।। तीर्थंकर ।।

परमेष्ठी

जो समवसरण में विराजमान होकर धर्म का सच्चा उपदेश देते हैं, जिन्हें तीन लोक के जीव नमस्कार करते हैं ऐसे तीर्थंकर प्रभु की महिमा का वर्णन इस अध्याय में है।

1. तीर्थंकर किसे कहते हैं?

  1. "तरंति संसार महार्णवं येन तत्तीर्थम्" अर्थात् जिसके द्वारा संसार सागर से पार होते हैं, वह तीर्थ है और इसी तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थंकर कहलाते हैं।
  2. धर्म का अर्थ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र है। चूंकि इनके द्वारा संसार सागर से तरते हैं,इसलिए इन्हें तीर्थ कहा है और जो तीर्थ (धर्म) का उपदेश देते हैं, वे तीर्थंकर कहलाते हैं।

2. तीर्थंकर कितने होते हैं?

वैसे तीर्थंकर तो अनन्त हो चुके, किन्तु भरत और ऐरावत क्षेत्र में अवसर्पिणी के चतुर्थ काल में एवं उत्सर्पिणी के तृतीय काल में (दु:षमा-सुषमा) क्रमश: एक के बाद एक चौबीस तीर्थंकर होते हैं।

3. चौबीस तीर्थंकर के चिह्न सहित नाम बताइए?

चौबीस तीर्थंकर के चिह्न

4. विदेहक्षेत्र में कितने तीर्थंकर होते हैं?

विदेह क्षेत्र में 20 तीर्थंकर तो विद्यमान रहते ही हैं, किन्तु 5 विदेह में अधिक से अधिक 160 हो सकते हैं।

5. अढ़ाईद्वीप में एक साथ अधिक-से-अधिक कितने तीर्थंकर हो सकते हैं?

अढ़ाईद्वीप में एक साथ अधिक से अधिक 170 (विदेह में 160, भरत में 5, ऐरावत में 5) तीर्थंकर हो सकते हैं।

6. क्या कभी एक साथ 170 तीर्थंकर हुए थे?

सुनते हैं कि अजितनाथ तीर्थंकर के समय एक साथ 170 तीर्थंकर हुए थे।

7. तीर्थंकरों के कितने कल्याणक होते हैं?

तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक होते हैं। गर्भ, जन्म, दीक्षा या तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक।

8. क्या भरत, ऐरावत एवं विदेह सभी जगह पाँच कल्याणक वाले तीर्थंकर होते हैं?

नहीं। भरत, ऐरावत में पाँच कल्याणक वाले ही तीर्थंकर होते हैं। किन्तु विदेह क्षेत्र में 2, 3 और 5 कल्याणक वाले भी होते हैं। दो में ज्ञान और मोक्ष कल्याणक, तीन में दीक्षा, ज्ञान और मोक्ष कल्याणक होते हैं।

9. तीर्थंकर की कौन-कौन सी विशेषताएँ होती हैं?

तीर्थंकरों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं:-

1. तीर्थंकर के दाढ़ी-मूँछ नहीं होती है। (बी.पा.टी.32/98)
2. तीर्थंकर बालक माता का दूध नहीं पीते किन्तु सौधर्म इन्द्र जन्माभिषेक के बाद उनके दाहिने हाथ के आँगूठे में अमृत भर देता है जिसे चूसकर बड़े होते हैं।
3. जीवन भर (दीक्षा के पूर्व) देवों के द्वारा दिया गया ही भोजन एवं वस्त्राभूषण ग्रहण करते हैं।
4. तीर्थंकर स्वयं दीक्षा लेते हैं।
5. तीर्थंकर को बालक अवस्था में, गृहस्थ अवस्था में एवं मुनि अवस्था में भी मन्दिर जाना आवश्यक नहीं होता। उनका अन्य मुनि से, गृहस्थ अवस्था में साक्षात्कार भी नहीं होता।
6. तीर्थंकरों के कल्याणकों के समय पर नारकी जीवों को भी कुछ क्षण के लिए आनन्दकी अनुभूति होती है।
7. तीर्थंकर मात्र सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार करते हैं। अतः नमःसिद्धेभ्यः बोलते हैं।
8. तीर्थंकरों के 46 मूलगुण होते हैं।
9. तीर्थंकर सर्वाङ्ग सुन्दर होते है।

10. तीर्थंकर के चिह्न कौन रखता है?

