(कविवर द्यानतरायजी कृत)
-अडिल्ल-
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्म! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्म! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-सोरठा-
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा-मार्दवार्जव-सत्य-शौचसंयम-तपत्यागाकिञ्चन्य-ब्रह्मचर्येति दशलक्षणधर्माय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
'ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय फलं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
अंगपूजा-सोरठा
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं उत्तमआर्जव-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं उत्तमसत्य-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं उत्तमशौच-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं उत्तमसंयम-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं उत्तमतपो-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।'
ॐ ह्रीं उत्तमत्याग-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।'
ॐ ह्रीं उत्तमआकिञ्चन्य-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्य-धर्माङ्गाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
-दोहा-
-वेसरी छंद-
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य, दशलक्षणधर्माय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।