सम्पूर्ण विधि कर वीनऊं, इस परम पूजन ठाठ में। अज्ञान वश शास्त्रोक्त विधि, ते चूक कीनों पाट में। सो होहु पूर्ण समस्त विधिवत, तुम चरण की शरण तैं। बन्दौ तुम्हें कर जोरिके उद्धार जामन मरण तैं।।1।।
अर्थ- यह पूजन मैंने सम्पूर्ण विधि से खूब ठाठ से की है। अगर अज्ञानतावश शास्त्र में कही हुई विधि में कोई भूल रह गई हो तो वह आपके चरणों की शरण से सब पूर्ण हो जाए। इस संसार के जन्म-मरण से उद्धार पाने के लिए मैं हाथ जोड़कर आपकी वन्दना करता हूं।
आह्नानन स्थापना तथा सन्निधिकरण विधान जी। पूजन विसर्जन यथाविधि, जानूं नहीं गुणखान जी।। जो दोष लागोै सो नाशौ, सब तुम चरण की शरण तैं। बन्दौ तुम्हें कर जोरि कर, उद्धार जामन मरण तैं।।2।।
अर्थ- हे गुणों केे समूह! मैं पूजन के मुख्य अंग आह्नानन, स्थापना, सन्निधिकरण, पूजन व विसर्जन नहीं जानता। इनमें जो भी दोष लगा हो वह आपके चरणों की शरण से सब नष्ट हो जाएं। इस संसार के जन्म-मरण से उद्धार पाने के लिए मैं हाथ जोड़कर वन्दना करता हूं।
तुम रहित आवागमन आह्नानन, कियो निज भाव में। विधि यथाक्रम निज शक्ति सम, पूजन कियो अतिचाव में।। करहूं विसर्जन भाव ही में, तुम चरण की शरण तें। बन्दों तुम्हें कर जोरि कर, उद्धार जामन मरण तें।।3।।
अर्थ- आप आवागमन के चक्कर से रहित हो। मैंने आपको अपने भावों में आह्नान किया है। मैंने यथाक्रम से अपनी शक्ति अनुसार बड़े चाव से पूजा की है। अब अंत में मैं आपके चरणों की शरण में अपने भावों में ही विसर्जन कर रहा हूं तथा इस संसार के जन्म मरण से उद्धार पाने के लिए मैं आपकी हाथ जोड़कर वन्दना करता हूं।
दोहा- तीनों भुवन तिहूं काल में, तुमसा देव न और। सुख कारण संकट हरण, नमो जुगल कर जो।।
अर्थ- तीनों भुवनों (अधो लोक, मध्य लोक, ऊध्र्व लोक) तथा तीनों कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) में आपके समान और कोई देव नहीं है। अंत में सुख को करने वाले और संकट को नष्ट करने वाले जिनेन्द्र प्रभु को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं।
इत्याशीर्वाद
इस तरह से पूजन विधि सम्पन्न हुई।