जब सौधर्म इन्द्र तीर्थंकर बालक का पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक करता है। उस समय तीर्थंकर के दाहिने पैर के अँगूठे पर जो चिह्न दिखता है, वह इन्द्र उन्हीं तीर्थंकर का वह चिह्न निश्चित कर देता है।

11. कौन से क्षेत्र के तीर्थंकर का कौन-सी शिला पर जन्माभिषेक होता है?

भरत क्षेत्र के तीर्थंकरों का पाण्डुकशिला पर, पश्चिम विदेह के तीर्थंकरों का पाण्डु कम्बला शिला पर, ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों का रक्त शिला एवं पूर्व विदेह के तीर्थंकरों का रक्त कम्बला शिला पर जन्माभिषेक होता है। (সি.সা.633 / 634)

12. कौन से तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण कौन-सा था ?

कृत्रिम-अकृत्रिम-जिनचैत्य की पूजा के अध्र्य में तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण इस प्रकार कहा है

द्वी कुन्देन्दु—तुषार—हार–धवलौ, द्वाविन्द्रनील-प्रभौ,
द्वौ बन्धूक-सम-प्रभौ जिनवृषौ, द्वौ च प्रियङ्गुप्रभौ ।
शेषाः षोडश जन्म-मृत्यु-रहिताः संतप्त-हेम-प्रभासम् ।
ते संज्ञान-दिवाकराः सुर-नुताः सिद्धिं प्रयच्छन्तु नः ।

किसी कवि ने तीर्थंकरों के वर्ण के विषय निम्न प्रकार कहा है

दो गोरे दो सांवरे, दो हरियल दो लाल।
सोलह कंचन वरण हैं, तिन्हें नवाऊँ भाल।

अर्थ – चन्द्रप्रभ एवं पुष्पदन्त                 सफेद वर्ण
मुनिसुव्रतनाथ एवं नेमिनाथ                 शष्याम वर्ण / नील वर्ण पद्मप्रभ एवं वासुपूज्य                 लाल वर्ण सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ                 हरित वर्ण शेष सोलह तीर्थंकरों का                 पीत वर्ण

विशेष - मुनिसुव्रतनाथ एवं नेमिनाथ का वर्ण त्रि.सा. 847-849 के अनुसार श्याम वर्ण है।

13. कौन से तीर्थंकर कहाँ से मोक्ष पधारे?

ऋषभदेव कैलाश पर्वत से, वासुपूज्य चम्पापुर से, नेमिनाथ गिरनार से, महावीर स्वामी पावापुर से एवं शेष तीर्थंकर तीर्थराज सम्मेदशिखर जी से मोक्ष पधारे।

14. अ वर्ण से प्रारम्भ होने वाले तीर्थंकरों नाम बताइए?

आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दननाथ, अनन्तनाथ, अरनाथ एवं अतिवीर।

15. व वर्ण से प्रारम्भ होने वाले तीर्थंकरों नाम बताइए?

वृषभनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ और वर्द्धमान।

16. श, स से प्रारम्भ होने वाले तीर्थंकरों के नाम बताइए?

सम्भवनाथ,सुमतिनाथ,सुपार्श्वनाथ,सुविधिनाथ,शीतलनाथ,श्रेयांसनाथ,शान्तिनाथ एवं सन्मति।

17. कितने तीर्थंकरों के चिह्न एकेन्द्रिय हैं ?

