।। आओ मंदिर चले ।।

प्रश्न-192 शांतिपाठ क्यों और किसलिए किया जाता है?

उत्तर- शांति पाठ में सर्वभूत हित कामना की जाती है। पूजक को मात्र अपने कल्याण के उद्देश्य के लिए ही पूजन नहीं करना चाहिए। अपितु सृष्टि के समस्त प्राणियों के हित का भी भाव होना चाहिए। अपने कल्याण के साथ-साथ समस्त जीवों का कल्याण जिसमें निहित हो वही सच्ची प्रार्थना या पूजा होती है। शांति पाठ में विश्व में सर्वत्र शांति सुख की कामना है। इसे विसर्जन के उपरांत बोलते हैं। समस्त सृष्टि की शांति कल्याण आदि की भावना से ओत-प्रोत काव्य को शांति पाठ कहते हैं। पूजन समाप्त करने के उपरांत यदि समय हो तो शास्त्र का वाचन, पठन करें। यदि समय कम हो तो जाप, ध्यान आदि तो करना ही चाहिए।

jain temple248

परमेष्ठी अर्चना(मुनि पुलक सागर)
णमोकारमय मेरा जीवन बना दो
चारों की रज से मेरा मन सजा दो।
मैं हूं फूल छोटा तुम्हारे चम का
कहीं हर ना ले जाए झोंका पवन का
चरणों की छाया में मुझको बिठा लो
अरिहन्त निज गांव मुझको बुला लो।। णमोकारमय........
रहे देह में पर विदेही बने हो
बंधन में रहकर भी बंध न सके हो
मैं बंधता रहा झूठे जग संबधनों में
निराकार मुझको स्वयं में मिला लो।। णमोकारमय........
गहन तम है छाया जो विषयों में भूले
कहां खो गया क्षण जो आतम् को छू ले
हो सूरज धरा के उजाले दिखा दो
हे आचार्य मुझको दुःखों से बचा लो।। णमोकारमय...
अज्ञानता से भरी मेरी गागर
तुम ज्ञान के वह असीमित हो सागर
आगम का अमृत हमें भी पिला दो
णमो अवज्झायाणं सत पथ दिखा दो।। णमोकारमय..........
हृ के कमल में हे साधु विराजो
आतम के अनुभव से परिचय करा दो
नमन है मेरा जग के सब साधुओं को
नमन है नमन नमनमय बना दो।। णमोकारमय।।

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