अथ स्थापना
-गीता छंद-
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अष्टक-गीता छंद
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय निर्वपामीति स्वाहा
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
-रोला छंद-
ॐ ह्रीं भाद्रपदकृष्णासप्तम्यां श्रीशांतिनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपमाीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं पौषशुक्लादशम्यां श्रीशांतिनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (दोहा)-
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथपंचकल्याणकाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय नम:।
-स्रग्विणी छंद-
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।