चार। पद्मप्रभाका लालकमल, चन्द्रप्रभाका चन्द्रमा, शीतलनाथ का कल्पवृक्ष और नमिनाथका नीलकमल

18. कौन से तीर्थंकर का चिह्न दो इन्द्रिय है ?

तीर्थंकर नेमिनाथ का शंख चिह्न दो इन्द्रिय है।

19. कितने तीर्थंकरों के चिह्न अजीव हैं?

तीन। स्वस्तिक, वज़दण्ड और कलश।

2O. कितने तीर्थंकरों के चिह्न पञ्चेन्द्रिय हैं?

शेष 16 तीर्थंकरों के चिह्न पञ्चेन्द्रिय हैं।

21. उन तीर्थंकरों के चिह्न बताइए जो बोझा ढोने वाले पशु हैं?

वे चार तीर्थंकरों के चिह्न हैं- बैल, हाथी, घोड़ा और भैंसा।

22. उन तीर्थंकरों के चिह्न बताइए जो जल में रहते हैं?

जल में रहने वाले - लालकमल, मगर, मछली, कछुआ, नीलकमल, शंख और सर्प चिह्न हैं।

23. एक तीर्थंकर के उस चिह्नको बताइए जिसके शरीर में काँटे होते हैं?

सेही के शरीर में काँटे होते हैं।

24. चौबीस तीर्थंकरों के चिह्न में सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी कौन-सा है?

हिरण सबसे तेज दौड़ने वाला प्राणी है।

25. ऐसे कितने तीर्थंकर हैं, जिनके नाम जिस वर्ण (अक्षर) से प्रारम्भ होते हैं, उसी वर्ण से चिह्नप्रारम्भ होता है ?

वृषभनाथ का वृषभ, सुपार्श्वनाथ का स्वस्तिक, चन्द्रप्रभ का चन्द्रमा, नमिनाथ का नीलकमल और सन्मति का सिंह।

26. ऐसे कौन से तीर्थंकर हैं जिनका जन्म उत्तम आकिञ्चन्य धर्म के दिन हुआ था ?

वीर (महावीर स्वामी) का।

27. कितने तीर्थंकरों की बारात निकली थी ?

बीस तीर्थंकरों।

28. तीर्थंकरों सामान्य अरिहंतों में क्या अंतर है?

  1. तीर्थंकरों के कल्याणक होते हैं, सामान्य अरिहंतों के नहीं।
  2. तीर्थंकरों के चिह्न होते हैं, सामान्य अरिहंतों के नहीं।
  3. तीर्थंकरों का समवसरण होता है, सामान्य अरिहंतों के नहीं।उनकी गंधकुटी होती है।
  4. तीर्थंकरों के गणधर होते हैं, सामान्य अरिहंतों के नहीं।
  5. तीर्थंकरों को जन्म से ही अवधिज्ञान होता है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है।
  6. तीर्थंकरों को दीक्षा लेते ही मनः पर्ययज्ञान होता है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है।
  7. तीर्थंकर अपनी माता की अकेली संतान होते हैं, सामान्य अरिहंतों के अनेक भाई-बहिन हो सकते हैं।
  8. तीर्थंकर जब तक गृहस्थ अवस्था में रहते हैं तब तक उनके परिवार में किसी का मरण नहीं होता है, किन्तु सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है।
  9. भाव पुरुषवेद वाले ही तीर्थंकर बनते हैं, किन्तु सामान्य अरिहंत तीनों भाववेद वाले बन सकते हैं।
  10. तीर्थंकरों के समचतुरस संस्थान ही होता है, किन्तु सामान्य अरिहंतों के छ: संस्थानों में से कोई भी हो सकता है।
  11. तीर्थंकरों के प्रशस्त विहायोगतिका ही उदय रहता, किन्तु सामान्य अरिहंतों के दोनों में से कोई भी हो सकता है।
  12. तीर्थंकरों के सुस्वर नाम कर्म का ही उदय रहेगा, सामान्य अरिहंतों के दोनों में से कोई भी हो सकता है।
  13. चौथे नरक से आने वाले तीर्थंकर नहीं बन सकते किन्तु सामान्य अरिहंत बन सकते हैं।
  14. तीर्थंकरों की माता को सोलह स्वप्न आते हैं, सामान्य अरिहंतों के लिए यह नियम नहीं है।
  15. तीर्थंकरों के श्रीवत्स का चिह्न नियम से रहता है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है।
  16. तीर्थंकरों की दिव्य ध्वनि नियम से खिरती है, सामान्य अरिहंतों के लिए नियम नहीं है। जैसे - मूक केवली की नहीं खिरती है।

