1 मन शुद्धि -
» अतिथि के प्रति मन मे आदर भाव के साथ भक्ति भाव रखना व मन को आर्त-रौद्र ध्यान रूपक लुपता से बचाना।
» दान देते हुए मन मे अहंकार व अन्य दाताओ से ईष्र्या भाव नहीं रखते हुए निर्मल शुद्ध परिणाम रखना ही मन शुद्धि हैं।
2 वचन शुद्धि -
» अतिथि के प्रति आपके मुख से अत्यंत मिष्ठ तथा भक्ति पूर्ण ही शब्द निकले। आपकी भाषा से प्रेम टपकता हो, झुंझलाहट या उतावली के शब्द, जल्दी कर, जल्दी परोस, पानी लाइत्यादि मुख से नही निकाले यह वचन शुद्धि काव्यवहार चैके मे उपस्थित सभी सज्जनों के प्रतिभी रखना वचन शुद्धि है।
3 काय शुद्धि -
» शरीरमेंफोड़ा-फन्सी, घावआदिसेमलस्रवित न होरहाहो, बाहरीवस्तुओं की स्वच्छता व शुद्धता के साथभीतर के भीवस्त्रों की स्वच्छता व शुद्धि अनिवार्यहैं।
» शरीर मे पसीना व किसी तरह की गंध नही आ रही हो। अच्छी तरह से शरीर की शुद्धि करना इत्यादि काय शुद्धि है।
आर्यिकाओं, ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाओं की नवधाभक्ति-
» पड़गाहन के बाद चैके मे उच्चासन ग्रहण करने कहें।
» इनके पर्दाक्षणा पादप्रक्षालन और पूजन की परम्पराआत्र विद्यासागरजी के संघ मे नही है। दूसरे संघो में देखने मे आती है। शेष विधि मुनिओं के समान है।
» नमस्कार मे आर्यिकाओ को कहे वंदामि माताजी।
ऐलक क्षुल्लक को कहे-इच्छामि महाराज जी।
» मन शुद्धि, वचन शुद्धि; काय शुद्धि आहार जल की शुद्धि बोलना चाहिए।
इस प्रकार नवधाभक्ति करने के बाद चैके मे बनाया गया आहार एक-दो थालियो म े छोटी-छोटी कटोरियो में रख कर अतिथि को दिखावे जिस वस्तु को अतिथि मना करे उसे थाली से अलग कर लेवें।