।। आओ जाप करें ।।

प्रश्न-1 जाप किसे कहते हैं?

उत्तर-किसी मन्त्र को बार-बार स्मरण करना जाप कहलाता है।

प्रश्न-2 जाप किसके माध्यम से की जाती है?

उत्तर- जाप प्रारम्भ में तो माला के माध्यम से की जाती है फिर अंगुलियों के माध्यम से और जाप में निपुण हो जाएं तो बिना अंगुली चलाए मात्र मन में मंत्र का स्मरण शेष रह जाता है।

प्रश्न-3 जाप करने वाली माला कैसी होना चाहिए?

उत्तर-जाप करने वाली माला में 108 मोती हों एवं बीच में तीन मोतियों का एक मेरूदण्ड होता है जहां से जाप प्रारम्भ होता है।

प्रश्न-4 जाप किसी बनी होनी चाहिए?

उत्तर-जाप सूत अर्थात सूती धागे से बने मोतियों की होनी चाहिए। सूत की माला सदा सुख देने वाली होती है। सोना, चांदी, मूंगा, पोत, कमल बीज, स्फटिक और मोती की माला हजारों उपवासों का फल देने वाली होती हैं और अग्नि द्वारा पकी हुई मिट्टी, हड्डी, लकड़ी और रूद्राक्ष की मालाएं कुछ भी फल देने वाली नहीं हैं अर्थात वे मालाएं अयोग्य हैं, ग्रहण करने योग्य नहीं हैं।

प्रश्न-5 जाप करते समय कौन-से आसन पर बैठना चाहिए?

उत्तर- सफेद वस्त्र के आसन पर तथा हल्दी से रंगे हुए वस़्त्र के आसन पर व सबसे उत्तम लाल वस्त्र के आसन पर व सबसे उत्तम लाल वस्त्र के आसन पर अथवा डाभ के आसन पर बैठकर जाप करना चाहिए।

प्रश्न-6 किस आसन पर बैठकर जाप नहीं करना चाहिए?

उत्तर- बांस बैठकर किया जाप-दरिद्रता प्रदायक।

पाषाण की शिला पर बैठकर किया जाप-रोग प्रदायक।

धरती पर (पृथ्वी पर) बैठकर किया जाप-दुर्भाग्य या भाग्यहीन प्रदायक। घास पर बैठकर की गई जाप-चित्त की चंचलता, अस्थिरता प्रदायक।

हिरण, शेर, बाघ आदि जानवरों के चमड़े की छाल पर बैठकर की गई जाप-अज्ञानता प्रदायक या ज्ञान हरती है।

नीले वस्त्र पर बैठकर की गई जाप-दुख प्रदायक।

हरे वस्त्र पर बैठकर की गई जाप-मान भंग में कारण बनती है। चमड़ा, कम्बल, ऊन आदि के आसन पर बैठकर की गई जाप-पाप वृद्धि में कारण। उपर्युक्त आसन अशुभता के प्रतीक हैं अतः इन आसनों पर बैठकर कभी भी जाप नहीं करना चाहिए।

प्रश्न-7शुभ आसन पर बैठकर की गई जाप का फल क्या है?

उत्तर- 1. सफेद वस्त्र की आसन पर बैठकर की गई जाप-यश ख्याति में वृद्धि प्रदायक।
2. हल्दी से रंगे वस्त्र पर बैठकर की गई जाप-हर्षप्रदायक।
3. लाल वस्त्र (श्रेष्ठ आसन) पर की गई जाप-सुख प्रदायक।
4. डाभ की आसन पर की गई जाप-यह सर्वश्रेष्ठ आसन है। सभी कार्यों की सिद्धि में लाभदायक है।

कहने का तात्पर्य यह है कि सभी आसनों में डाभ का आसन सर्वश्रेष्ठ आसन हैं। हरिवंश पुराण में आचार्य लिखते हैं कि श्री कृष्ण ने समुद्र के किनारे तेला स्थापना (तीन दिन के उपवास) कर डाभ के आसन पर बैठकर कार्यसिद्धि की। आदि पुराण में गर्भान्वय आदि क्रियाओं में भी डाभ के आसन का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न-8 जाप कहां पर की जानी चाहिए और क्यों एवं कहां करने का क्या फल है?

