।। आओ पूजन करें ।।
शांति पाठ

शांतिनाथ मुख शशि उनहारी, शील गुणव्रत संयमधारी।
लखन एक सौ साठ विराजें, निरखत नयन कमल दल लाजै।।

अर्थ- हे शांतिनाथ भगवान! आपका चन्द्रमा के समान निर्मल मुख है। आप शील, गुण, व्रत और संयम के धारक हैं। आपकी देह में 108 शुभ लक्षण हैं और आपके नेत्रों को देखकर कमल दल भी शरमा जाते हैं। आप मुनियों में श्रेष्ठ हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

पंचम चक्रवर्ती पदधारी, सोलह तीर्थंकर सुखकारी।
इन्द्र नरेन्द्र पूज्य जिननायक, नमो शांति हित शांति विधायक।।

अर्थ- आप पांचवें चक्रवर्ती हैं और आपकी इन्द्र तथा नरेन्द्र सदा पूजन करते हैं। चारों गणों (मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका) की शांति की इच्छा से शांतिकत्र्ता सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ को नमस्कार करता हूं।

दिव्य विटप पहुपन की वर्षा दुन्दुभि आसन वाणी सरसा।
छत्र चमर भामण्डल भारी, ये तव प्रातिहार्य मनहारी।।

अर्थ- 1 अशोक वृक्ष 2 देवों द्वार की गई फूलों की बरसा
3 दुन्दुभि
4 ध्वनि का पहुंचना
5 सिर पर तीन छत्रों का होना
6 चमरों का ढुरना
7 भामण्डल का होन-ये सात प्रातिहार्य होते है। इनसे आप शोभायमान हैं।

शांति जिनेश शांति सुखदाई, जगत पूज्य पूजौं सिर नाई।
परम शांति दीजै हम सबको, पढ़े तिन्हें पुनि चार संघ को।।

अर्थ- संसार में पूजनीय और शांति करने वाले और सुख को देने वाले श्री शांतिनाथ तीर्थंकर को मस्तक नमाकर नमस्कार करता हूं। वे शांतिनाथ भगवान चतुर्विध संघ को मुझे और पढ़ने वाले को सदा परम शांति प्रदान करें।

पूजैं जिन्हें मुकुटहार किरीट लाके,
इन्द्रादि देव अरू पूज्य पदाब्ज जाके।
सो शांतिनाथ वरवंश जगत प्रदीप,
मेरे लिए करहिं शांति सदा अनूप।।

अर्थ- मुकुट, कुण्डल, हार और रत्न को धारण करने वाले इन्द्रदि देव जिनके चरा कमलों कीपूजा करते हैं। ऐसे इक्ष्वाकु आदि उत्तम वंश में उत्पन्न होने वाले और संसार को प्रकाशित करने वाले तीर्थंकर मुझे अनुपम शांति प्रदान करें।

संपूजकों को प्रतिपालकों को, यतीनकों और यतिनायकों को।
राजा प्रजा राष्ट्र सुदेश को ले, कीजे सुखी हे जिन शांति को दे।।

अर्थ- हे जिनेन्द्र देव! आप पूजन करने वालेां को, रक्षा करने वालों को, सामान्य मुनियों को, यति नायकों को, देश, राष्ट्र,नगर और राजा को सदा शांति प्रदान करें।

होवे सारी प्रजा को सुख, बलयुत हो धर्मधारी नरेशा।
होवे वर्षा समय पे, तिलभर न रहे व्याधियों का अंदेशा।।
होवे चोराी न जारी सुसमय बरतै, हो न दुष्काल मारी।
सारे ही देश धारैं, जिनवर-वृष को, जो सदा सौख्यकारी।।

अर्थ- सब प्रजा का कुशल हो, राजा बलवान और धर्मात्मा हो, मेघ (बादल) समय-समय पर वर्षा करें। सब रोगों का नाश हो, संसार में प्राणियों को एक क्षण भी दुर्भिक्ष, चोरी और बीमारी आदि के दुख न हों और सब संसार सदा जिन वर धर्म को धारण करे।

दोहा- घाति कर्म जिन नाश करि, पायो केवल राज।
शांति करो सब जगत में, वृषभादिक जिनराज।।

अर्थ- चार घातिया कर्मों को नष्ट करने वाले और केवल ज्ञानरूपी सूर्य अर्थात केवल ज्ञानी वृषभ आदि जिनेन्द्र भगवन जगत को शांति प्रदान करें।

(यह पढ़कर झारी में जल, चन्दन की तीन धारा छोड़ें।)

शास्त्रों का हो पठन सुखदा, लाभ सत्संगती का।
सद्वृत्तों का सुजस कहके, दोष ढाकूं सभी का।।
बोलूं प्यारे वचन हित के, आपका रूप ध्याऊं।
तौ लौं सेऊं चरण जिनके मोक्ष जौ लौं न पाऊं।।

अर्थ- हे भगवान! सुखकारी शास्त्रों का स्वाध्याय हो और सदा उत्तम पुरूषों की संगति रहे, सदाचारी पुरूषों का गुणगान करें (सीाी के दोष छिपाऊं)। सभी जीवों का हित करने वाले वचन बोलें ओर जब तक हमें मोक्ष की प्राप्ति न हो जावे तब तक प्रत्येक जन्म में आपके रूप का अवलोकन करूं और आपके चरणों की सदा सेवा करता रहूं।

तव पद मेरे हिय में, मम हिय तेरे पुनीत चरणों में।
तब लौं लीन लहूं प्रभु, जब लौं पाया न मुक्ति पद मैंने।।

अर्थ- हे जिनेन्द्र देव!् तब तक आपके दोनों चरण मेरे हृदय में विराजमान रहें और मेरा हृदय आपके पवित्र चरणों में लीन रहे जब तक मुझे आपके समान मोक्ष प्राप्ति न हो जावे।

अक्षर, पद, मात्रा से दूषित जो कछु कहा गया मुझसे।
क्षमा करो प्रभु सब करूणाकरि पुनि छुड़ाहु भव दुःख से।।
हे जगबन्धु जिनेश्वर! पाऊं, तव चरण शरण बलिहारी।
मरण समाधि सुदुर्लभ, कर्मों का क्षय हो सुबोध सुखकारी।।

अर्थ- हे परमात्मा! मैं आपकी पूजा करने में अक्षर, पद और मात्रा से हीन (कम) जो कुछ कहा हो उसे आप करूणा करके क्षमा करें और मेरे संसार के दुखों का नाश कर दें। हे जगतबन्धु! आपके चरणों की कृपा से मेरे दुःखों का नाश हो, दुर्लभ समाधि मरण प्राप्त हो और कर्मों का क्षय हो अर्थात मोक्ष प्राप्ति हो। (यहां पर पुष्पांजलि का क्षेपण करें) अब हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं एवं पूजन का विसर्जन पाठ पढ़ें एवं ठोने में जल, चन्दन डालकर आशिका लेवें।

11
10
9
8
7
6
5
4
3
2
1