1 - आदर पूर्वक दान देना
2 - आनन्द पूर्वक दान देना
3 - मधुर वचनों के साथ दान देना
4 - निर्मल भावो से दान देना
5 - दान देकर अपना अहोभाग्य मानना
1 - आदर पूर्वक दान देना-सत् पात्रो को श्रद्धा, शक्ति, भक्ति, विनय, समर्पण एव विशेष सम्मान करते हुए दान देना चाहिए। यह शुभ कार्य योग है जो पुण्यास्त्रय, पाप-संवर, सविपाक निर्जरा, कथाचित् अविपाक निर्जरा का हेतु एव परम्परा से मोक्ष का कारण है।
2 - आनन्द पूर्वक दान देना-सत् पात्रो को दान अनन्द के साथ देना चाहिए। मन में शोक, भय, जुगुप्सा, उदासीनता, क्रोध, मान, छलकपट, लोभ-जन्य परिणाम न हो। आहार दान हर्षित मन से, पुलकित तन से, मधुर-वचनों के साथ ही देना चाहिए।
3 - मधुर वचनों के साथ दान देना-दाता सत्पात्रो को दान देते समय माँ के समान वात्सल्य, सच्चे भक्त की तरह श्रद्धा, भक्ति, समपर्ण से अभिप्रेरित होता हुआ मिष्ठवचनो को बोलता हुआ दान दें। मधुर वचन भी परमौषधि के समान आरोग्य वर्द्धक, विशुद्धि मे वृद्धि कारक व संक्लेशता के हारक होते हैं।
4 - निर्मल भावो से दान देना-सत पात्रो को आहारादि देते समय दाता के परिणाम अत्यन्त विशुद्ध हों। उस समय परिणामो मे संक्लेशता, संकीर्णता, वैमनस्यकता का समावेश न हो। कषायोद्रेक, विषया शक्ति, पीड़ा, भौतिक पदार्थों की आकांशा, आर्त-रौद्र ध्यान जनित परिणाम, कुराग द्वेष व तीव्र मोहजन्य परिणाम नही होने चाहिए।
5 - दान दे कर अपना अहोभाग्य मानना-आज मेरा धन, तन, वचन, मन और समूचा जीवन ही धन्य हो गया। आज की ये घड़ी, ये दिन ही नही पूरा जीवन पावन हुआ। यह क्षेत्र, काल, द्रव्य भाव भी परम पवित्र हुए। आज मेरा अहोभाग्य है जो कि दिगम्बर, परमवीतरागी निग्र्रन्थ महातपस्वी, अर्हन्त रूप धारक, कलिकाल के चलते फिरते भगवन्तों के पावन चरण-कमलमेरी कुटिया मे पड़े। धन्य है इन पृथ्वी के देवताओं के लिए, जिन से सम्पूर्ण वसुन्धरा बन्धन से, दुखो से, कर्मो से मुक्ति का मार्ग सीख सकती है। यह सौभाग्य सौ धर्मइन्द्र आदि देवों के लिए दुर्लभतम है (असम्भव है) वह सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। मेरा घर जो कि आज तक (जब तक दिगम्बर संतो ंके चरण न पड़े तब तक) श्मशान या नरक के समान था लेकिन अब मानो वह स्वर्ग के समान आनन्द देने लगा है, अमृत वृष्टि करने वाला है। इत्यादि प्रकार से अपने भाग्य की सराहना करनी चाहिए।