लौकिक अशुचिता/अपवित्रता क्या है, उसको कैसे दूर करना:-
» काम सेवन से, अन्त्येष्टि से, चाण्डाल से स्पर्श से केश क्षौरकर्म (कटिंग करवाने) से, रजस्वला (एम.सी) स्त्री के स्पर्श हो जाने से उत्पन्न अशुचिता को पूर्णस्नान के माध्यम से शुद्ध करना-अन्रू प्रकार से भी जो अशुचिता है उसको भी जल के माध्यम से धोना।
जैसे-अपने नमक, कान, मुख के मल को धोना, खून हाड़ मांस चर्मआदि सेस्पर्श होने पर धोना, वस्त्र बदलकर शुद्ध वस्त्र पहिनना।
सूतकपातक विषय कजुगुप्सा/ग्लानि छोड़ना चाहिए:-
» लोकव्यवहार शोध नार्थ सूतकआदि का निवारण करने के लिए जो लौकिक जुगुप्सा की जाती है वह छोड़ने योग्य है।
श्रावकों: -
» अणुव्रती श्रावको को अपने भोजन की शुद्धि बनाये रखने के लिए अथवा एपणा शुद्धि के लिए यथोक्त सूतकपातक का भी त्याग कर देना चाहिए।
भावार्थ - किसी के सूतकपातक मे भोजन नहीं करना चाहिए।
» व्रती गृहस्थ-रजस्वला स्त्री, सूखाचमड़ा, हड्डी, कुत्ता आदि के स्पर्श हो जाने पर (भोजन छोड़ दें)।
सूतकपातक किसको व कहां नही लगता:-
» जिस वंशवाला यजमान बिम्बप्रतिष्ठा करा रहा है, उसके वंश कुल गोत्र में उस दिन से अशौचन ही माना जाता अर्थात् जिस दिन नान्दी अभिषेक हो गया उस दिन से यजमान के कुल मे सूतकतथापातक नही लगता।
» तीन दिन का बालक, युद्ध मे मरण को प्राप्त, अग्नि आदि के द्वारा मरण को प्राप्त, जिन दीक्षिण, अनशन करके मरण को प्राप्त, इनका मरण सूतक नहीं होता।
सूतकपातक शुद्धि काल प्रमाण:-
ब्राम्हण पांच दिन में, क्षत्रिय दश दिन मे वैश्य बारह दिन मे और शूद ्रपन्द्रह दिनो मे पातक के दोष से शुद्ध होतेहैं।
सूतक - सूतक का अर्थ है उत्पत्ति सम्बंधी-अर्थात् जन्म होने वाले अशौच को सूतक कहते हैं।
पातक - पातक का अर्थ है हानि-अर्थात् मरण के समय होने वाले अशौच को पातक कहते हैं।
व्यवहारगत सूतकपातक शुद्धि का काल प्रमाण-
स्त्री पुरूष के घर
जिस अनाज के बराबरदी बल हो जाते है उसको कच्चे दूध का या उबलेदूध के जमाये दही छाछ के साथ नहीं रखना क्योंकि लार के सम्बंध मे मुख्य मे सम्मूच्र्छन जीव पैदा हो जाते हैं। अतः दही के साथ द्विदल खाना अभक्ष्य है।