[चारित्रमाला व्रत,चन्दनषष्ठी व्रत]
-अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद-
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक-नरेन्द्रछंद-
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
दिव्य पुष्पांजलि:।
-गीताछंद-
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णापंचम्यां श्रीचंद्रप्रभजिनगर्भकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनजन्मकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णासप्तम्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लासप्तम्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (दोहा)-
ॐ ह्रीं श्रीचंद्रप्रभपंचकल्याणकाय पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नम:।
-शंभु छंद-
ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेंद्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।