|| अरहंत ||
jain temple312

10. अनुमति त्याग प्रतिमा: जो आरम्भ, परिग्रह अथवा विवाह आदि इस लोक सम्बन्धी कार्यों में अनुमोदना नहीं करता जो समता युद्धि वाला है वह अनुमति त्याग प्रतिमा धारी है

जैन धर्म अनादि काल से व अंत रहित है, किन्तु इसका प्रसार इस कल्प काल के चतुर्थ काल के प्रारंभ में आज से असंख्य वर्ष पूर्व प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से माना जाता है। समय समय पर 24 तीर्थंकर होते गये व धर्म का प्रसार होता रहा। अंतिम चैबीसवें तीर्थंकर महावीर आज से लगभग पच्चीस सौ वर्ष पूर्व हुए हैं। इनकी दिव्य ध्वनि में भी जैन दर्शन के सिद्धांतों का वर्णन हुआ है। जब जब काल परिवर्तन होता है तब तब चतुर्थ काल में चैबीस तीर्थंकरों का जन्म होता है, व इस प्रकार धर्म परंपरा चलती रहती है।

‘‘चैबीसों अतिशय सहित प्रतिहार्य पुनि आठ अनंत चतुष्ठय गुण सहित, छीयालीसों पाठ‘‘

अरहंत

केवली पांच कल्याणक नहीं होते हैं व अरहंत अवस्था में गंधकुटी की रचना होती है।

तीर्थंकर पांचों कल्याणक - गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान व मोक्ष होते हैं व अरहंत अवस्था में समवशरण की रचना होती है।

समवशरण सभा

तीर्थंकर प्रकृति-बंध जीव के प्रायः गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक होते हैं। उनके द्वारा तीर्थ की स्थापना होती है। धर्म चक्र का प्रवचन होता है। समवशरण सभा का आयोजन होता है। फलस्वरूप जीव का कल्याणक मार्ग प्रशस्त होता जाता है। यहंा भव्य जीवों को सम्यक उपदेश और दिशा-दर्शन सहज में उपलब्ध रहता है। चैत्यालय या मंदिर इन्हीं का रूप है।

jain temple313

त्रिकाल चैबीसी जिनालय

त्रिकाल चैबीसी वह जिनालय है जिसमें भरत क्ष्ेात्र के भूत, वर्तमान व भविष्य की चैबीस-चैबीस जिन प्रतिमायें जिनालयों में विराजमान हों। भगवान ऋषभदेव के निवार्ण के बाद शोक मन होकर भरत चक्रवर्ति विचारने लगे कि अब तीर्थ का प्रवर्तन कैसे होगा। तब महा मुनि राज गणघर परमेष्ठि कहते हैं, कि:- हे चकी। अब धर्म का प्रर्वतन जिन-बिम्ब की स्थापना से ही संभव है। तब चक्रवर्ती भरत ने मुनि ऋषभसेन महाराज का आशीर्वाद प्राप्त कर कैलाश पर्वत पर स्वर्णमयी जिनालयों का निर्माण कराकर रत्नरचित 500-500 धनुष-प्रमाण 72 जिन-बिम्बों की स्थापना की।

भूतकाल के तीर्थंकरों के नाम

1.श्री निर्वाण जी

2.श्री सागर जी

3.श्री महासाधु जी

4.श्री विमलप्रभु जी

5. श्रीधर जी

6.श्री सुदत्त जी

7.श्री अमलप्रभु जी

8.श्री उद्धर जी

9.श्री अडिगर जी

10.श्री सन्मति जी

11.श्री सिंधु जी

12.श्री कुसुमांजलि जी

13.श्री शिवगण जी

14.श्री उत्साह जी

15.श्री ज्ञानेश्वर जी

16.श्री परमेश्वर जी

17.श्री विमलेश्वर जी

18.श्री यशोधर जी

19.श्री कृष्णमति जी

20.श्री ज्ञानमति जी

21.श्री शुद्धमति जी

22. श्री भद्र जी

23.श्री अतिक्रांत जी

24.श्री शांता जी

भविष्यकाल के तीर्थंकरों के नाम

1.श्री महापद्य जी

2.श्री सुरदेव जी

3.श्री सुपाश्र्व जी

4.श्री स्वयंप्रभु जी

5.श्री सर्वात्मभूत जी

6.श्री देवपुत्र जी

7.श्री कुलपुत्र जी

8.श्री उदक जी

9.श्री प्रौष्ठिल जी

10.श्री जय कीर्ति जी

11. श्री मुनिसुव्रत जी

12.श्री अरची ;अममद्ध

13.श्री निष्पाप जी

14.श्री निष्कषाय जी

15.श्री विपुल जी

16.श्री निर्मल जी

17.श्री चित्रगुप्त जी

18.श्री समाधिगुप्त जी

19.श्री स्वयंप्रभु जी

20.श्री अनिवृत्तिक जी

21.श्री जय जी

22.श्री विमल जी

23.श्री देवपाल जी

24.श्री अनन्तवीर्य जी

जम्बूद्वीप हस्तिनापुर

वर्तमान चैबीस तीर्थंकार के नाम

1.श्री ऋ़षभनाथ

2.श्री अजितनाथ

3.श्री संभवनाथ

4.श्री अभिनंदननाथ

5.श्री सुमतिनाथ

6.श्री पद्मप्रभ

7. श्री सुपाश्र्वनाथ

8. श्री चन्द्रप्रभ

9.श्री पुष्पर्दतनाथ

10.श्री शीतलनाथ

11.श्री श्रेयांसनाथ

12.श्री वासुपूज्य

13.श्री विमलनाथ

14.श्री अनंतनाथ

15.श्री धर्मनाथ

16.श्री शांतिनाथ

17.श्री कुन्थुनाथ

18. श्री अस्हनाथ

19.श्री मल्लिनाथ

20.श्री मुनिसुव्रत नाथ

21.श्री नमिनाथ

22.श्री नेमिनाथ

23.श्री पाश्र्वनाथ

24.श्री महावीर

2
1