अथ स्थापना-शंभु छंद
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशचैत्यालयस्थ-सर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशचैत्यालयस्थ-सर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम् । ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशचैत्यालयस्थ-सर्वजिनबिम्बसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम्।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनचैत्यालयस्थ सर्वजिनप्रतिमाभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य-ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधिषोडशजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
(जाप्य-१०८ बार सुगंधित पुष्पों या पीले तंदुलों से करना चाहिए।)
-शंभु छंद-
ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुसंबंधि-षोडशजिनालयस्थ-सर्वजिनबिम्बेभ्यो जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। पुष्पांजलि:।
-दोहा-