।। शुद्धि ।।

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9 क्षेत्र शुद्धि - जहां चैका लगाया गया है वह स्थानभी शुद्ध होना चाहिए। वहां आस-पास में शौचालय, पेशाबघर, पशुओं की ार, चप्पल-जूते, चमड़े की बेल्ट, पर्स या अनरू वस्तु के बने हुए, सीप-शंखादि हड्डी से निर्मित कोई वस्तु शराब, मांस, अण्डा, मधु (शहर) आदि पदार्थ भी वहां (समीप में अदृश्य रूप में भी) न हो। किसी पंचेन्द्रिय मृत जीव का कलेवर, चूहा, बिल्ली, छिपकली, मेंढ़क, सर्प इत्यादि समीप में भी न हों तथा चैके में दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चतुइन्द्रिय जीव का कलेवर आदि का मुख, आंख, नाक, कान आदि क ामल न हो, चैके में आलू, प्यास, अदरक, अरबी, मूली, गाजर, शलजम, बैंगलन, गोभी, अचार, नवनीत (अमर्यादित मक्खन) तथ ऐसे पदार्थ जिन्हें देख कर घृणा उत्पन्न होती हो वे वहां न हों। इसके अलावा चैके में बीड़ी, सिगरेट का पैकेट, तम्बाकू, अफीम, भांग, चरस, गांजा, आदि पदार्थ या बारूद आदि से निर्मित अतिशबाजी के पदार्थ न हों। चैके में पर्याप्त प्राकृति प्रकाश हो, वहां अशुद्ध वस्त्रादि भी न हो, ऊन के वस्त्र, रेशम आदि के भी वस्त्र न हों, टी.वी. पंखा, कूलर आदि भी न हों, यदि हों तो ढंके हों तथा बंद हो, चालू नही हों। उस चैके में कुदेव, गुगुरू, नेता, अभिनेताओं, नायक, खलनायक, हीरो-हीरोइन आदि के अश्लील चित्रादि न हों। पंच परमेष्ठी आदि के चित्र लगे हों तो र्कोइ बाधा नहीं है चैका शुद्ध हो, सीमा रेखा स्पष्ट हो, कपड़े का शुद्ध धवल वंदोवा हो जो अति नीचा न हो। सत्पात्रों का आहार उसी स्थान पर कराये जहां रसोई बनायी जाती हैं, अन्यत्र स्थानों पर उचित नहीं हैे।

10 काल शुद्धि - दिगम्बर जैन श्रमणों का आहर-चर्या का काल सूर्योदय के तीन घड़ी बाद से, मध्यान्ह के सामायिक व स्वाध्याय काल के पूर्व तक, यदि प्रातः काल चार्य के लिए नहीं निकले हैं तो मध्यान्ह की देव वंदना (सामायिक) के बाद से सूर्यास्त के तीन घड़ी पूर्व तक का ही है, इसके पूर्व व बाद का काल शुद्ध नहीं है, सूर्यादय की 3 घड़ी के बाद में ही चैके का कार्य शुरू करना चाहिए एवं सूर्यास्त के तीन घड़ी पूर्व ही सभी कार्य निपटाने का प्रयास करना चाहिए। सूतक-पातक का काल, सूर्यादि के ग्रहण का काल, अग्नि दाह का काल (जब नगर में शीघ्र ही आग लगी हो) समीप ही किसी की मृत्यु हुई हो अथवा अन्य कोई अप्रत्याशित घटना जैसे जो अत्यन्त शोक उत्पन्न करने वाली हो, संघ में किसी का समाधि मरण हो चुका हो, वह काल भी परिहार करने योग्य है।

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