।। आहार देते समय ध्यान रखने योग्य बातें ।।

87 - उत्तम दाता आर्यिका माताजी, ऐलक जी, क्षुल्लकजी, क्षुल्लिका जी के वस्त्र स्वयं धोता है तो वह उसमें नील व टिनोपालादि का प्रयोग नहीं करता है क्योंकि वह जानता है कि ये त्यागी व्रती हैं,संसार-शरीर-भोगों से विरक्त हैं, पांच पापों से विरक्त हैं। नील बहु हिंसा से बनती है और टिनोपाल वस्त्रों में आसक्ति पैदा करता है अतः दातायह भी पूर्व में ध्यान रखता है।

88 - उत्तम दाता मुनिराज आदि उत्तम पात्रों के आहारोपरांत ब्रह्मचारी आदि को भी विनय पूर्वक आहार हेतु ले जाकर भक्ति सहित आहार करता है।

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89 - मुनिराज के आहारोपरांत शेष भोज झूठा नहीं कहलाता क्योंकि मुनिराज आदि तो हाथ में ही भोजन करते हैं अतः आहार के बाद बचा हुआ अवशिष्ट भोजन प्रसाद रूपअ वश्य ही ग्रहण करना चाहिए। यह अवशिष्ट भोजन भी परम्परा से मुक्ति का कारण है।

90 - विवेकी दाता आहार देते समय खांसी, छींक, डकार, जम्हाई आदि क्रियाएं सत्पात्र के सामने नहीं करता। वहां से हटकर एक ओर हो जाता है व पुनः आहार देने से पहले प्रासुक जल से हाथ धेकर स्वच्छ कपड़े से पोंछ भी लेता है।

91 - दाता को चाहिए कि वह चैके काकार्य शुरू करने से पहले देवदर्शन कर आये। उत्तम दाता चैके के ार्य की व्यस्तता होने पर भी मन्दिर को टालता/भूलता नहीं है।

92 - आहार देते समय जमीन पर यदि कोई वस्तु गिर जाती है तो विवेकी दाता उसे उठाकर एक ओर कर देता है व पुनः स्वच्छ प्रासुक जल से हाथ धेकर ही आहार देने में प्रवृत्त होता हैं।

93 - विवेकी दाता अतिरिक्त शेला के कपड़े भी रखता है वह जानता है कि कदाचित् पहले हुए वस्त्र अशुद्ध हो गये तो उनका प्रयोग किया जा सकता है अथवा अन्य श्रावक जो आहार देने के इच्छुक है वे भी उन वस्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं।

94 - विवेकी दाता जब भी प्रासुक जल से हाथ धोता है तो वह योग्य व निर्धारित स्थान पर ही हाथ धोता है यहां वहां नहीं। ऐसा करनेसे वह स्थान स्वच्छ बना रहता है व किसी के फिसलने की संभावना भी नहीं रहती है।

95 - चैके में चींटी आदि सूक्ष्य जीवों की रोकथाम के लिए कर्पूर, हल्दी आदि का प्रयोग करना उचित रहता है क्योंकि ऐसा करने से आहार-सामग्री उन जीवों से सुरक्षित रहती है व जीव वध की भी संभावना नहीं रहती।

96 - उत्तम दाता आहार देते समय एक बार में अपने हाथ में एक ही वस्तु रखता है वह अन्य दाताओं को भी ऐसा करवाता है जिससे असावधनी वश किसी वस्तु के गिरने का भय भी नहीं रहता और उसका शोधन भी भली-भांति हो जाता है।

97 - सत्पात्रों के पाद प्रक्षालन के बाद दाता जब प्रक्षााल को अपने उत्तमांगों में लगा लेता है तो अन्य श्रावक जनों के लिए वह उस बर्तन को चैके के बाहर रख देते है।

98 - उत्तम दाता कभी भी पूजन के प्रयोग में लिये गये पट्टे, चैकी आदि पर भूल से भी पैर नहीं रखता क्योंकि विनयशील होता है।

99 - चैके प्रयोग किये जानेवाले बर्तनों पर से दाता चिट, स्टीकर, आदि हटा देता है।

90 - चैके में प्रयुक्त बर्तन चिकने, गंदे, लुढ़कने वाले, टूटे, फूटे, गीले वा चटके हुए न हों। क्योंकि ऐसा होने से भोजन सामग्री के फैलने, टपकने आदि की संभावना रहती है।

91 - शुद्ध वस्त्र पहनने से पूर्व दाता शरीर की शुद्धि का भी ध्यान रखें। कलावा (धागा) जनेऊ, गण्डा आदि यदि पहने हों तो उन्हें शुद्ध करके ही शुद्ध कपड़े पहनें।

92 - उत्तम दाता चैके में लाख की चूडि़यों आदि, कपड़े की बिन्दी, नकली या अशुद्ध दांत का प्रयोग नहीं करता है। महिलाएं चैके में कुमकुम या चंदन की ही बिन्दी लगाऐं।

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