प्रश्न 71 - आनत प्राणत आरण अच्युत चार स्वर्गों में जिन मन्दिरों की संख्या बताइये।
उत्तर - इन चार स्वर्गों में 700 जिनालय हैं।
प्रश्न 72 - नव ग्रैवेयकों में जिनमन्दिरों की संख्या कितनी है?
उत्तर - नव ग्रैवयकों में तीन सौ नौ जिनमंदिर हैं।
प्रश्न 73 - नव अनुदिशों में कितने जिनमंदिर हैं?
उत्तर - नव अनुदिशाों में केवल नौ जिनमंदिर हैं।
प्रश्न 74 - पांच अनुत्तर विमानों में कितने जिनालय हैं?
उत्तर - पांच अनुत्तर विमानों में केवल पांच जिनमंदिर हैं।
प्रश्न 75 - नव देवताओं में से अधोलोक में कितने देवता होते हैं?
उत्तर - अध्रोलोक में भवनवासी देवों के भवनों में केवल दो ही देवता जिनचैतय तथा जिन चैत्यालय होते हैं।
प्रश्न 76 - उध्र्वलोक में कितने दवता होेते हैं?
उत्तर - उध्र्वलोक में भी केवल जिन चैतय तथा जिन चैत्यालय ये दो देवता होते हैं।
प्रश्न 77 - मध्य लोक में कितने देवता होते हैं?
उत्तर - मध्य लोक में ढाई द्वीपों तक नवदेवता होते हैं ढाई द्वीप से बाहर-तेरह द्वीपों तक केवल दो जिन चैत्य, जिन चैत्यालय दो ही देवता होते हैं।
प्रश्न 78 - ढाई द्वीपों में नवदेवता कहां-कहां हैं?
उत्तर - ढाई द्वीप की 170 कर्म भूमियों में, पांच भरत, पांच ऐरावत तथा 160 विदेह की कर्मभूमियों में पूरे नवदेवता होते हैं।
प्रश्न 79 - विदेह एवं भ्रत ऐरावत के नवदेवों में क्या अंतर है?
उत्तर - विदेह क्षेत्रों में सदा चतुर्थकाल (कर्मकाल) प्रवर्तमान रहने से वहां नवदेवता सदा रहते हैं। पांच भरत, पांच ऐरावत क्षेत्रों में षट्काल परावर्तन होने से क्रमशः कर्मकाल आने से ही नवदेवता पूरे रहते हैं बाकी समयों में नहीं।
प्रश्न 80 - भरत ऐरावत क्षेत्रों चतुर्थकाल को छोड़कर शेष समयों में कितने देवता रहते हैं।
उत्तर - बाकी समयों में एक से तीन तक देवताओं का अभाव रहता है। पांचवें से छठे तक आचार्य, उपाध्याय साधु जिनागम, जिन चैत्य, चैत्यालय ये छः देवता रहते हैं।
प्रश्न 81 - वर्तमान समय में अपने भरत क्षेत्र में नव देवताओं में से कितने है?
उत्तर - इस भरत क्षेत्र में भी वर्तमान में 1 - आचार्य 2 - उपाध्याय 3 - साधु 4 - जिनधर्म 5 - जिनागम 6 - जिनचैत्य एवं चैत्यालय ये सात हैं।?