दिव्य पुष्पांजलिः।
जयमाला
तर्ज-बाबुल की दुआएं........................... हे नाथ! आपके चरणों में, जयमाल गूंथकर लाए हम। ग्रह शांति हेतु पदकमलों में, इक थाल अघ्र्य का लाए हम।।टेक.।। कभी तन में व्याधि हुई मेरे, सिर आंख कान में दर्द हुआ। कभी उदर में शूल उठी मेरे, कभी हाथ पैर में दर्द हुआ। उस बेचैनी में भी प्रभुवर, तुमको नहिं कभी भालाएं हम। ग्रह शांति हेतु पदकमलों में, इक थाल अघ्र्य का लाए हम।।ं।। व्यापार में हानी हुई कभी, कभि चोरों ने धन लूट लिया। कभी छापा प़ने के कारण, मन में संताप व शोक हुआ।। इन हानि-लाभ के क्षण में भी, जिनधर्म में ध्यान लगाएं हम। ग्रह शांति हेतु पदकमलों में, इक थाल अघ्र्यं का लाएं हम।।2।। कुल पांच करोड़ व अड़सठ लाख, निन्यानवे सहसरू पांच शतक। इक्यासी रोगों की संख्या, हो सकती तन में सर्वाधिक।। नरकों में प्रगट होेेते ये सब, उस नर्क में कभी न जाएं हम। ग्रह शांति हेतु पदकमलों में, इक थाल अघ्र्य का लाए हम।।3।। नभ में हरने वाले नवग्रह, मानव के संग जब लग जाते है। तब कर्म असाता के कारण, वे मानव नाना दुःख पाते।। तुम पूजन फल से उन सबके, शुभरूप सहज कर पाएं हम। ग्रहशांति हेतु पदकमालें में, इस थाल अघ्र्यं का लाए हम।।4।। रवि, शशि, मंगल, बुध, गुरू एवं, वे शुक्र, शनी कहलाते हैं। राहू, केतू मिल नवग्रह ये, ज्योतिष का चक्र चलाते हैं।। इनमें से अशुभ ग्रहों से प्रभ!, नाहिं कभी सताए जाएं हम। ग्रहशांति हेतु पदकमालें में, इक थाल अघ्र्य का लाए हम।।5।। ‘‘चन्दनामती’’ बस इसीलिए, यह पूजा पाठ रचाया है। पूजा के माध्यम से प्रभुवर, भावों को शुद्ध बनाया है।। हो चरम लक्ष्य की सिद्धि नाथ! पूजन फल ऐसा पाएं हम। ग्रहशांति हेतु पदकमालें में, इक थाल अघ्र्य का लाएं हम।।6।। ऊँ ह्मीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक श्री नवतीर्थंकरेभ्यो जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा। शांतिये शांतिधारा, पुष्पांजलिः।
-दोहा-
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।