।। आओ जाप करें ।।

प्रश्न-12 मन्त्र जाप करने के कितने भेद हैं?

उत्तर-मन्त्रजाप करने के तीन भेद हैं-

वाचिक
उपांशु
मानस।

प्रश्न-13

उत्तर-वाचिक जाप- मन्त्रों के अक्षर, पद और शब्दों को स्पष्ट और शुद्ध रीति से उच्चारण करना ओर इस तरह उच्चारण करना कि जिसको पास में बैठने वाले सभी लेाग सुन लें वह वाचिक जाप कहलाती है।

उपांशु जाप- जिसमें मंत्रों के अक्षर, पद, शब्दों का उच्चारण शुद्ध तथा स्पष्ट हो परंतु उस उच्चारण को कोई दूसरा न सुन सके उसको उपांशु जाप कहते हैं। वाचिक ओर उपांशु में सुनने ने सुनने का अंतर है। इस जाप में धीर-धीरे होंठ चलते हैं पर सुनाई नहीं पडता। इस जाप का फल सौ गुना है।

मानसिक जाप- अपने मन को एकाग्र कर अपने ही मन के द्वारा मंत्र के जो अक्षर हैं वे एक अक्षर के बाद दूसरा अक्षर, एक पद के बाद दूसरा पद और एक शब्द के बाद दूसरे शब्द मय अर्थ चिन्तवन करना अर्थात अन्दर उच्चारण भी न करके मात्र चिन्तन करना मानसिक जाप कहलाता है। इस जाप का फल हजार गुना है।

प्रश्न-14जाप करते समय माला कैसे पकड़ना चाहिए?

उत्तर- धर्म रसिक ग्रन्थ के अनुसार जाप करते समय माला के मेरूदण्ड का (तीन मोती वाला) उल्लंघन अर्थात पार न करते हुए जाप करें अर्थात जब एक माला पूर्ण हो जाए तोदूसरी माला करते समय माला को पलट लेना चाहिए। जहां प्रथम माला समाप्त की वही से दूसरी माना प्रारम्भ करना चाहिए। मेरू को लांघना नहीं चाहिए एवं जाप करते समय मन को पंचपरमेष्ठी के ध्यान में लगाना चाहिए। अपने बाएं हाथ को अपनी गोदी में रखना चाहिए एवं ध्यान मुद्रा धारण कर (तर्जनी उंगली) को नवाकर, अंगूठे की जड़ से लगा देना तीनों उंगली खड़ी रखना अर्थात अपने दाएं हाथ के अंगूठे और तर्जनी से निर्मल जप की माला फेरना चाहिए। जाप करने की यह विधि बतलाई गई है उसके सिवाय जो कोई मनुष्य अपने हृदय में उद्वेग व चंचलता रखता हुआ जाप करता है अथवा जो उंगुली के नख के अग्रभाग से जाप करता है वह जाप सब निष्फल है। (क्रिया कोष ग्रन्थ से)।

प्रश्न-15माला में 108 मोती क्यों होते हैं?

उत्तर-- संसारी जीव हमेशा प्रमाद और कषाय के अधीन रहते हैं तथा त्रय, स्थावरों के भेद से बारह प्रकार के जीवों की मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना के द्वारा एक सौ आठ भेदरूप पांच पापों का आश्रय, बंध करते रहते हैं, उनकी निवृत्ति के लिए एक सौ आठ मणियों की माला बनाई जाती है।

प्रश्न-16एक सौ आठ पापों के भेद को स्पष्ट समझाइए?

उत्तर- पांच स्थवर (पृथ्वी, जल, अग्नि, वनस्पति, वायुकायिक) $ इतर निगोद $ नित्य निगोद $ दो इन्द्रि $ तीन इन्द्रिय $ चार इन्द्रिय $ पंचेन्द्रि $ संज्ञी $ पंचेन्द्रिय असंज्ञी-बारह प्रकार के जीवों की मन से, वचन से और कय से हिंसा आदि पाप किए तो छत्तीस प्रकार के हुए। 12 जीव समास गुणा मन, वचन, काय = 36 इनको कृत से (स्वयं किए) $ कारित (दूसरों से करवा) $ अनुमोदना $ (करने वाले की प्रशंसा की) = 12 प्रकार के जीव गुणा 3 (मन, वचन, काय) गुणा 3 (कृत, कारित, अनुमोदना) = 108 पाप। अर्थात एक-एक पाप के नाश के लिए एक-एक माला में रखा गया है।

प्रश्न-17माला के 108 मोतियों का दूसरा कारण क्या हैं?

