निर्वपामीति क्षेपण करना, निकटवर्ती होना, संसार की पीड़ा का विनाशक, निर्वाण का प्रारंभक।
भाव पूजा हृदय में अर्हन्त आदि के गुणों का चिंतन करना।
वषद् पूजा के आह्वाहन के उच्चारित किया जाने वाला आह्वाहन वाचक बीजाक्षर।
अष्टद्रव्य चढ़ाने की विधि
जल व चंदन को छोड़कर स्वास्तिक के स्थान पर अष्टक द्रव्य चढ़ाना चाहिए।
ओम् कार पर जयमाला का अर्घ एवं श्री 1008 के नाम का अर्थ भी वहीं पर चढ़ाना चाहिए।
तीन बिंदु के निशान पर सम्यक दर्शन, ज्ञानचारित्र का एवं देवशास्त्र गुरू का अर्घ चढ़ाना चाहिए।
सिद्ध भगवान की जयमाला का अर्थ चन्द्रकार पर चढ़ाना चाहिये।
दस ंिबंदु के स्थान पर प्रत्येक स्वास्तिक क्रम से क्षेपण करना चाहिए।
अष्टद्रव्य चढ़ाने का अर्थ
पूजन में जल चढ़ाने का अर्थ यही है कि जिस प्रकार जल में शीतलता होती है वैसी ही शीतलता मेरी आत्मा में बनी रहे।
अक्षत इसलिए चढ़ाये जाते हैं कि आप अक्षय पद प्राप्त कर सकें।
पुष्प चढ़ाने के पीछे भाव पुष्प के समान ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति का है।
नैवेद्य चढ़ाने के पीछे भाव होते हैं कि हे भगवान, जिस प्रकार आपने अपने क्षुधवर्णी कर्मों का नाश किया है उसी प्रकार मेरे क्षुधवर्णी कर्मों का नाश हो जाए।
दीपक चढ़ाने के पीछे भाव यह होता है कि जिस प्रकार भगवान का ज्ञान दीप के समान सारे संसार को आलोकित करता है ऐसा ही ज्ञान मेरी आत्मा में प्रकट हो।
धूप चढ़ाने के पीछे भाव यह है कि जिस प्रकार धूप की सुगंध सारे प्रदूषण को खत्म कर देती है उसी प्रकार मेरी आत्मा का प्रदूषण नष्ट हो जाए।
फल चढ़ाने के पीछे मोक्ष फल की प्राप्ति का भाव है।
शांति धारा के पीछे सारे संसार में शांति होने की भावना होती है।
भगवान जिनेन्द्र के पादमूल में पूजन थाली के बीजाक्षर का लेखन
ओंम् पंचपरमेष्ठी का प्रतीक बीजाक्षर है। देव शास्त्र, गुरू एवं सिद्ध भगवान की पूजा के आठों द्रव्य या अर्घ ओम् बीजाक्षर पर ही चढ़ायें। इस पूजा से प्राप्त शुभाश्रव व पंच परमेष्ठी पद पर अघिष्ठित करने हेतु बनता है तथा आंेम् बीजाक्षर आत्मभूत होने से अनेक सिद्धियाॅं जीव को प्राप्त होती है। ओंम् बीजाक्षर को आत्मभूत करने की यह विधि है।
थाली में बाएं तरफ बने चार बिन्दुओं पर पूजा के शुरू, मध्य एवं अन्त सभी प्रकार के पुष्पों का क्षेपण करें। चार बिन्दु अर्हंत सिद्ध साधु एवं इनके द्वारा कहा हुआ धर्म लोक में मंगल उŸाम एवं शरण भूत है। इसके प्रतीक है।
श्री बीजाक्षर श्रेय का प्रतीक है जब हम किसी तीर्थंकर या सभी तीर्थंकरों की पूजा या अर्घ चढ़ाये तो श्री बीजाक्षर पर चढ़ाये। तीर्थंकर की पूजा से प्राप्त आश्रव पूजा को वह श्रेय प्रदान करंे जो तीर्थंकर ने प्राप्त किया । इससे श्री बीजाक्षर आत्मभूत होता है। श्री श्रेय का प्रदाता है।
स्वास्तिक कल्याण का प्रतीक बीजाक्षर है सभी प्रकार के व्रतों, निर्वाण भूमि चैत्य, चैत्यालय की पूजा के आठों द्रव्य स्वास्तिक पर चढ़ायें। यह सब कल्याण के प्रतीक हैं। इन पूजाओं से प्राप्त आश्रव आत्म कल्याण के साधक होते हैं।
ठोना ;स्थापनाद्ध पर आठ पंखुड़ी का कमल बनाएं। यह आत्मा के आठ गुणों का प्राकाशक कहा गया है। स्थापना पर कोई भी बीजाक्षर न लिखें तथा स्थापना, आह्वानन, सन्निधिकरण के ही पुष्प चढ़ाएं अन्य नहीं।
णमोकार मंत्र के बाद अपवित्र......... पुरास्तवन बोलकर पांच पूजाएं करना चाहिए। समयाभाव से पूजा न कर सकें तो उदक चंदन तंदुल..........पद बोलकर पृथक्-पृथक् मंत्र के साथ पांचों बिंदुओं पर अर्घ चढ़ाना चाहिए। इसके बाद श्री मज्जिनेन्द्र भगवत......स्तवन पढ़ना चाहिए। पांचों बिन्दुओं पर अर्घ इन मंत्रों के साथ चढ़ाएं।
;प्रथम अर्घ सभी यंत्रों की पूजा का हैद्ध ओम् ही अर्हंत सिद्धाचार्य उपाध्याय एर्व साधुभ्यः मंगलोŸाम शरणभूताय अर्घ ;द्वितीय अर्घ पंचकल्याणकों का हैद्ध ओम् ही भगवान के गर्भ जन्म तप ज्ञान निर्वाण पंच कल्याण
केभ्यः अर्घ नि. ;तृतीय अर्घ द्वादशांग वाणी का हैद्ध ओम् ही द्वादशंाग श्रुतज्ञानाय नमः अर्घ निर्वपामिति स्वाहा।
;चतुर्थ अर्घ सहस्त्र नाम का हैद्ध ओम् ही जिन सहस्त्र नामेभ्योः अर्घ निर्वापामिति स्वाहा।
;पांचवा अर्घ तŸवार्थ सूत्र का हैद्ध ओम् हीं उमास्वामी देव विरचित तŸवार्थ क्षेत्रभ्योंः अर्घ निर्वंापामिति स्वाहा। जिस नगर में हम पूजन कर रहे हैं सम्पूर्ण पूजन करने के बाद अन्त में उस नगर के सभी जिन मन्दिरों एवं उनमें विराजित जिन प्रतिमाओं का अर्घ अर्पित करते है। उदक चंदन तंदुल.........;पद बोलकर ओम् हीं......नगर स्थित समस्त जिन चैत्य चैत्यालये भ्यः अर्घ निर्वपामिति स्वाहा। इससे नगर में स्थित सभी मन्दिरों की पूजा का श्रेय प्राप्त होता है।द्ध
दर्शन पाठ