साधुओ को आहार दान देने से पहले श्रावक-श्राविका जो नौ प्रकार से विनय प्रस्तुत करते है उसे नवधाभक्ति कहते हैं।
1 - प्रतिग्रहण (पड़गाहन)
2 - उच्चासन
3 - पाद प्रक्षालन
4 - पूजन
5 - नमस्कार
6 - तथा मनश्ुद्धि
7 - काय शुद्धि
8 - और आहार जल की शुद्धि बोलना।
(1) पड़गाहन -
» अतिथि के आने के पूर्वपूर्ण शुद्धि व विवेक के साथ हाथो मे कलश, श्रीफल, फल इत्यादि योग्य सामग्री संजोकर/सजाकर रखें।
» पड़गाहन को खडत्रे दाता के वस्त्र शुद्ध साफ हो तथा फटे न हो, एकदम भड़कीले न हो, वस्त्र संभाल कर पहने जिससे वे जमीन पर न लगे।
» पड़ागहन के लिए श्रावक-श्राविका हरी घास आदि पर खडत्रे न होवे।
» पड़गाहन के समय आचार्यआदि मुनि साधु को आता देखकर स्पष्ट कहें
» अत्र, अत्र, अत्र (अत्र = यहां)
» तिष्ठ! तिष्ठ! तिष्ठ! (तिष्ठ = ठहरो)
» मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार जल शुद्ध है। बोलना चाहिए
» मुनियो को पड़गाहन के बाद अपना दांया हाथ मुनि की तरफ करते हुए तीन परिक्रमा करना चाहिए। इसके बाद साधु से गृह मे प्रवेश करने का आग्रह करें।
पात्र के हिसाब से विधि/भक्ति अपनाते हुए, आगे आगे स्वयं जाते हुए किंतु पात्र को बिना पीठ दिखाये तथा विवेक के साथ जीव रक्षा करते हुए स्वयं पैर ऐसी जगह धोये कि कही चींटी आदि जीव तो नही है। देखे पानी नालीइत्यादि मे तो नही जा रहा।
(2) उच्चासन - अतिथि से चैके मे लगाये गये उच्चासन को ग्रहण करने की प्रार्थना/विनय करें।
(3) पादप्रक्षलन - मुनिराज के चरणों को एक थाली में रख कर प्रक्षालन करें। तथा उस पवित्र जल को श्रावक-श्राविका विनय पूर्वक अपने मस्तिष्क पर लगावें।
(4) पूजन - पादप्रक्षलन के पश्चात् अष्टद्रव्य से अतिथि की पूजन करें। 108 के बाद जो भी मुनि आचार्य हो उनका नाम लेते हुए अर्ध चढ़ायें (108 आचार्य श्री विद्यासागर मुनी दाय का 108 मुनि समय सागराय इत्यादि)
विधि-
5. नमस्कार - चैके के उपस्थित सभी श्रावक-श्राविका, कहें-
म्ुनि राज से ‘नमोऽस्तु’ महाराज जी कहें।
आर्यिका आदि को- शुद्धि बोल कर यथा योग्य वंदामि इत्यादि कहें।
(6) मनु शुद्धि , (7) वचन शुद्धि , (8) काय शुद्धि , (9) आहर जल शुद्ध है!
म्ुद्रिका छोड़ अंजलि बांध आहार ग्रहण कीजिये। ऐसा बोलना चाहिए।