उत्तर- माला के 108 मोतियों के माध्यम से एक सौ आठ पापों का क्षय करने की एक भावना यह भी है। (समरंभ $ समारम्भ $ आरम्भ) गुणा (मन $ वचन $ काय) गुण (कृत $ कारित $ अनुमोदना) गुणा (क्रोध $ मान $ माया $ लोभ) = 3 गुणा 3 गुणा 3 गुणा 4 गुणा = 108

प्रश्न-18ण्नौ बार णमोकार मन्त्र क्यों पढ़ते हैं?

उत्तर-नौ एक अंक अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ता है। नौ का पहाड़ा जितनी बार भी पढ़ोगे उसका योग नौ ही आता है, जैसे-

9 एकम 9 = 9 9 दूना 18 = 1 $ 8 = 9
9 तीया 27 = 2 $ 7 = 9 9 चैके 36 = 3 $ 6 = 9
9 पंजे 45 = 4 $ 5 = 9 9 छक्के 54 = 5 $ 4 = 9
9 सत्ते 63 = 6 $ 3 = 9 9 अट्ठे 72 = 7 $ 2 = 9
9 नम्मा 81 = 8 $ 1 = 9 9 धाम 90 = 9 $ 0 = 9

एक तरह से नौ का अंक अपनी मर्यादा कभी नहीं छोड़ता, उसी तरह से हे भगवान्! मैं भी संसार में रहते हुए अपने धर्म की मर्यादा को कभी न छोडूं, कभी न भूलूं। आपका स्मरण सतत मुझे बना रहे जिससे मैं आपके समान मुक्ति को प्राप्त करूं।

प्रश्न-19 हाथों की उंगलियों के माध्यम से 108 बार जाप करते समय भी कुछ चिन्तर कर सकते हैं क्या?

उत्तर- हां, जाप करते समय चिन्तन तो परमेष्ठी का ही सतत करना चाहिए फिर भी हाथों की उंगलियों से जाप करते समय एक बात का ध्यान और भी रखना चाहिए कि जिस प्रकार एक सौ आठ बार मन्त्रों को जपने के लिए उंगलियों के पर्वों का सहारा लेना पड़ता है अर्थात बाएं हथ की उंगलियों के बारह पर्व और दाएं हाथ की उंगलियों केनौ पर्व गिने जाते हैं। जिससे 12 गुणा 9 = 108 बार गिनती होती है। बाएं हाथ की उंगली के बारह पर्व बारह कषाय के प्रतीक हैं। बारह कषाय- अनंतानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध, मान माया, लोभ।

12 कषाय और दाएं हाथ की उंगलियों के नौ पर्व नौ कषाय के प्रतीक हैंः हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगप्सा, स्त्री वेद, पुरूष वेद और नपुंसक वेद- इन नौ कषायों और उपर्युक्त बारह कषायों से मेरी आत्मा मुक्त होकर जिनेन्द्र के समान मोक्ष प्राप्त करे। यह चिन्तन भी करना चाहिए।

प्रश्न-20जाप कौन-सी उंगली से प्रारम्भ करनी चाहिए?

उत्तर- जाप दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली के दूसरे नम्बर के पर्व से प्रारमभ कर ऊपर की ओर वाले पर्व से होते हुए पुनः मध्यमा के तीसरे पर्व से अनामिका उंगली के निचले पर्व से ऊपर की ओर प्रथम पर्व पर अंगूठे के माध्यम से गिनती करेंगे तो एक चक्कर में नौ बार णमोकार मन्त्र हो जाता है एवं बाएं हाथ की उंगलियों के बारह पर्व गिनते हैं तो 12 गुणा 9 = 108 बार मन्त्र हो जाता है जो एक जाप कहलाता है।

प्रश्न-21 हमें प्रातःकाल उठकर पारमात्मा का ध्यान किसके माध्यम से करना चाहिए?

उत्तर-प्रातःकाल शैय्या से उठकर अपने दोनों हाथ जोड़कर णमोकार मन्त्र पढ़ें एवं दोनों हाथों की हथेलियों को खोलकर आपस में मिला दें। हथेलियां मिलने से दोनों हथेलियों के बीच एक अर्द्धचन्द्राकारसिद्ध शिला का निर्माण होता है। उसके ऊपर आठ उंगलियों पर चैबीस तीर्थंकर के रूप में बने रहते हैं अतः प्रत्येक पर्व पर एक तीर्थंकर का स्मरण करते हुए परमात्मा का ध्यान कर उसे अपने मस्तक व आंखों से लगाना चाहिए। इस तरह प्रातः काल पांच मिनट परमात्मा का ध्यान करें।

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