।। आहार देते समय ध्यान रखने योग्य बातें ।।

60 - उपवास या अंतरय के बाद पारणा के दिन साधु को जितना सहन हो सके उतना गर्म पानी, उकाली दूधी आदि लाभदायक होता है, ठण्डा जल, शिकंजी, दही, ठण्डाई आदि नहीं।

61 - पेट दर्द, कब्ज, आदि के समय दूध में उबाले हुए बीज सहित मुनक्का, पपीता, मैंथी, अजवाइन, गुड़, फल,चावल के दाने के बाराबर पिरमेंट देना भी लाभदायक होता है। उस समय तले पदार्थ पकवान, भात, उड़द की दाल, दूध, रोटी, केला आदि लाभप्रद नहीं होते।

62 - जो श्रावक आहार देने में असमर्थ है वह आहार दिलाता है, जो आहार दान के लिए प्रेरणा देने में भी असमर्थ है, वह अनुमोदन से पूण्यार्जन करता है, समर्थ श्रावक को अनुमोदना से विशेष पुण्यार्जन नहीं होता। अनुमोदना तो प्रायः परोक्ष में की जाती है किन्तु आहारादि दान में असमर्थ होने पर प्रत्यक्ष में की जाती है।

63 - आदर्श दाता में 21 सामान्य गुण (9 नवध भक्ति$गुण$5 आभूषण) एवं 21 विशेष गुणों का होना आवश्यक है।

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64 - आदर्श दाता का आहार के समय प्रसन्नचित्त, मधुरवाणी, मन्द-मन्द मधुर मुस्कान बिखेरता हुआ आनन, विशुद्ध मन, श्रद्धा भक्ति व समर्पण से परिपूर्ण गद्गद् हृदय, विनय तथा भद्रतायुक्त मुद्रा होनी चाहिए।

65 - उत्तम दाता भोजन में नमक मिर्च मसाला आदि जितना आप स्वयं लेता है उतने ही अनुपात में डालता है, अत्यंत कम या अत्यधिक नहीं।

66 - उत्तम दाता को काली मिर्च, जीरा, नमक, अजवाइन, लवंग आदि बारीक पीसकर ही डालना चाहिए। जिससे काली मिर्च में मक्खी या चूहे की बीट का, सोंफ जीरा में कीड़े का या तिरूला/पटा/सिरोरी का, नमक में कंकड़ का, अजवाइन लवंग आदि में मच्छर, चींटी आदि का भ्रम न हो।

67 - उत्तम दाता सेब, नाशपाती, अंगूर, आम, पपीता, चीकूं, खीरा, अमरूद, संतरा आदि फल साबुत नहीं देता व छोटे पीस करके ही देता है। वह साधक के आने से पहले ही तैयार रखता है उनके आने के उपरांत आरंभादि नहीं करता।

68 - उत्तम दाता टमाटर, नींबू, अमरूद मिर्च, लकड़ी आदि फल बीज निकालकर ही देता है यदि उन्हें अग्नि पक्व प्रासुक कर लिया है तो बीज सहित भी देता है। वह अनार आदि फलों के बीजों का रस निकालकर ही देता है जिससे दानों की प्रासुक व अप्रासुक होने की शंका भी न रहे।

69 - उत्तम चैके में बनी सभी आहारसामग्री सधु को दिखता है जिस वस्तु का त्याग होताहै उसे वे निलवा देते हैं उत्तम दाता कभी यह नहीं कहता कि ये वस्तु न दों, ये नहीं लेंगे.............इत्यादि शब्द बोलने वाला श्रावक अपनी मूर्खता ही प्रकट करता है।

70 - दिगम्बर साधु के लिए अष्टमी, चतुर्दशी में हारी के त्याग का कोई नियम नहीं है। वे अतिथि होते है उनके लिएसभी दिन पर्व के समान है। उन्हें हरी से, विशेष रसों से नहीं शुद्ध भोजन से प्रयोजन है अतः श्रावक आहार में जो शुद्ध वस्तु देता है वही साधुजन ले लेते है।

71 - पीतल, तांबा, कांसा आदि के बर्तनों में दही, छाछ या अन्य खटाई युक्त पदार्थ नहीं रखना चाहिए। चैके में मिट्टी लोहा, एल्यूमीनियम, प्लास्टिक आदि निकृष्ट धातुओं के बर्त से ही आहार नहीं देना चाहिए। उत्तम एवं सामथ्र्यवाद दाता यदि उसके पास सहयोपलब्ध हैं तो स्वर्ण, रजत, तांबा आदि के बर्तन से आहार देता है।

72 - उत्तम दाता रसोई गृह को गोबर से नहीं लीपता और न ही पानी फैलाकर गीली रखता है अपितु व स्थान स्वच्छ रखता है जिससे वहां बैठने में असुविधा न हो।

73 - आदर्शन दाता के रसोई गृह में आलू, प्यास, गाजर, मूली, लहसुन, गोभी, बैंगन इत्यादि अभक्ष्य पदार्थों का प्रवेश भी नहीं होता अैर न ही शंख, सीप आदि की झालर, ऊनी रेशमी वस्त्र, टाट की पट्टी या खद सीमेंट की बोरी का चंदोवा मिलेगा। और न ही चैके में अशुद्ध वस्त्र टंगे मिलेंगे।

