विभिन्न गावों एव नगरो मे वर्षा वास करते हुए तपस्वी महावीर ने अंतिम वर्षा वास पावा मे व्यतीत किया। यहीं पर कार्तिक कृष्णा अमावस्या ई. पू. 527 को रात्रि के अंतिम प्रहर मे महावीर को निर्वाण हुआ। वे घातिया एवं अघातिया आठो कर्मो से मुक्त हो गये। उनकी आत्मा अब पूर्ण विशुद्ध हो चुकी थी। महावीर अब जरमात हो गये थे। इस समय भगवान महावीर की आयु 72 वर्ष की थी। भगवान के निर्वाण के समय मे मल्ल देश मे स्थित पावा मे कई गण नायक राजा, महाराजा उपस्थिति थे। अपार जन समूह था। उन सबको लगा कि संसार से एक भावात्मक ज्योति उठगई हैं। अतः उन्हेांन दीपक जलाकर उस स्थान को प्रकाश से भर कर उस अलौकिक प्रकाश को प्रणाम किया।
भगवान महावीर के परिनिर्वाण का विस्तृत वर्णन जैन परम्परा के विभिनन ग्रन्थो मे उपलब्ध होता है कल्प सूत्र, तिलोयपण्णत्ति, धवाटीका, हरिवंष पुराण, आचार्य हेमचन्द्र कृत त्रिशष्टि शला का पुरूष चरित आदि के वर्णनो को पढ़ने से महावीर के निर्वाण के समय का पूरा चित्र सामने उपस्थित हो जाता है। इस अवसर्पिनी काल के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का यह निर्वाण कल्याण कथा, अतः यह एक ऐतिहासिक महोत्सव बन गया। उसी दिन अमावस्या की रात्रि को भगवान महावीर के मुख्य गणधर इन्द्रभूति गौतम को भी केवल ज्ञान हुआ था, अतः कार्तिक कृष्ण अमावस्या का प्रातःकाल और रात्रि दोनो ही महोत्सव के कारण बन गये। उस महोत्सव मे उपस्थित देव और मानवो के द्वारा जो रत्नो का प्रकाश किया गया वह प्रकाश आज तक दीपावली के रूप मे सम्पूर्ण भारत मे मानाया जाता है।
भगवान महावीर की निर्वाण-भूमि मध्यमा पावा नगरी कही गयी है। पावा नाम से उस समय तीन नगर थे, विद्वानों ने जैन परम्परा के ग्रन्थों मे वर्णित भगवान महावीर के विभिन्न प्रसंगों के आधार पर चम्पा और राजगृह के बीच मे स्थित मध्यमा पावा को भगवान महावीर की निर्वाण का स्वीकृत किया गया है वर्तमान मे पटना जिले की पावापुरी ही भगवान महावीर की निर्वाण भूमि हैं यहां पर एक जल मंदिर बना हुआ है और प्राचीन समय से ही इस क्षेत्र की वंदना करने के लिए जैन संघ यहां आते रहे हैं। वर्तमान मे सभी जैन सम्प्रदाय के लोग इस निर्वाण भूमि पावापुरी की भक्तिपूर्वक वन्दना करतेे हैं। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान महावीर की निर्वाण-स्मृति मे दीप मालिका का त्यौहार मनाया जाता हैं।