क्षत्रियकुण्डग्राम (वैशाली) जन्मस्थली- प्राचीन समय में बिहार में विदेह प्रदेश (जनपद) प्रसिद्ध था। उस प्रदेश को तीरमुक्त प्रदेश भी कहते थे। उसमें वैशाली, मिथिली, कुण्डपुर आदि नगर स्थित थे। भगवान महावीर को विदेहवासी, विदेह के दौहित्र एवं वैशालिक भी कहा गया है। कुण्डपुर विदेह जनपद में था और वैशाली का एक उपनगर था। कुण्डपुर के दो भाग थे-क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश और ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश। इसी क्षत्रिय कुण्डपुर में भगवान महावीर का जन्म हुआ था, जहां पर ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय रहते थे। उनके राजा सिद्धार्थ थे।
वैशाली गणराज्य को वज्जिसंघ और लिच्छवीगण संघ के रूप में भी जाना जाता था। लिच्छवी संघ में सभी प्रशासनिक निर्णय सर्व सम्मति से किये जाते थे। आवश्यक होने पर शलाकाओं द्वारा छनद (मत) प्राप्त कर प्रस्ताव का समर्थन तय किया जाता था। वैशाली वैभवशाली नगरी थी। इस नगर के वैभव का वर्णन जैन साहित्य के विभिन्न ग्रंथों में प्राप्त है। वैशाली के लिच्छवी शिष्ट, विनयशील और सुरूचिसम्पन्न थे। वे उत्सवों के शौकीन थे। वैशाली का वैभव और प्रसिद्धि उन दिनों राजाओं के लिए ईष्र्या का विषय था।
वैशाली के गणपति का नाम राज चेटक था, जिनकी बड़ी पुत्री का नाम त्रिशला था। कुछ जैन ग्रन्थों में त्रिशला को चेटक की बहिन कहा गया है। राजकुमारी त्रिशला का विवाह क्षत्रिय कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ के साथ हुआ थाा। इन्हीं दोनों के पुत्र भगवान महावीर थे। महाराज सिद्धार्थ के पुत्र महावीर के वंश को नाथ वंश कहा गया है।
महावीर का जन्म वैशाली गणतंत्र में हुआ था। उस समय मगध, अंग, बंध, कलिंग आदि में राजतंत्र प्रणाली थी, जबकि वैशाली में लिच्छवियों, कपिलवस्तु में शाक्यों, कुशीनारा और पावा में मल्लों का गणराज्य था। राजतंत्र की प्रणाली में राजा ईश्वर का अवतार माना जाता था, जबकि गणतंत्र की प्रणाली में शासक मात्र मानव होता था। वैशाली गणराज्य में ऐसे ही मानव शासक सिद्धार्थ थे, जिनके यहां रानी त्रिशाला से ई. पू. 598 की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर का जन्म हुआ था। महावीर का यह जन्म उनके पूर्व भवों की लम्बी साधना का सार्थक परिणाम था।
महावीर कालीन ऐतिहासिक ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि ई. पूर्व छठी शताब्दी में वैशाली अत्यंत विकसित और प्रसिद्ध गणतंत्र था। वैशाली के लिच्छवि, कुशीनगर के मल्ल, पिप्लीवन के मोरीय, कपिलवस्तु के शाक्य और रामगांव के कोलिय इक्ष्वाकुवंशी थे। जितने गणतंत्र स्थापित हुए उनमें वृजिसंघ सबसे अधिक बलशाली और प्रतिष्ठित था। इसे वज्जीसंघ भी कहा जाता था। वज्जीसंघ की स्थापना विदेह के राजतंत्र के प्राप्त होने पर हुई थी। इसमें विदेह, लिच्छवि, ज्ञातृक, वृजि, उग्र, भोग, कौरव और इक्ष्वाकु ये आठ कुल सम्मिलित थे। विदेहों की प्राचीन राजधाानी मिथिला थी और यह वैशाली के गणतंत्र में सम्मिलित हो गयी थी। ज्ञातृक क्षत्रिय काश्यपगोत्री थे ओर इनकी राजधानी कुण्डपुर या कुण्डग्राम में थी। इसे क्षत्रियकुण्ड भी कहा जाता था। यह वैशाली का उपनगर था।
वैशाली गणतंत्र की राज्य-व्यवस्था अत्यंत दृढ़ और व्यवस्थित थी। वैशाली के निवासियों ने यह नियम बना रखा था कि प्रथम भाग में जन्मील कन्या का विवाह प्रथम भाग में ही होगा, द्वितीय या तृतीय भाग में नहीं। मध्य-भाग में जन्मी कन्या का विवाह प्रथम और द्वितीय भागों में होगा और अंतिम भाग में जन्मी कन्या का तीनों में से किसी भी भाग में विवाह किया जा सकता था। वैशाली का यह संविधान था कि वैशाली में जन्मी कन्या का विवाह किसी दूसरे स्थान में नहीं किया जा सकता है। वे तीनों भाग वैशाली, कुण्डपुर ओर वणियगाम (वाणिज्यग्राम) रहे होंगे, जो सम्पूर्ण नगर के दक्षिण-पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और पश्चिमी अंशों में व्याप्त थे। कुण्डपुर के अनन्तर उत्तर-पूर्वी दिशा में कोल्लाग-सन्निवेश था, जिसमें ज्ञातृकुल के क्षत्रिय निवास करते थे। वैशाली की समृद्धि और परम्परा के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वैशाली के कुण्डग्राम में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य निवास करते थे।