74 - आदर्श दाता के चैके में किसी देवगति के देवी देवता, कुदेवों का भोगी प्राणियों के अश्लील चित्र या मूर्ति भी नहीं होगी। टी.वी., फ्रिज, कूलर, पंखा, पेटी, बिस्तर, पलंग आदि भी चैके के अन्दर नहीं सीमा रेख के बाहर ही मिलेंगे।

75 - जब तक मुनिराज आदि का आहार न हो जाए तब तक असंयमी जनों को या ब्रह्चारी आदि को वहां भोजन कराना प्रारम्भ न करें। कदाचित् अत्यन्त अनिवार्यता है तो देशव्रती, ब्रह्चारी आदि को किसी दूसरे कमरे आदि में भोजन करा दें। मुनिराज आदि के सामने असंयमी के भोजन करने या कराने से उनकी (सत्पत्रों) अनिवार्य होती है।

77 - विवेकशील समझदार बालक/बालिका आठ वर्ष के उपरान्त आहार दे सकते हैं यदि समझ नहीं है तो सोलह वर्ष के हो जाएं तब भी आहार नहीं देना चाहिए।

78 - आहार के समय दाता को स्वतः ही अभक्ष्य पदार्थों का त्याग कर देना चाहिए। जिससे मुनिराज को आपसे त्याग नियमादि के लिए आग्रह न करना पड़े। निज शक्ति अनुसार व महारा श्री संकेतानुसार किये गये त्याग व लिये गये नियमों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए। व्रत, संयम, नियम लेकर उनका खण्डल करने से महापाप लगता है।

79 - जिस व्यक्ति का सप्त व्यसन का त्याग नहीं हो अष्ट मूल गुण के पालन करने से रहित हो, धूम्रपान, निशिभोजन, आलू-प्याज आदि अभक्ष्य का त्याग नहीं हो अथवा कर भी न सकें तो उसे चैके मेंप्रवेश नहीं करना चाहिए। दूसर से ही अनुमोदन कर लेना चाहिए।

80 - मिथ्यादृष्टि देवी देवाओं का उपासक, सच्चे देव, शास्त्र, गुरू व जिनधर्म की भक्ति श्रद्धा से रहित, जाति, कुल वंश से स्खलित, श्रेष्ठ समाज द्वारानिष्कासित श्रावक को भी चैके में प्रवेश नहीं करना चाहिए।

81 - उत्तम दाता किसी दूसरे श्रावक के चैके में आहार देने कभी खाली हाथ नहीं जाता अपितु अपनी शुद्ध वस्तु लेकर ही जाता है एवं उस श्रावक से अनुमति लेकर ही चैके में प्रवेश करता है। यदि उस श्रावक की वस्तु भी देता है तो बिना पूछे नहीं देता है।

82 - जब मुनिराज चैके में प्रवेश करें तो चैके में जो भी श्रावक जन उपस्थित हों, वे खड़े होकर हाथ जोड़कर, विनय भक्ति पूर्वक शुद्धि बोलें व कहें ‘हे स्वामिन्! भोजनशाला में प्रवेश कीजिए। बाहर खड़े हुए (आहार देखने आये) श्रावक भी विनय से हाथ जोड़ लें।

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83 - पड़गाहन करते समय श्रावक समस्थान पर खड़े होकर पडत्रगाहन करें, ऊंचे स्थान या सीढि़यां आदि पर अथवा अति नीचे स्थान पर खड़े न हों। उस स्थान पर गंदगी, घास, जीव-जन्तु, गंदे कपड़े आदि नाली का गंदा पानी आदि भी न बह रहा हो। उत्तम दाता वहां पर मंगल स्वरूप चैक भी पूर लेता है। यह उसकी विशेष भक्ति का प्रतीक है।

84 - उत्तम दाता आहार देते समय रोटी के न तो अधिक छोटे-छोटे पीस करता है, न अति बड़े-बड़े। अपितु वह रोटी के चार भाग करता है। एक बार में 2-1 कवल देता है तथा अंजुलि को अतिपूर्ण नहीं भरता क्योंकि वह जानता है कि ऐसा करने से वस्तु गिरेगी व शोधन भी सम्यक् प्रकार से नहीं हो सकेगा।

85 - उत्तम दाता आहारोपरांत मुनिराज आदि साधकों के हाथ-पैर अच्छी तरह धुलाकर स्वच्छ वस्त्र से पोंछ देता है। कमण्डलु में 24 घंटे की मर्यादा वाला उबला हुआ जल भी भर देता है तथा उन साधु जनों को वसतिका तक छोड़ने भी जाता है।

86 - उत्तम दाता आहारोपरांत उन पात्रों के आर्यिका जी, ऐलक जी, क्षुल्लक जी, क्षुल्लिका जी के वस्त्र भी अपने घर धोने के लिए ले जाता है तथा वह प्रासुक जल से ही वस्त्र धेता है सोड़ा या सर्फ के द्वारा वस्त्र धोने पर उस क्षारीय जल को नाली में नहीं बहाता अपितु ऐसे स्थान पर डालता है जिससे वह जल वहीं सुख जाए।

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