प्रश्न 91 - व्युत्सर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर - तयाग को व्युत्सर्ग कहते हैं।
प्रश्न 92 - व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है।
उत्तर - व्युत्सर्ग दो प्रकार का है।
प्रश्न 93 - व्युत्सर्ग के दो भेद कौन से है?
उत्तर - बाहय उपधि और अभ्यनतर उपधि।
प्रश्न 94 - बाह्य उपधि व्युत्सर्ग क्या है?
उत्तर - जो बाह्य पदार्थ आत्मा के साथ एकत्व को प्राप्त नहीं हुये हैं उनका त्याग करना बाह्य उपधि व्युत्सर्ग है अर्थात इन्द्रियों के विषयों का त्याग करना।
प्रश्न 95 - अभ्यन्तरोपधि व्युत्सर्ग क्या है?
उत्तर - क्रोधादि भावों की निवृत्ति अभ्यन्तरोपधि व्युत्सर्ग है। क्रोध माया लोभ, मिथ्यात्व, हास्य, रति, अरति, शोक, भय जुगुप्सा आदि अभ्यंतर दोषों की निवृत्ति अभ्यंतर परिग्रह का त्याग एवं काम के ममत्व का त्याग परिग्रह का त्याग अभ्यंतरोपधि व्युत्सर्ग है।
प्रश्न 96 - ध्यान किसे कहते है?
उत्तर - उत्तम संहनन वाले का एक विषय में चित्तवृत्ति को रोकना ध्यान है। जो अन्तर्मुर्हुत काल तक चलता है।
प्रश्न 97 - ध्यान के कितने भेद हैं?
उत्तर - ध्यान के चार भेद हैं।
प्रश्न 98 - ध्यान के चार भेदों के नाम बताइये।
उत्तर - 1 आर्तंध्यान, 2 रौद्रध्यान 3 धर्मध्यान एव 4. शुक्ल ध्यान।
प्रश्न 99 - कौन से ध्यान संसार के कारण माने गये हैं?
उत्तर - आर्त और रौद्र ध्यान संसार के कारण माने गये हैं।
प्रश्न 100 - कौन से ध्यान मोक्ष के कारण हैं?
उत्तर - धर्म और शुक्लध्यान मोक्ष के कारण हैं।
प्रश्न 101 - आर्तध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - दुख में होने वाले ध्यान को आर्तध्यान कहते हैं।
प्रश्न 102 - रौद्रध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - क्रूर परिणामों से होने वाला ध्यान रौद्रध्यान कहलाता है।
प्रश्न 103 - धर्मध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - धर्म के युक्त ध्यान को धर्मध्यान कहते हैं।
प्रश्न 104 - शुक्ल ध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - शुद्ध ध्यान को शुक्ल ध्यान कहते हैं।
प्रश्न 105 - आर्तंध्यान कितने प्रकर का होता है?
उत्तर - आर्तंध्यान चार प्रकार का होता है।
प्रश्न 106 - आर्तयान के चार भेदों के नाम बताइये।
उत्तर - 1 - इष्ट वियोगज आर्तध्यान 2 - अनिष्ट संयोग आर्तध्यान 3 - पीड़ा जन्य आर्तध्यान एवं 4 - निदान आर्तध्यान।
प्रश्न 107 - इष्ट वियोगज आर्तध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - इष्ट का वियोग हो जाने पर बार-बार उसी का चिंतवन करना इष्ट वियोगज आर्तध्यान कहलाता है।
प्रश्न 108 - अनिष्ट संयोग आर्तध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - अनिष्ट का संयोग हो जाने पर बार-बार उससे दूर होने के लिए सोचना अनिष्ट संयोगज आर्तध्यान है।
प्रश्न 109 - पीड़जन्य आर्तध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - शरीर में रोग या पीड़ा होने पर बार-बार उसे दूर करने की सोचना पीड़ाजन्य आर्तध्यान कहलाता है।
प्रश्न 110 - निदान आर्तध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - आगामी काल में सुखों की इच्छा करना, इस व्रत के फल से मैं राजा हो जाऊं आदि सोचना निदान आर्तंध्यान है।
प्रश्न 111 - रौद्रध्यान के कितने भेद होते हैं?
उत्तर - रौद्रध्यान के भी चार भेद होते हैं।
प्रश्न 112 - रौद्रध्यान के भेदों के नाम बताइये।
उत्तर - 1 हिंसानंदी 2 मृषानंदी 3 चैर्यानंदी 4 परिग्रहानंदी।
प्रश्न 113 - हिंसानंदी रौद्र ध्यान किसे कहते हैं?
उत्तर - हिंसा में शिकार खेलने आदि में आनन्द मानना हिंसानंदी रौद्रध्यान है।