।। महामंत्र ।।
षोडशाक्षरी महाविद्या पंचपदों और पंचगुरूओं के नामों से उत्पन्न हैं, इसका ध्यान करने से सभी प्रकार के अभ्युदयों की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति एकाग्र मन होकर इस सोलह अक्षर के मंत्र का ध्यान है, उसे चतुर्थ तप एक उपवास का फल प्राप्त होता है।
सोलह अक्षर का मंत्र
छह अक्षर का मंत्र: अरिहंतसिद्ध, अरिहंत सि सा, ओम् नमः सिद्धेभ्यः न्मोेर्हत्सिद्धेभ्यः।
पाॅंच अक्षर का मंत्र: अ सि आ उ सा । ण्मो सिद्धाण।
चार अक्षर का मंत्र: अरिहंत । अ सि साहू।
सात अक्षर का मंत्र: ओम् ह्री श्रीं अर्ह नमः।
आठ अक्षर का मंत्र: ओम् ण्मो अरिहंताणं।
तेरह अक्षर का मंत्र: ओम् अर्हत् सिद्धसयोगकेवली स्वाहा।
दो अक्षर का मंत्र: ओम् ह्रीं। सिद्ध । अ सि।
एक अक्षर का मंत्र: ओम्, ओं, ओम अ, सि।
मनवांछित शुभ कामनाओं की सिद्धि हेतु ।।
1. रविवार को ।। ओम् ह्रीं श्री पाश्र्वनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
2. सोमवार को ।। ओम् ह्रीं श्री चंद्रप्रभु जिनेन्द्राय नमः।।
3. मंगलवार को ।। ओम् ह्रीं श्री वासूपूज्य जिनेन्द्राय नमः।।
4. बुधवार को ।। ओम् ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय नमः।।
5. गुरूवार को ।। ओम् ह्रीं श्री सुरगुरू दोषनिवारणाय अष्ट जिनेन्द्राय नमः।।
6. शुक्रवार को ।। ओम् ह्रीं श्री पुष्पदंत जिनेन्द्राय नमः।।
7. शनिवार को ।। ओम् ह्रीं श्री मुनिसुव्रत जिनेन्द्राय नमः।।
।।म्ंात्र व्याख्या।।
मंत्र मंुह से बोला हुआ वो शब्द है जो चमत्कार पैदा करता है। यह तीन प्रकार के होते हैं:-
1. पुरूष मंत्र - नमोकार मंत्र देवों का मंत्र है यह पुरूष मंत्र है इसे किसी भी समय सुख दुख शुद्ध अशुद्ध अवस्था में बोला जा सकता है। इस मंत्र के जाप से सारी सिद्धियां प्राप्त होती है व कष्टों का नाश होता है।
2. स्त्री मंत्र - जिस मंत्र के आखिर में स्वाहा बोला जाता है वह स्त्री मंत्र होता है। इसे बोलने से पहले मन वचन काय नहाकर धुले हुए वस्त्र धरण करना कि शुद्धि आवश्यक है तथा इसे इष्ट आवाह्न करके तत्पश्चात अग्नि मंे समर्पित करने वक्त धूप डालते हुए बोलना चाहिए इसका कारण यह है कि अग्नि देवता कि स्त्री का नाम स्वाह है इसीलिए आवाह्न संपूर्ण तभी होता है जब स्वाहा अग्नि मंे समर्पित हो।
3. नपुंसक मंत्र - जिस मंत्र के आखिर में नमो नमो बोला जाता है वह नपुंसक मंत्र होता है उसे हाथ में माला से जाप द्वारा किसी स्थान का शुद्ध भाव से किया जा सकता है।