29. किन तीर्थंकर के साथ कितने राजाओं ने दीक्षा ली थी ?

ऋषभदेव के साथ 4000 राजाओं ने, वासुपूज्य के साथ 676 राजाओं ने, मल्लिनाथ एवं पार्श्वनाथ के साथ 300-300 राजाओं ने, भगवान् महावीर ने अकेले एवं शेष तीर्थंकरों के साथ 1000-1000 राजाओं ने दीक्षा ली थी। (ति.प.,4/675-76)

30. कौन से तीर्थंकर ने कौन सी वस्तु से प्रथम पारणा की थी?

ऋषभदेव ने इक्षुरस से एवं शेष सभी तीर्थंकरों ने क्षीरान्न अर्थात् दूध व अन्न से बने अनेक व्यञ्जनों की खीर आदि से पारणा की थी।

31. तीर्थंकरों पारणा कराने वाले दाताओं के शरीर का रङ्ग कौन-सा था?

आदि के दो दाता राजाश्रेयांस, राजा ब्रह्मदत/सुवर्ण और अन्तकेदो दाताराजा ब्रह्मदत और राजा कूल/नन्दन श्यामवर्ण के थे। अन्य सभी दाता तपाये हुए सुवर्ण के समान वर्ण वाले थे।

32. कौन से तीर्थंकर किस आसन से मोक्ष पधारे ?

वृषभनाथ, वासुपूज्य और नेमिनाथ (1, 12, 22) तो पद्मासन से एवं शेष सभी तीर्थंकर कायोत्सर्गासन (खड्गासन) से मोक्ष पधारे थे, किन्तु समवसरण में सभी तीर्थंकर पद्मासन से ही विराजमान होते हैं।

33. ऐसे तीर्थंकर कितने हैं, जिनके समवसरण में मुनियों से आर्यिकाएँ कम थीं?

धर्मनाथ एवं शान्तिनाथ तीर्थंकर के समवसरण में मुनियों से आर्यिकाएँ कम थीं।

34. कौन से तीर्थंकर के समवसरण का कितना विस्तार था ?

वृषभदेव का 12 योजन एवं आगे-आगे नेमिनाथ तक प्रत्येक तीर्थंकर में / योजन घटाते जाना है एवं पार्श्वनाथ एवं महावीर में / योजन, / योजन घटाना है। तब पार्श्वनाथ का 1.25 योजन एवं महावीर स्वामी का 1 योजन का था। (ति.प.4–724-25) नोट- 4 कोस = 1 योजन, 2 मील = 1 कोस एवं 1.5 किलोमीटर का 1 मील अर्थात् 1 योजन में 12 किलोमीटर होते हैं।

35. किन तीर्थंकर ने योग निरोध करने के लिए कितने दिन पहले समवसरण छोड़ा था ?

ऋषभदेव ने 14 दिन पहले, महावीर स्वामी ने 2 दिन पहले एवं शेष सभी तीर्थंकरो ने 1 माह पहले योग निरोध करने के लिए समवसरण छोड़ दिया था।

36. सबसे कम समय में कौन से तीर्थंकर को केवलज्ञान हुआ था ?

