द्वितीय परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं एवं अन्य गुण कौन-कौन से होते हैं, कितने समय में कितने जीव मोक्ष जाते हैं आदि का वर्णन द्वस अध्याय में है।
1. सिद्ध परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
जिन्होंने अष्ट कर्मों को नाश कर दिया है, जो शरीर से रहित हैं तथा ऊध्र्वलोक के अंत में शाश्वत विराजमान हैं, वे सिद्ध परमेष्ठी कहलाते हैं। या जो द्रव्यकर्म (ज्ञानावरणादि), भावकर्म (रागद्वेषादि) और नोकर्म (शरीरादि) से रहित हैं, उन्हें सिद्ध परमेष्ठी कहते हैं।
2. सिद्ध परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं ?
सिद्ध परमेष्ठी के 8 मूलगुण होते हैं :-
3. क्या सिद्धों के अन्य गुण भी होते हैं ?
हाँ। सिद्धों के अन्य गुण भी होते हैं। सम्यक्त्वादि आठ गुण मध्यम रुचि वाले शिष्यों के लिए हैं। विस्तार रुचि वाले शिष्य के प्रति विशेष भेद नय के अवलंबन से गति रहितता, इन्द्रिय रहितता, शरीर रहितता, योग रहितता, वेद रहितता, कषाय रहितता, नाम रहितता, गोत्र रहितता तथा आयु रहितता आदि विशेष गुण और इसी प्रकार अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व आदि सामान्य गुण इस तरह जैनागम के अनुसार अनंत गुण जानने चाहिए। (द्र.सं., 14/34)
4. मोक्ष के कितने भेद किए जा सकते हैं ? अथवा मोक्ष अभेद है ?
यों तो मोक्ष अभेद है। मोक्ष का कारण भी रत्नत्रयरूप एक मात्र है, अत: वह कार्यरूप मोक्ष भी सकल कर्मक्षयरूप एकविध है। तदपि मोक्ष की दृष्टि से द्रव्यमोक्ष एवं भावमोक्ष की अपेक्षा मोक्ष के दो भेद हैं। अथवा मोक्ष चार प्रकार का है। नाममोक्ष, स्थापनामोक्ष, द्रव्यमोक्ष एवं भावमोक्ष।
5. मोक्ष का साधन क्या है ?
सम्यकदर्शन-सम्यकज्ञान और सम्यक्चारित्र की एकता रूप रत्नत्रय मोक्ष का साधन है।
6. कर्मों से छूटने का उपाय संक्षिप्त शब्दों में बताइए ?
मात्र-ममता (मोह) से रहित होना ही कर्मों से छूटना है।
7. कौन बंधता है और कौन छूटता है ?
पर में आत्मा की बुद्धि करने वाला बहिरात्मा अपने आत्मस्वरूप से भ्रष्ट हुए बिना किसी संशय के अवश्य बंधन को प्राप्त होता है तथा अपने आत्मा के स्वरूप में अपने आत्मपने की बुद्धि रखने वाला अन्तरात्मा, ज्ञानी पर (शरीरादि एवं कर्म) से अलग होकर मुक्त हो जाता है।
8. सिद्धों को कितना सुख है ?
तीनों लोकों में मनुष्य और देवों के जो कुछ भी उत्तम सुख का सार है वह अनन्तगुण होकर के भी एक समय में अनुभव किए गए सिद्धों के सुख के समान नहीं है। अर्थात् समस्त संसार सुख के अनन्तगुणे से भी अधिक सुख को सिद्ध एक समय में भोगते हैं।
9. मोक्ष की स्थिति कितनी है ?
सादि अनन्त ।
10. अनादि से जीव मोक्ष प्राप्त करते आए हैं तो क्या यह जगत् कभी शून्य हो जाएगा ?
नहीं। जिस प्रकार भविष्यकाल के समय क्रम-क्रम से व्यतीत होने से भविष्यकाल की राशि में कमी होती है तो भी उसका कभी भी अन्त नहीं होता है, न होगा। यह तो साधारण कोई भी प्राणी सोच सकता है। उसी प्रकार जीव के मोक्ष जाने पर यद्यपि जीवों की राशि में कमी आती है, फिर भी उसका कभी अन्त नहीं होता है। सब अतीतकाल के द्वारा जो सिद्ध हुए हैं, उनसे एक निगोद शरीर के जीव अनन्त गुणे हैं। कहा भी है ‘‘एकस्मिन्निगोत-शरीरे जीवाः सिद्धानामनन्त गुणाः’' तो फिर एक निगोद शरीर मात्र में स्थित जीवों को ही मोक्ष जाने में अतीतकाल का अनन्तगुणा काल लग जाएगा। (स.सि., 9/7/809) और अनन्तगुणाकाल अर्थात् 'भूतकाल गुणित अनन्त' आएगा नहीं अतः अन्त होगा नहीं।
11. कितने समय में कितने जीव किस प्रकार से मोक्ष जाते हैं ?
एक समय में जघन्य से एक और उत्कृष्ट से 108 जीव सिद्ध दशा को प्राप्त हो सकते हैं। छ: माह और आठ समय में नियम से 608 ही जीव सिद्ध होते हैं, उससे कम अथवा अधिक नहीं हो सकते हैं। यदि छ: माह का अन्तर पड़ गया तब लगातार आठ समयों में क्रमश: 32,48,60,72,84,96,108 तथा 108 जीव सिद्ध हो सकते हैं। अत: जघन्य से एक समय में एक एवं उत्कृष्ट से छ: माह के अन्तर होने के बाद 8 समय में 608 जीव मुक्त होते हैं। (ति.प.,4/3004)