वैशाली का कुण्डग्राम या क्षत्रियकुण्ड अत्यंत प्रसिद्ध और मनोहर था। कुण्डपुर या कुण्डग्राम दो भागों में विभक्त था-क्षत्रियकुण्ड और ब्राम्हणकुण्ड। क्षत्रियकुण्ड सन्निवेश ब्राहम्हण-कुण्डपुर सन्निवेश से उत्तर में स्थित था। क्षत्रियकुण्डगा्रम में ज्ञातृवंशी क्षत्रिय रहते थे। गंडकी नदी के पश्चिमत ट पर ये दोनों ही कुण्डपुर स्थित थे और एक-दूसरे के पूर्व-पश्चिम में पड़ते थे। कुण्डपुर का वर्णन महाकवि असग ने अपने वर्द्धमानचरित में किया है। यह नगर सभी प्रकार की वस्तुओं से युक्त परकोटा, परिखा, वापिका एवं बगीचों से परिपूर्ण था। आचार्य जिनसेन प्रथम ने भी विदेह देश के अंतर्गत कुण्डपुर का वास्तविक चित्रण किया है। उन्होंनें चित्रण किया है कि यह ऐसा सुन्दर नगर है जो इन्द्र के नेत्रों की पंक्तिरूपी कमलिनियों के समूह से सुशोभित है तथा सुखरूपी जल का कुण्ड है। यह नगरी कोटरूपी पर्वतों के बड़े-बड़े धूलि, कुट्टिम ओर परिखा से वेष्टित है। इस नगरी का अतिक्रमण करने में शत्रु सदा असमर्थ रहते हैं। धान्य, गोधन एवं अन्य आव्ष्यकता की सभी वस्तुएं इस कुण्डपुर में प्राप्त हैं। यहां के निवासी इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय, प्रजा के संरक्षण और उन्नति में निरंतर तत्पर हैं। नगर का घेरा कई मीलों तक विस्तृत है।
वैशाली जनपद में स्थित यह कुण्डपुर वर्तमान में बसाढ़ या बासुकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। इस नगर स्वामी राजा सर्वाथ और रानी श्रीमती से उत्पन्न महाराज सिद्धार्थ थे। सिद्धार्थ को क्षत्रियकुण्डग्राम का प्रमुख शासक माना गया है। वैशााली-गणतंत्र उन दिनों में सर्वाधिक शक्तिशाली और लोकप्रिय थी। वैशाली के अधिनायक महाराज चेटक थे। इन्हें काशी-कोशल ने नौ लिच्छवियों और नौ मल्ल राजाओं का भी अधिनायक माना गया हैं चेटक के प्रभावकाारी व्यक्तित्व के कारण अन्य देशों के नरेश भी उनका सम्मान करते थे। चम्पा के राजा दधिवाहन, कलिंगनरेश, जितशत्रु, श्रावस्तीनरेश प्रसेनजित, मथुरा के राजा ददितोदय, देमांगदनरेश जीवंधर, पोदनपुरनरेश विद्वराज, पोलाशपुरनरेश जय एवं हस्तिनापुरनरेश चेटक के मित्र राजाओं में परिगणित थे। महाराज चेटक के इन सम्बंधों के कारण वैशाली की प्रतिष्ठ अधिक बढ़ गयी थी और वैशाली के उपनगर कुण्डपुर में तीर्थकर महावीर का जन्म होने से वैशाली की भूमि कृतार्थ हो गयी।
बिहार में नालन्दा के समीप एक कुण्डलपुर है, जहां पर एक दिगम्बर जैन मंदिर है। भक्ति से दिगम्बर जैन श्रद्धालु इस मंदिर की तीर्थवन्दना करने आते हैं। अतः कतिपय श्रद्धालु विद्वान इस मगध के कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मभूमि मान रहे हैं, किंतु प्राचीन साहित्यिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों से इसका समर्थन नहीं होता है।
महावीर का जन्म वैशाली गणतंत्र के किस भूभाग में हुआ था, बहुत दिनों तक यह शोध का विषय रहा। किंतु ऐतिहासिक अनुसंधानों और जैन परम्परा के सन्दर्भों के परिप्रेक्ष्य में विद्वानों द्वारा महावीर की जन्मस्थली सुनिश्चित कर दी गयी है। बिहार में वैशाली के भगनावशेषों के निकट वासुकण्ड नाम का एक गांव है। वहां के एक जमीन के टफकड़े पर किसान आज भी हल नहीं चलाते हैं। परम्परा से उसे पूज्य मानते आये है। वासुकंुड का यही स्थान महावीर की जन्मस्थली प्राचीन क्षत्रिय कुंडपुर था। वर्तमान में यह बिहार के वैशाली जिले में है जो हाजीपुर से 20 मील एवं मुजफ्फरपुर से 30 मील दूर हैं इस समय महावीर की इस जन्मभूमि के समीप बिहार सरकार द्वारा संचालित प्राकृत शोध संस्थान स्थित है।