।। जल छानने की विधि व मर्यादा ।।
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» घी, तेल, दूध पानी आदि पतले पदार्थो को बिना छना उपयोग मे नही लेना बल्कि उनको दृढ़ वस्त्र से छानना, पुराने छेद वाले, छोटे कपड़े से नही छानना।

» जल-छानने का कपड़ा 80 से.मी. अर्थात 36 अंगुल लंबा और 24 अंगुल चैड़ा वस्त्र दोहरा करके उससे जल छानना, रंगे व पहनेे हुए वस्त्रो से नही छानना।

» जल छानने के बाद बची जीवाली-जल को उस जलाशय मे कड़ेवाली बाल्टी आदि से सावधानीपूर्वक जी मे ही छोड़कर-ऊपर से नही डालना।

» छन हुए पानी की दो घड़ी मर्यादा है, हरडेआदि से प्रासुक दोपहर, या छह घंटे तथा उबाले जल की 24 घंटे की मर्यादा है। (1 घड़ी = 24 मिनिट)

» दो घड़ी के बाद छना हुआ अप्रासुक जल पुनः छानने योग्य हो जाता है। वैसे ही सभी मर्यादा के बाद जल बिना छने के समान हो जाते हैं। जीवानी डालने की विधि कोपरिशिष्ट जल शुद्धि में देखें।

चैका अर्थात् चार प्रकार की शुद्धि

द्रव्य शुद्धि - हितकारी योग्य सामग्री की शुद्धता।

» मर्यादित जल से मर्यादित भक्ष्य सामग्री तैयार करना आहार/औषधि कोई भी देने योग्य वस्तु को प्राथमिक समय से शुद्धि व शोधकर सावधानी पूर्वक निर्मित करना।

» आहार बनाने का समय -सूर्योंदय के दो घड़ी बाद से लेकर सूर्यास्त के दो घड़ी पूर्व तक आहार बना सकते हैं, सुबह जब अंधेरा होता है, उस समय से भोजन बनाना प्रारम्भ करने से रात्रि भोजन नाम का दोष लगता है।

» आहार बनाने से पूर्व आहार सामग्री का अच्छी तरह विवेकपूर्वक शोधन भी होना चाहिए नही ंतो इससे अभक्ष्य भक्षण और हिंसा का दोष लगता है। साथ ही साथ पात्र को अंतराय आने की भी संभावना रहती है।

» साबुतदाने वगैरह भी नही देना चाहि, उनको बीच मे से दो हिस्से कर देना।

» जिसमे जीवों के रहने की संभावना हो जैसे कि-फल्ली, मूंगफली, बरबटी, भिण्डीआदि, चातुर्मास मे साबुत अनाज आदि नही देना चाहिए उन्हें (सब्जी आदि) को खोल कर देखकर शोध कर बनाया जाये।

» क्षेत्र शुद्धि -चैके की व जहां से अतिथि/साधुको ले जाना है। उन रास्तो का स्वच्छ, शुद्ध एवं सूखा होना।

» हिलते डुलते पत्थर आदि पर पैर न रखें क्योंकि इससे पत्थर आदि के नीचे रहने वाले जीवो को विराधना हो सकती है।

» काल शुद्धि - अतिथि की आहार बेला का अंतिक्रम नही करना। समय पर उन्हें शुद्ध प्रासुक जल देकर शुद्धि करने व आहारचर्या को उठने की प्रार्थना करना।

» भाव शुद्धि -दान का उद्देश्य साधु के रत्नत्रय की वृद्धि व अपने पाप की हानि तथा पुण्य मे हेतु रूप भाव रखना।

आहारचर्या की दो बेला होती है।

एक बेला-सूर्योदय से 2 घंटे के पश्चात् से लेकर सामायिक के पहले तक के समय की।

छूसरी बेला-दोपहर सामायिक के उपरांत सूर्योस्त के 2 घंटे पहले तक।

» चैके मे नही करने योग्य कार्य:-

» शोर, अनावश्यक बातें, जल्दबाजी व भीड़ न करें।

» प्रकाश व हवा को नही रोकना, तथा साधु को घेरकर नही बैठना।

» अस्वस्थ्य, बाल, वृद्ध व अनजान व्यक्ति, तथा 8 वर्ष से कम उम्रवालों व जिनको दिखता नही है, ऐसे लोगो से आहार न दिलाना।

» अतिथि की अंजुलि मे आहार देने के बाद पुनः नहीं उठाना।

» अतिथि के आने पर कोई आरंभ/भोजन बनाना आदि कार्य नहीं करना।

» अशुद्ध वस्त्र व अशुद्ध सौंदर्य प्रसाधन का उपयोग नही करना।

» बर्तन शुद्ध हो-चाय, राख व अन्नआदि के निशान व कण आदि न लगे हों।

» बाल खुले न छोड़े व वस्त्र जमीन को झाड़ रहे हों ध्यान रखें।

» मौन से आहार दे - व संकेतो मे कार्य करे जिससे मुख से अनावश्यक पदार्थ न निकलें।

» सनमाईका वाली-चैकी, पाटे पर आहार सामग्री न रखे। व चैके में शंख सीप कौड़ी आदि की शोमाला न लटकायें।

भक्ष्य पदार्थों की मर्यादाएं-

अघहन से फाल्गुन तक , चैत्र से आषाढ़ तक , श्रावण से कार्तिक तक

मर्यादाएं

न.
पदार्थ
शीत
ग्रीष्म
वर्षा
1.
बुरा
1 मास
15 दिन
7 दिन
2.
दूध (दूहने के पश्चात्)
2 घड़ी
2 घड़ी
2 घड़ी (एक घड़ीमें 24 मि.)
दूध (उबालने के पश्चात्)
8 पहर
8 पहर
8 पहर (एक प्रहर-3 घंटा)
स्वाद बिगड़ये तो त्याज्य हैं।
3 .
दही (गर्म दूध का)
8 पहर
8 पहर
8 पहर
अ.ग.श्रा./6/84 (सा
16 पहर
16 पहर
16 पहर
घ./3/11/(चा.पा.टी./-21/43/17।
4 .
छांछ -
बिलोते समय पानी डालें
4 पहर
4 पहर
4 पहर
पीछे पानी डाले तो
2 घड़ी
2 घड़ी
2 घड़ी
5 .
घी
(जब तक स्वाद न बिगड़ जाये)
6 .
तेल
(जब तक स्वाद न बिगड़े)
7 .
गुड़
(जब तक स्वाद न बिगड़े)
8 .
आटा सर्व प्रकार
7 दिन
5 दिन
3 दिन
9 .
मसाले पिसे हुए
7 दिन
5 दिन
3 दिन
10 .
नमक पिसा हुआ
2 घड़ी
2 घड़ी
2 घड़ी
मसाला मिलादें तो
6 घंटे
6 घंटे
6 घंटे
11 .
खिचड़ी, रायता, कढ़ी तरकारी
2 पहर
2 पहर
2 पहर
12 .
अधिक, जल वाले पदार्थ
4 पहर
4 पहर
4 पहर
13 .
मौन वाले पकवान
8 पहर
8 पहर
8 पहर
14 .
बिना पानी के पकवान
7 दिन
5 दिन
3 दिन
15 .
मीठे पदार्थ मिला दही
2 घड़ी
2 घड़ी
2 घड़ी
16 .
गुड़ मिला दही व छाछ
सर्वथा अभक्ष्य