चतुर्थपरमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं इसका वर्णन इस अध्याय में है।
1. उपाध्याय परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
जो चारित्र का पालन करते हुए संघ में पठन-पाठन के अधिकारी होते हैं, जो मुनियों के अतिरिक्त श्रावकों को भी अध्ययन कराते हैं, तथा ग्यारह अङ्ग और चौदह पूर्व के ज्ञाता होते हैं अथवा वर्तमान शास्त्रों के विशेष ज्ञाता होते हैं, वे उपाध्याय परमेष्ठी कहलाते हैं।
2. उपाध्याय परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं ?
उपाध्याय परमेष्ठी के 25 मूलगुण होते हैं। ग्यारह अंग और चौदह पूर्व।
3. ग्यारह अंगो के नाम कौन-कौन से हैं ?
1.आचारांग, 2.सूत्रकृतांग, 3.स्थानांग, 4.समवायांग, 5.व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग, 6.ज्ञातृधर्मकथांग, 7.उपासकाध्ययनांग, 8.अन्तकृद्दशांग, 9.अनुत्तरोपपादकदशांग, 10.व्याकरणांग, 11.विपाकसूत्रांग।
4. बारहवाँ अंग कौन-सा है एवं उसके कितने भेद हैं ?
बारहवाँ अंग दृष्टिवादांग है। इसके 5 भेद हैं। 1.परिकर्म, 2.सूत्र, 3. प्रथमानुयोग, 4. पूर्वगत, 5.चूलिका।
5. परिकर्म के कितने भेद हैं ?
पाँच भेद हैं। 1. चन्द्रप्रज्ञप्ति, 2. सूर्यप्रज्ञप्ति, 3. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 4. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति।
6. चूलिका के कितने भेद हैं ?
पाँच भेद हैं। 1. जलगता चूलिका, 2. स्थलगता चूलिका, 3. मायागता। चूलिका, 4. आकाशगता चूलिका, 5. रूपगता चूलिका।
7. पूर्वगत के कितने भेद हैं ?
चौदह भेद हैं -1. उत्पाद पूर्व, 2. आग्रायणीय पूर्व, 3. वीर्यानुप्रवाद पूर्व, 4. अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व, 5. ज्ञानप्रवाद पूर्व, 6. सत्यप्रवाद पूर्व, 7. आत्मप्रवाद पूर्व, 8. कर्मप्रवाद पूर्व, 9. प्रत्याख्यान पूर्व, 10. विद्यानुवाद पूर्व, 11. कल्याणानुवाद पूर्व, 12. प्राणानुप्रवाद पूर्व, 13. क्रियाविशाल पूर्व, 14. लोकबिन्दुसार पूर्व।