मल्लिनाथ को मात्र 6 दिनों में केवलज्ञान हुआ था।

37. कौन से तीर्थंकर को सबसे अधिक दिनों में केवलज्ञान हुआ था ?

ऋषभदेव को 1000 वर्ष में केवलज्ञान हुआ था।

38. सबसे कम गणधर कौन से तीर्थंकर के थे ?

सबसे कम मात्र 10 गणधर पार्श्वनाथ तीर्थंकर के थे।

39. सबसे अधिक गणधर कौन से तीर्थंकर के थे?

सबसे अधिक 116 गणधर सुमतिनाथ तीर्थंकर के थे।

40. सभी तीर्थंकर के कुल कितने गणधर थे?

सभी तीर्थंकर के कुल 1452 गणधर थे।

41. सबसे ज्यादा शिष्य मण्डली कौन से तीर्थंकर की थी ?

सबसे ज्यादा शिष्य मण्डली पद्मप्रभ की 3,30,000 थी।

42. तीर्थंकर के सहस्रनामों से स्तुति किसने कहाँ पर की थी ?

सौधर्म इन्द्र ने तीर्थंकर की स्तुति केवलज्ञान होने के बाद समवसरण में की थी।

43. पाँच बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर के नाम कौन-कौन से हैं?

वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर।

44. तीन पदवियों से विभूषित तीर्थंकर के नाम ?

शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ। ये तीनों तीर्थंकर, चक्रवर्ती एवं कामदेव तीनों पदों के धारक थे।

45. किन तीर्थंकर पर मुनि अवस्था में उपसर्ग हुआ था ?

सुपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ एवं महावीर।

46. जिसने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया वह जीव किस भव में मोक्ष चला जाएगा ?

दो, तीन कल्याणक वाले उसी भव से एवं पाँच कल्याणक वाले तीसरे भव से मोक्ष चले जाएंगे।

47. तीर्थंकर प्रकृति का बंध कौन कहाँ करता है?

कर्मभूमि का मनुष्य केवली, श्रुतकेवली के पादमूल में सोलहकारण भावना तथा विश्व कल्याण की भावना भाता हुआ तीर्थंकर प्रकृति का बंध करता है।

48. तीर्थंकर चौबीस ही क्यों होते हैं?

आचार्य सोमदेव से जब यह प्रश्न किया गया तब उनका उत्तर था ‘इस मान्यता में कोई अलौकिकता नहीं है, क्योंकि लोक में अनेक ऐसे पदार्थ हैं जैसे-ग्रह, नक्षत्र, राशि, तिथियाँ और तारागण जिनकी संख्या काल योग से नियत है।” तीर्थंकर सर्वोत्कृष्ट होते हैं। अत: उनके जन्मकाल योग भी विशिष्ट उत्कृष्ट ही होना चाहिए या होते हैं। ज्योतिषाचार्यों का (जिनमें स्व.डॉ.नेमीचन्द आरा भी थे) मत है कि प्रत्येक कल्पकाल के दु:षमासुषमा काल में ऐसे उत्तम काल योग 24 ही पड़ते हैं, जिनमें तीर्थंकर का जन्म होता है या हो सकता है। विष्णु के भी अवतार 24 ही हैं, बौद्धों ने भी 24 बुद्ध और ईसाइयों ने भी 24 ही पुरखे स्वीकार किए हैं।

49. तीस चौबीसी के 720 तीर्थंकर कैसे कहे जाते हैं?

अढ़ाई द्वीप में 5 भरत क्षेत्र और 5 ऐरावत क्षेत्र = कुल 10 क्षेत्र हैं। इनमें प्रत्येक क्षेत्र में तीनों कालों के 7272 तीर्थंकर होते हैं। अत: 10 क्षेत्रों के तीनों काल सम्बन्धी 720 तीर्थंकर कहे जाते हैं।