।। रात्रि-भोज ।।

आपने इन सूक्ष्म जन्तुाओं की संख्या 36450 बताइ है, यह संख्या पानी के एक सबसे छोटे बिन्दु में होने वाली जीवों की है और भी अनेक वैज्ञानिकों का यह कहना है कि पानी हमेशा छानकर ही पाीन चाहिए, क्योंकि बिना छना ानी पीने से सूक्ष्य जीव पेट में जाकर अनेक भयानक बीमारियां उत्पन्न कर देते हैं। अतः इन विषैले रोगात्पादक जंतुओं के विष से बचने के लिए छानकर पानी पीना परम आवश्यक है। ऋषि मनुजी ने भी पानी छानकर पीने का उदेश दिय है-

दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेत् जलं।
मनुस्ममृति 6/47

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अर्थात-जमीन को देखकर चलो और वस्त्र से छानकर पानी पियो। अन्यथा सूक्ष्म जीवों को मारने े अपराधी बनोगे। स्वामी दयानन्द जी ने भी ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के तीसरे समुल्लास में पानी छानकर ही पीने का उपदेश दिया। अतः धार्मिक और वैज्ञानिक सभी विद्वानों की सम्मति में पानी का छानकर ही पीना परम आवश्यक है। हमारे परम आचार्यों का कहना ही नहीं, आदेश है कि अहिंसा धर्म के पुजारियों को हमेशा रेजी के दुहरे वस्त्र स ेजल छानकर ही पीना चाहिए और जीवाणी को यथा-स्थान पहुंचना चाहिए। अतः हम पानी छानकर ही पीयें -

ब्रह्ममुहूर्त में जागें

अपने जीवन को सफल बनाने के लिए, आवश्यक कर्तव्यों का निराकुलता के साथ पालन करने के लिए, ज्ञानज्योति जगाने के िलए, स्वस्थ और समृद्धिशाली बनने के लिए हम जल्दी अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः चार बजे ही निद्रा का त्याग कर दें, पलंग से नीचे उतर आयें, आवश्यक कार्यों में लग जायें, इसी सम्बंध में किसी अंग्रेज विद्वान ने कहा है -

म्ंतसल जव इमक दंक मंतसल जव तपेम
डंामे ं उंद ीमंसजीलए ूमंजीसल ंदक ूपेमण्

जल्दी सोना, जलदी उठना, मनुष्य को स्वस्थ धनवान और बुद्धिमान बनाता है। अर्थात् प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठना ही हमारे लिए लाभप्रद है। विद्यार्थी-जीवन में भी हमें जल्दी उठने पर ही पूर्ण लाभ होगा। ब्रह्ममुहूर्त में जागकर हमें क्या-क्या करना है, यह आगे बताया जा रहा है।

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