उत्तर- जाप घर में, जंगल में, बगीचे में, मंदिर में कहीं पर भी कर सकते हैं। फिर भी स्थान विशेष अर्थात मंदिर आदि में किए गए जाप का फल अद्भुत होता है। अपने घर में जाप करने का फल एक गुना है। वन में जाप करने का फल सौ गुना होता है। पर्वत बगीचे या पवित्र वन में की गई जाप का फल हजार गुना है। पर्वत पर जाप जपने से दस हजार गुना फल है। पर्वत पर जाप जपने से दस हजार गुना फल है। नदी के किनारे जपने से लाख गुना फल और यदि जिन मंदिरों में जाप करें तो करोड़ गुना फल और साक्षत् जिनेन्द्र भगवान के निकट जाप करें तो अनन्त गुना फल प्राप्त होता है।

प्रश्न-9 माला किस अंगुली से फेरना चाहिए?

उत्तर- सभी अंगुलियों से जप करने का अलग-अलग महत्व है।
मोक्ष प्राप्ति के लिए-अंगूठे से माना जपनी चाहिए।
औपचारिक कार्यों के लिए -तर्जनी (अंगूठे के पास वाली) अंगुली से जाप करना चाहिए।
धन और सुख की प्राप्ति के लिए-मध्यमा (बीच वाली अंगुली) उंगली से जाप करना चाहिए। ग्रहादि उपद्रव शांति के लिए-कनिष्ठा (सबसे छोटी अंगुली) से जाप करना चाहिए।
शत्रु नाश के लिए तर्जनी अंगुली। यह जाप नहीं जपनी चाहिए।
धन सम्पदा प्राप्ति के लिए-मध्यमा अंगुली।
शांति कर्म के लिए- अनामिका अंगुली।
सर्वकर्यों की सिद्धि के लिए- कनिष्ठा अंगुली। इस प्रकार अलग-अलग अंगुली से जाप करने का अलग-अलग फल है।

प्रश्न-10बहुत से लोगों को जाप करते समय बहुत विघ्न आते हैं जैसे आंखों में कुछ दिखाना, नींद आना, छींक आना, ऊंघना आदि तब फिर क्या करना चाहिए और क्या उसे जाप का फल मिलेगा।

उत्तर-जो श्रावक जाप करते समय प्रमादी होकर ऊंघती हैं, नींद का झोंका लेते हैं अथवा बार-बार उबासी लेते है अथवा आलस्य करते हैं उनका जाप करना न करने के ही समान है। उसका कोई फल नहीं हैं जाप करते समय वस्त्र व शरीर शुद्ध हों एवं उतने समय के लिए समस्त सांसारिक बातें या जिन्होंने व्रत भंग कर दिए हों ऐसे पुरूष, स्त्री, शुद्र आदि कोदेखना, उनके साथ बात करना, उनके वचन सुनना, छींकना, उबासी लेना आदि का त्याग कर देना चाहिए। यदि-जाप करते समय ये सब बातें हो जाएं तो उसी समय जाप छोड़ देना चाहिए और तुरंत आचमन और प्राणयाम करके पुनः जाप पूरी करना चाहिए। यदि आचमन और प्राणायाम न हो सके तो तुरंत जिनेन्द्र भगवान के दर्शन अर्थात कुछ देर के लिए उनकी प्रतिमा को निहारें फिर बाकी जाप पूरी करें ऐसा धर्म रसिक ग्रन्थ में आया है।

प्रश्न-11 जाप करते समय मंत्र का उच्चारण कैसे करना चाहिए?

उत्तर-जाप करते समय सबसे पहले मन्त्र का उच्चारण शुद्ध करके देख लें। फिर श्वास अन्दर की और लेते समय-णमो अरिहंताणं बोलें। फिर श्वांस बाहर की ओर छोड़ते समय-णमों सिद्धाणं बोलें। पुनःश्वांस भीतर लेते समय-णमो आइरियाणं बोले। एवं पुनः श्वस बाहर छोडत्रते समय-णमों आइरियाणं बोलें।

पुनः श्वास भीतर लेते समय-णमो लोए और श्वांस बाहर छोड़ते समय-सव्व सहूणं पढ़ें। इस प्रकार तीन श्वासोच्छ्वास में एक बार णमोकार मन्त्र जपनाचाहिए। इस तरह सत्ताईस श्वासोच्छवास में नौ बार णमोकार मन्त्र होता है।

2
1