जैन धर्म निवृतिप्रधान हैं अतः उसके पर्वो में भोग की प्रधानता नहीं है अपितु त्याग की प्रधानता हैं, इसलिए अन्य समुदायों की अपेक्षा जैन समुदाय में जो पर्व माने जाते हैं उनमें संयम एवं तप की प्रमुखता रहती हैं। और इसी कारण जैनों के पर्व जैनेस्त्तरों के पर्वो से स्वरूपतः भिन्न होते हुए तिथियों की दृष्टि से भी भिन्न है। जैन लोग दशलक्षण महापर्व, अष्टाह्किा महापर्व आदि वर्ष में तीन बार आने वाले त्याग प्रधान पर्वो को मनाते हुए। महीने की प्रत्येक अष्टमी एवं चर्तुदशी को व्रत उपवास आदि करते हैं। यह त्याग प्रधान वृति जैन पर्वों की निवृति प्रधान संस्कृति की द्योतक है। तथा उसी अनुरूप् पूजा करते है।
प्रमुख जैन पर्व
1. प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी
2. अष्टाहिका व्रत
कार्तिक शुक्ला 8 से 15 तक फाल्गुन शुक्ला 8 से 15 तक आषाढ़ शुक्ला 8 से 15 तक
3. षोडश कारण
माघ कृष्णा 1 से फाल्गुन कृष्णा 1 तक चैत्र कृष्णा 1 से वैशाख कृष्णा 1 तक भाद्रपद कृष्णा 1 से आसीजकृष्णा 1 तक ।
4. दशलक्षण
माघ शुक्ला 5 से 14 तक चैत्रशुक्ला 5 से 14 तक भाद्रपद शुक्ला 5 से 14 तक
5. रतनत्रय
माघशुक्ला 13 से 14 तक चैत्रशुक्ला 13 से 14 तक भाद्रपद शुक्ला 13 से 14 तक
6. रोटतीज भाद्रपद शुक्ला 3
7. शील सप्तमी भाद्रपद शुक्ला 7
8. सुगंघदशमी भाद्रपद शुक्ला 10
9. अनंत चतुर्दशी भाद्रपद शुक्ला 14
10. क्षमावाणी आसोज कृष्णा 1
11. ऋषभनिर्वाणोत्सव माघ कृष्णा 14
12. महावीर जयंती चैत्र शुक्ला 13
13. अक्षयतृतीया वैशाख शुक्ला 3
14. श्रुतपंचमी ज्येष्ठ शुक्ला 5
15. वीरशासन जयंती श्रावण कृष्णा 1
16. मोक्ष सप्तमी श्रावण शुक्ला 7
17. रक्षा बंधन श्रावण शुक्ला 15
18 श्री महावीर निर्वाणोत्सव दीपावलीः कार्तिक कृष्णा अमावस्या।
19 हर महा बदी ;कृष्णा पक्षद्ध, सुदी ;शुक्ल पक्षद्ध