प्रश्न 24 - भोजन के छः रसों के नाम बताइये?
उत्तर - 1 नमक 2 घी 3 दूध 4 दही 5 मीठा एवं 6 तेल। ये भोजन के छः रस जाने जाते हैं।
प्रश्न 25 - रसों का त्याग करने से क्या लाभ है?
उत्तर - रसों का त्याग करके आहार लेने से भोजन में आशक्ति कम होती है।
प्रश्न 26 - विवक्त शय्यासन किसे कहते हैं?
उत्तर - एकांत स्थान में शयन करने (सोने) को विवक्त शय्यासन कहते हैं।
प्रश्न 27 - एकांत स्थान में सोने से क्या लाभ है?
उत्तर - एकांत स्थान में सोने से भावों में शुद्धता बनी रहती है, बुरे विचार नहीं आते हैं।
प्रश्न 28 - कायक्लेश नाम का तप क्या है?
उत्तर - शरीर से, गर्मी सर्दी आदि बाईस परिषहों को शांत भाव से सहन करना कायक्लेश नाम का तप है।
प्रश्न 29 - काय क्लेश नाम का तप क्यों किया जाता है?
उत्तर - शरीर से ममत्व हटाने तथा ध्यान की एकाग्रत रखने को काय क्लेश नाम का तप किया जाता है।
प्रश्न 30 - परिषह किसे कहते हैं?
उत्तर - ऊपरी बाधाओं- सर्दी, गर्मी दंश-मसक आदि को सहन करना परिषह कहलाता है।
प्रश्न 31 - बईस परिषहों के नाम बताइये।
उत्तर - 1 क्षुत 2 पिपासा 3 शीत 4 उष्ण 5 दंशमशक 6 नागन्य 7 अरति 8 स्त्री 9 चर्या 10 निषधा 11 शय्या, 12 आक्रोश 13 बध, 14 याचना, 15 अलाभ, 16 रोग, 17 तृणस्पर्श, 18 मल 19 सत्कारपुरूषकार 20 प्रज्ञा, 21 अज्ञान 22 अदर्शन।
प्रश्न 32 - श्रुत परिषह् जय किसे कहते हैं?
उत्तर - भूख की अग्नि को धैर्य और साम्य भाव से सहन करना श्रुत् या क्षुधा परिषह जय है।
प्रश्न 33 - पिपाषा परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - तृषा, पिपाषा, प्यास को बुझाने के कारण मिलने पर प्यास के वशीभूत न होकर साम्यभाव से सहन करना पिपाषा जय है।
प्रश्न 34 - शीत परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - शीत सर्दी को साम्य भाव से सहन करते हुए उसके प्रतिकार की अभिलाषा नहीं करते हुए संयम का पालन करना शीत परिषजय है।
प्रश्न 35 - उष्ण परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - गर्मी को साम्य भाव से सहन करना तथा प्रतिकार नहीं करना ही उष्ण परिषह जय है।
प्रश्न 36 - दंशमशक परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - दंशमशक का अर्थ डांस मच्छर काटने से है, दंशमशक की बाधा को सहन करके इसका प्रतिकार नहीं करना। साम्यभाव से सहन करना दंशमशक परिषह जय है।
प्रश्न 37 - नाग्न्य परिषह जय क्या है?
उत्तर - जनम अवस्था के समान, दिगम्बर रूप को धारण करके मिथ्या दृष्टियों के द्वारा की गई निंदा को सहन करना तथा नाग्नय के दोषों, मनोविकारों को जीतना नागन्य परिषह जय है।
प्रश्न 38 - अरति परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - संयम से रति करना अरति परिषह जय कहलाता है। क्षुधा की बाधा की बाधा में, संयम की रक्षा में, इन्द्रियों को जीतने में, व्रतों के पालन में, विषम परिस्थितियों के आने में धैर्य साम्यभावा रखना अरति परिषह जय है।
प्रश्न 39 - स्त्री परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - स्त्रीयों के रूप देखना उनके स्पर्श के भावनादि, का त्याग करना स्त्री परिषह जय है।
प्रश्न 40 - चर्या परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - गमन के दोषों का निग्रह करना चर्या परिषह जय है। भ्रमण मार्ग में कंकड़ आदि से पैरों के कट जाने पर खेद खिन्न न होना पूर्व अनुभव हुए यान वाहन आदि का स्मरण् नहीं करना चर्या परिषह जय है।
प्रश्न 41 - शयन परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - आगमानुसार शयन करना उससे चलित नहीं होना शयन परिषह जय है।
प्रश्न 42 - आक्रोश परिषह जय किसे कहते हैं?
उत्तर - अशिष्ट, क्रोध, तीव्र मोहाविष्ट, मिथ्यादृष्टि, आर्य, मलेच्छ, खल, पापाचारी, पागल, घमंडी शंकित आदि दुष्टजनों के द्वारा प्रयुक्त शब्द, मा, धिक्कार, तिरिस्कार, अवज्ञा, कठोर, कर्कश, हृदय भेदी आदि शब्दों को सहन करना आक्रोश परिषह जय है।
प्रश्न 43 - वध परिषह जय क्या है?
उत्तर - जान से माने वालों के प्रति भी क्रोध नहीं करना वध परिषह जय है।
प्रश्न 44 - याचना परिषह जय क्या है?
उत्तर - प्राण जाने पर भी आहार आदि की याचना नहीं करना, दीनता से निवृत्त होना याचना परिषह जय है।
प्रश्न 45 - अलाभ परिषय जय क्या है?
उत्तर - अलाभ में भी लाभ के समान सन्तुष्ट होने वाले तपस्वी के अलाभ परिषह जय होता है। भिक्षा के न मिलने पर संक्लेश के परिणाम नहीं होना अलाभ परिषह जय है।
प्रश्न 46 - रोग परिषह जय क्या है?
उत्तर - नाना प्रकार के रोगों व्याधियों के प्रतिकार करने की इच्छा नहीं करना साम्यभाव से सहन करना ही रोग परिषह जय है।