[षोडशकारण व्रत में]
-अथ स्थापना-गीता छंद-
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनासमूह! अत्र मम सन्निहतो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथाष्टकं (चाल-चौबीसों श्रीजिनचंद.....)
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिनगुण-संपद्भ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिनगुण-संपद्भ्यो संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावना-जिनगुणसंपद्भ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिन-गुणसंपद्भ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिन-गुणसंपद्भ्यो क्षुधारोग निवारणाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिन-गुणसंपद्भ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिन-गुणसंपद्भ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिन-गुणसंपद्भ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाजिन-गुणसंपद्भ्यो अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
दिव्य पुष्पांजलि:।
-सोमवल्लरी छंद (चामर)-
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणभावनाभ्यो जयमाला पूर्णार्घंनिर्वपामीति स्वाहा।