महावीर का प्रथम उपदेश उस समय प्रारम्भ हुआ , जब उसे सुनने के लिए योग्य पात्र इन्द्रभूति गौतम उनकी सभा में उपस्थित हुआ। दिगम्बर मान्यता के अनुसार महावीर का यह प्रथम उपदेश राजगिरी (राजगृह) में विपुलाचल पर्वत पर हुआ था। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार यह मध्यम पावा के महासेन उद्यान में हुआथा, जो बिहार में राजगिर (राजगृह) के समीप है। इस सभा में इन्द्रभूमि गौतम के अतिरिक्त महावीर के प्रथम देशना सुनने के लिए असंख्य जनसमुदाय उपस्थित था। महावीर के उपदेशा को जन सामान्य की भाषा प्राकृत में संकलित किया गया, जिसे अर्धमागधी भाषा के नाम से भी जाना गया है। महावीर के उपदेश में जगत के स्वरूप की व्याख्या, आत्मा और कर्म का विश्लेषण, आत्मा-विकास के मार्ग का प्रतिपादन, व्यक्ति और समाज के उत्थान की बात तथा हिंसा-अहिंसा का विवेक आदि का विवेचन था।
अहिंसा की व्याख्या करते हुए महावीर ने कहा था-प्राणियों को न मारना चाहिए, न उन पर अनुचित शासन करना चाहिए न उन्हें पराधीन करना चाहिए, न उन्हें परिताप देना चाहिए और न उन्हें उद्विग्न करना चाहिए, क्योंकि समस्त प्राणी जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। जीवन सभी को प्रिय है। आत्मा में कोई भेद नहीं हैं। अहिंसा से बढ़कर कोई दूसरी भावना नहीं है। जैसे भयभीत व्यक्तियों के लिए शरण, भूखों के लिए भोजन, प्यासों के लिए पानी, पक्षियों के लिए आकाश और रोगियों के लिए औषधि आवश्यक है वैसे ही संसार में जीवों के लिए भगवती अहिंसा आवश्यक हैं।
इन्द्रभूति आदि 11 गणधरों के बाद अन्य विद्वानों ने भी महावीर के उपदेशाों को धारण कर उनके शिष्यत्व को ग्रहण किया। महावीर के उपदेशों को धारण करने, उन्हें सुरक्षित रखने एवं गण के नायक होने के कारण वे विद्वान गणधर कहे गये हैं। इस तरह महावीर के उपदेशों की अनेक सभाएं हुई, जिनमें हजारों नर-नारी उनके शिष्य बने तथा सहस्त्रों व्यक्तियों ने उनके धर्म को स्वीकार किया। ये सभी अनुयायी चतुर्विध संघ के नाम से जाने गये हैं। श्रमण-श्रमणी एवं श्रावक-श्राविका का यह सम्मिलित संघ माहवीर के उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में सहायक बना।
इस प्रकार केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात जन-कल्याण की बात जनभाषा प्राकृत में प्रचरित करते हुए केवलज्ञानी महावीर तीस वर्ष तक विभिन्न स्थानों में विभिन्न स्तरों के लोगों के बीच भ्रमण करते रहे। राजा महाराजाओं से उनकी चर्चा हुई तो उन्हेांने उस लोकशासन के सूत्र समझाये जिसमें किसी का शोषण न हो तथाा अहिंसा की प्रतिष्ठा हो। जब वे कृषकों, कर्मकारों और व्यापारियों से मिले तो उन्होंने उन्हें जीविकोपार्जन में प्रामाणिक रहने की बात कही। किसी के अधिकार को हड़पने, हनन करने को मना किया तथा सदाचार का जीवन जीने की उनहें कला सिखाायी। वे जब नारी समाज को लक्ष्य कर बोलते तो उसे अपपनी शक्ति को पहिचानने के लिए प्रेरित करते। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नारी के विकास की सम्भावनाओं पर प्रकाश डालते।
इस तरह विभिन्न स्तर के लोगों की जिज्ञासाओं एवं समस्याओं का समाधान महावीर ने अपने तीर्थंकर जीवन में किया। उन्होंने तत्व और धर्म के वास्तविक स्वरूप की व्याख्या कर आत्म-कल्याण का मार्ग सभी के लिए प्रशस्त किया। इस तरह महावीर के उपदेशों ने बैद्धिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन को समग्र रूप से प्रभावित किया हैं महावीर के उपदेशों का प्रभाव किसी वर्ग विशेष तक सीमित नहीं था। उस समय के दलित या निम्न वर्ग से लेकर राजाओं, महाराजाओं तक उनके उपदेशों काप्रभाव पहुंचा। इस तरह उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में वैचारिक क्रांति का सूत्रपात किया जिससे जीवन का आचार पक्ष भी सुदृढ़ हुआ।