात्मा की आराधना तो मंदिर के बाहर भी हो सकती है। परंतु आराधना करने के संस्कार तो मंदिर से ही पड़ते हैं। मंदिर तो पाठशाला है संस्कारों की, जहां आराधना उपासना भक्ति की थ्योरी पढ़ाई जाती है और मंदिर के बाहर घर, दुकान, दफ्तर, प्रयोगशालाएं हैं, जहां मंदिर से पढ़ी थ्योरी का प्रेक्टीकल किया जाता है। अतः मंदिर से ही आराधना प्रारम्भ होती है। मंदिर आराधना का प्रथम चरण है, उपासना की शुरूआत मंदिर से ही होती है।
प्रश्न-10 मंदिर आते समय हाथों में चावल या अन्य सामग्री क्यों होती हैं?
उत्तर- चावल आदि सामग्री लेकर मंदिर जाने का कारण है कि सामग्री हाथ में होने से हमें रास्ते में यह ध्यान रहता है कि हम मंदिर जा रहे हैं अर्थात हमारा मन बाजार से निलते समय भी बाजार में नहीं रह पाता क्योंकि चावल मंदिर जाने हेतु संकल्प रूप में हमारे हाथों में रहते हैं और मन यहां-वहां भटक नहीं पाता, चावल इसलिए भी ले जाते हैं कि जब लौकिक रूप में साधारण से सम्राट आदि से मिलने से पहले हमें उसे भेंट देनी पड़ती है अर्थात खाली हाथ उसके दरबार में नहीं जाते तो फिर मंदिर में तो तीनों लोकों के सम्राट विराजमान हैं उसकी खाली हाथ दर्शन कैसे कर सकते हैं? चावल आदि सामग्री मंदिर में ले जाने से हमारे अंदर उदार भाव जाग्रत होते हैं एवं दान की प्रवृत्ति के संस्कार बने रहते हैं ओर वह दान क्रमशः संस्कारवश त्याग में परिवर्तित होने लगता है।
प्रश्न-11 मंदिर जी में प्रवेश करने से पूर्व पैर क्यों धोते हैं?
उत्तर- पैरों का संबंध सीधा मस्तिष्क से होता है। कभी-कभी आंखों में या पेट आदि में दर्द होने पर पैर के तलवे दबाए जाते हैं, जिससे आंखों की जलन, पेट-दर्द आदि शांत हो जाते हैं। आपने यह भी सुना होगा कि जिन्हें रात्रि में डरावने स्वप्न आते हैं उन्हें बुजुर्ग लोग समझाते हैं कि रात्रि में पैर धोकर सोना चाहिए।इन सब बातों से प्रतीत होता है कि पैरो का मस्तिष्क से अधिक संबंध है। ऐसी स्थिति में यदि पैरों में अशुद्धियां आदि लगी रहती हैं तो निश्चित ही मानसिकता (मानसिक विचार)अशाुद्धता को उपलब्ध होती है। अतः विचारों में पवित्रता लाने हेतु मंदिर में प्रवेश से पूर्व पैर धोकर ही मंदिर में प्रवेश करना चाहिए।
प्रश्न-12 प्राचीन मंदिरों में तीन द्वार ही क्यों बनाए जाते थे?
उत्तर- मंदिर में तीन द्वार बनाए जाते हैं। मुख्य द्वार, प्रवेश द्वार और गर्भ द्वार। जिस प्रकार समवसरण में तीन कोट होते हैं, उसी प्रकार तीन कोट के प्रतीक तीन द्वार मंदिर पर बनाए जाते हैं। उसके अंदर भगवान विराजमान होते हैं। तीन द्वार तीन लोकों के समान हैं कि तीन लोक को पार करने पर परमात्मा के दर्शन होते हैं।
प्रश्न-13 मंदिर में प्रवेश करते समय ऊँ जय, जय, जय, निःसहि, निःसहि, निःसहि, नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु जैसे शब्दों का उच्चारण क्यों करते हैं?
उत्तर- ऊँ का अर्थ पंच परमेष्ठी से है कि हे पंचपरमेष्ठी भगवान आपकी जय हो, जय हो, अब जगत के सारे पाप/परिग्रह आदि को निःसहि अर्थात निषिद्ध करके, छोड़ करके पवित्र स्थान में प्रवेश कर रहा हूं। क्योंकि आप समस्त परिग्रह और पाप से मुक्त हैं इसलिए मैं आपको बार-बार नमोस्तु, नमस्कार प्रणाम करता हूं। ताकि मैं भी आपके समान पापों से रहित परमात्मा हो सकूंएवं निःसहि शब्द के उच्चारण का तात्पर्य यह भी प्रचलित है कि यदि कोई हमसे पहले भगवान के दर्शन कर रहा हो चाहे वह मनुष्य हों या अदृश्य रूप से देवता आदि हों तो वे मेरे निःसहि शब्द को सुनकर मुझे भी दर्शन करने का स्थान दें अर्थात सावधान हो जाएं जिससे कि मेरे माध्यम से उन्हें पूजा, भक्ति करने में बाधा न हो।
प्रश्न-14 मंदिर में घण्टा क्यों बजाया जाता है?
उत्तर- मंदिर में घण्टा बजाने से कई कारण हैं जैसे-
1 - घण्टा समवसरण में बजने वाली देव दुन्दुभि का प्रतीक है।