जो दाता के द्वारा दिये गये दान दान के फल को दूषित करे, वे दूषण कहलाते हैं। बड़े से बड़ा कार्य भी यदि दूषित है तो प्रशंसनीय नही है किन्तु लघु कार्य दान जैसा उत्तम कार्य (जिसके लिए स्वर्ग के देव, तिर्यच्च, नारकी, भोग-भूमि के सभी मनुष्य भी तरसते हैं, क्योंकि उनके लिए यह कार्य असंभव है तथा कर्म भूमि के भी सभी मनुष्य यह दान नहीं दे सकते हैं, जिनके अन्दर उक्त अर्हताएं होगी वह देने का अधिकारी हो सकता है) निर्दोष रीति से आहार दे सके, दूषणो से बच सके।तथैव वे 5 दूषण निम्नांकित हैं:
1 - अनादर पूर्वक दान
2 - उदास होकर दान देना
3 - कटु शब्द पूर्वक दान देना
4 - विलम्बता से दान देना
5 - दान देकर पश्चाताप करना
1 - अनादर पूर्वक दान देना - यदि दाता अनादर पूर्वक दान दे रहा है तो उस दान का फल उसे पूर्ण नहीं मिल सकता एवं अनादर पूर्वक दान देने से ही पुण्य की क्षीणता व पापों की वृद्धि होती है अनादर पूर्वक दिया दान धर्म नही हो सकता। अतः दाता को चाहिए कि वह सत् पात्रो को नवध भक्ति पूर्वक, आदर-सम्मान, श्रद्धादि 7 सामान्य गुणों व विशेषगुणों व 5 भूषण से युक्त हो कर ही आहारादि दान दें।
2 - उदास हो कर दान देना - यदि दान उदासता पूर्वक दिया गया है तो वह भी पाप के संवर व पुण्य के आश्रव मे सार्थक कारण नहीं बन सकेगा। उदासीत ना श्रद्धा, भक्ति सपर्पण की न्यूवता सिद्ध करती है इस के बिना दान समीचीन फल प्रदायी नही हो सकता अतः उसे (दाता को) आनन्द पूर्वक दान देना चाहिए।
3 - कटुपूर्वक दान देना - यदि दाता कटुकवचन बोल कर दान देता है तो अमृतोपमा आहार भीविष के समान अनर्थकारी हो जाता है। ऐसा दान सुगति का नही दुर्गति का ही कारण होगा वह यश वृद्धि नही उपयश ही करेगा। अतः दाता मधुर वचनो का ही प्रयोग करे या प्रसन्न चित मौन रहे। आवश्यकता पड़ने पर बोले अनावश्यक नहीं।
4 - विलम्बता से दान देना - जो दाता समयानुसार दान न दे कर विलम्बता से दान देता है तो उसे दान का समीचीन फल नहीं मिल पाता। सत्पात्रो को दान देते समय यदि समय का ध्यान नहीं रखा तो वह दान व्यर्थ ही है। साधक अंतराय मान कर लौट भी सकते हैं। हो सकता है वे आपके आहारादि को स्वीकार किसी श्रावक को पानी उसी समय पिलाओ ज ब वह प्यासा हो। जब प्यास से वहव्याकुल था तब पानी न पिलाकर मृत्यु के उपरंत सैक्ड़ों घड़े ढोलना भी व्यर्थ है अतः दान के समय विलम्ब नही करना चाहिए। समय निकलने पर पुनः लौटकर नही आता। अवसर का लाभ उठाने वाला बुद्धिमान एवं अवसर चूकने वाला मूर्ख ही होता हैं