।। दान के भेद ।।

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1 - आहार

2 - औषधिदान

3 - शास्त्रा / ज्ञानदान

4 - अभय दान

दान के और भेद भी सम्भव है-हां, इसके अलावा दान के और भी प्रकार की सम्भव हैं। यथा जीर्णमन्दिरों के पुनरूद्धार हेतु दान, श्रमण्या संस्कृति की सुरक्षा व संवर्द्धन हेतु दान, मुनि संघों की तीर्थ-यात्रा हेतु दान, जिनबिम्ब प्रतिष्ठा व पूजा विधान एवं धर्म प्रभावना के अन्य कार्य हेतु दान, जिन वाणी काप्रचार-प्रसार, सम्यग्ज्ञान पाठशाला धर्म-संस्कार शिविर हेतु भी दान देना चाहिए।

1 - आहार दान - सत् पात्रो को उनकी साधन वृद्धि के लिए, गृह कार्यो मे उपार्जित पापकर्मो का क्षय करने के लिए, सातिशय पुण्य वृद्धि के लिए संयम, तप, आत्मविशुद्धि, न्वाधयाय मे वृद्धि करने वाला, संक्लेशता व प्रमाद का उपहरणं करने वाला, शुद्ध, मर्यादित, प्रासुक, निर्दोष आहार (भोजन) नवध भक्ति पूर्वक देना ही आहार दान कहलाता है।

2 - औषधि दान- स्वास्थ्य की प्रतिकूलता होने पर शुद्ध, योग्य मर्यादित औषधि नवध भक्तिपूर्वक देना, जिससे वे उत्तम आरोग्यता को प्राप्त करके निर्दोष साधन एव संयम का पालन करते हुए लक्ष्य को प्राप्त कर सकें, यही औषधि दान कहलाता है।

3 - ज्ञान/शस्त्र दान - सत्पत्रो को उनके सम्यज्ञान की वृद्धि, स्व-पर के ज्ञानावरणीय कर्मो का क्षयोपशमवे क्षय करने के निमित्त से सच्चे शास्त्रो को श्रद्धा-भक्ति पूर्वक भेंट करना शास्त्र/ज्ञान दान कहलाता है। इसके साथ ही आर्ष परम्परा के पोषक, दिगम्बर जैनाचार्यों द्वारा लिखित शास्त्रों का जन-कल्याण हेतु प्रकान कराना भी ज्ञान/शास्त्र दान के अन्तर्गत आता है।

4 - अभय दान - प्राणी मात्र के प्रति-प्राण का भाव रखना, जीव दुखी जीवो को देखकर दया करना करूणा पूर्वक आवश्यक दान देना, सत्पात्रो को ठहरने हेतु स्थान देना एवं साधना मे बाधक हेतुओ को दूर करना आदि अभयदान मे ही सम्मिलित है।

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चारो प्रकार के दानो मे क्रमश:-

1 आहार दान मे प्रसिद्ध - श्री षेण, वज्रजंघ, श्रीमति, शक्ति सेन, सुकेतु सेठ, आरम्भक ब्राहमण पुत्र व सुदेव ब्राहमण, राजा धारण, भामण्डल, यक्षिला, देव सेना की पुत्री यक्ष देवी, रूद्रदन्त की पत्नी विनय श्री, आनन्द श्रेष्ठी की पत्नी नंदा, अपराजित राजा की पुत्री विनय श्री, सोमशर्मा पुरोहित की स्त्री अग्निला इत्यादि अनेको महानुभाव प्रसिद्ध हुए।

आहार दान की अनुमोदना में-अकृत पुण्य, व्याघु, शूकर, वानर, नेवला, कबूतर, कबूतरी, (कबूतर युगल जो हिरण्यवर्मा व प्रभावती हुए सेनापति, मंत्री, पुरोहित, सेठ जटायु, गीद्ध, शेर इत्यादि)

2 औषधि दान में- सेठ पुत्री वृषभ सेना, भी कृष्ण (नवमें नारायण), मुनिराज, जीव है़।

3 शास्त्र दान- कोण्डेश ग्वाला,

4 अभय दान या वसतिका दान मे- शूकर, राजा शिवि, सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध), हंसा। (इनकी कथाए लेख कर की अन्य कृति ‘‘दान के अचिन्त्य प्रभाव’’ में देखें)

आहारादि दान का फल दान देने से ही प्राप्त होता है अथवा अनय भी किसी प्रकर से संभव है?

आहारादि दन का फल कृत, कारित, अनुमोदना से प्राप्त होता है। अर्थात् स्वयं दान देना, दूसरो से दिलवाना एव देनेवाले की अनुशंसा करने से भी फल प्राप्त होता है।

दान देने के योग्य व्यक्ति-उत्तम दाता जो दाता के सर्वंगुणो से रहित है, दान देने का अधिकारी है, असमर्थ अवस्था मे दूसरो से दिलवाये तथा परोक्ष में, अशक्यता मे अनुमोदना या अनुशंसा करें।