प्रश्न 47 - तृण परिषह जय क्या है?
उत्तर - तृणादि के निमित्त से वेदना होने पर भी मन का निश्चल रहना उससे दुःख नहीं मानना तृण परिषह जय है।
प्रश्न 48 - मल परिषह जय क्या है?
उत्तर - स्व और पर के द्वारा मल के उपचय उपचय के संकल्प को नहीं करना मल परिषह जय है, शरीर के मलिन होने पर भी भावों में मलिनता नहीं होना मल परिषह जय है।
प्रश्न 49 - प्रज्ञा परिषह जय क्या है?
उत्तर - बुद्धि का विकास होने पर भी मद न करना प्रज्ञा परिषह जय है।
प्रश्न 50 - अज्ञान परिषह जय क्या है?
उत्तर - अज्ञान के कारण होने वाले अपमान एवं ज्ञान की अभिलाषा को सहन करना अज्ञान परिषह जय है।
प्रश्न 51 - अदर्शन परिषह क्या है?
उत्तर - अनेक प्रकार से अनेकों वर्षों तक कठिन से कठिन तपादि करने पर भी यदि ऋद्धियां उत्पन्न न हों तो भी सम्यग्दर्शन चारित्र संयमादि से च्युत न होना अदर्शन परिषह जय है।
प्रश्न 52 - अंतरंग तप क्या है?
उत्तर - जो तप आत्मा से अंतर से किया जाता है वह अंतरंग तप कहलाता है।
प्रश्न 53 - अंतरंग तप कितने प्रकार का है?
उत्तर - अंतरंग तप छः प्रकार का है।
प्रश्न 54 - अंतरंग तपों के कौन-कौन से नाम हैं?
उत्तर - 1 प्रायश्चित, 2 विनय, 3 वैयावृत्य, 4 स्वाध्याय, 5 व्युत्सर्ग एवं, 6 ध्यान।
प्रश्न 55 - प्रायश्चित तप किसे कहते हैं?
उत्तर - प्रमाद जन्य दोष का परिहार करना प्रायश्चित तपह ै।
प्रश्न 56 - विनय तप किसे कहते हैं?
उत्तर - पूज्य पुरूषों का आदर करना विनय तप है।
प्रश्न 57 - वैय्यावृत्य तप किसे कहते हैं?
उत्तर - साधुओं के शरीर की संवा करना पैर दबाना आदि वैय्यावृत्य नाम का तप है।
प्रश्न 58 - स्वाध्याय तप क्या है?
उत्तर - आलस्य का त्याग कर ज्ञान की आराधना करना स्वाध्याय तप है।
प्रश्न 59 - व्युत्सर्ग तप क्या है?
उत्तर - अहंकार ममकार रूप संकल्प का त्याग करना ही व्युत्सर्ग नाम का तप है।
प्रश्न 60 - ध्यान तप किसे कहते हैं?
उत्तर - चित्त के विक्षेप का त्याग करना ध्यान तप है।
प्रश्न 61 - प्रायश्चित तप कितने प्रकार का है?
उत्तर - प्रायश्चित तप नौ प्रकार का है।
प्रश्न 62 - प्रायश्चित तप के नौ भेद गिनाइये।
उत्तर - 1 - आलोचना 2 - प्रतिक्रमण 3 - तदुभय 4 - विवेक 5 - व्युत्सर्ग 6 - तप 7 - छेद 8 - परिहार एवं 9 - उपस्थापना।
प्रश्न 63 - आलोचना तप क्या है?
उत्तर - गुरू के निकट दस दोषों को टालकर अपने प्रमाद का निवेदन करना आलोचना है।
प्रश्न 64 - प्रतिक्रमण किसे कहते हैं?
उत्तर - मेरा दोष मिथ्या हो, गुरू से ऐसा निवेदन करके अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना प्रतिक्रमण है।
प्रश्न 65 - तदुभय प्रायश्चित क्या है?
उत्तर - आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों का संसर्ग होने पर अपने दोषों का शोधन करना तदुभय प्रायश्चित है।
प्रश्न 66 - विवेक प्रायश्चित किसे कहते हैं?
उत्तर - संसक्त हुए अन्न पान और उपकरण आदि का विभाग करना विवेक प्रायश्चित है।
प्रश्न 67 - व्युत्सर्ग प्रायश्चित किसे कहते हैं?
उत्तर - काोत्सर्ग आदि करना व्युत्सर्क प्रायश्चित कहलाता है।