-स्थापना-दोहा-
-अडिल्ल छंद-
-दोहा-
ॐ ह्रीं वृषभादिचौबीसतीर्थंकर, अष्ट वर्ग, अर्हंंतादि पंचपद, दर्शनज्ञानचारित्र- रूपरत्नत्रय, चतुर्निकाय देव, चार प्रकार अवधि धारक श्रमण, अष्ट ऋद्धि, चौबीस सूर, तीन ह्रीं अर्हंत बिम्ब, दश दिग्पाल, यन्त्रसम्बन्धी परमदेव समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं वृषभादिचौबीसतीर्थंकर, अष्ट वर्ग,अर्हंंतादि पंचपद, दर्शनज्ञानचारित्र- रूपरत्नत्रय, चतुर्निकाय देव, चार प्रकार अवधि धारक श्रमण, अष्ट ऋद्धि, चौबीस सूर, तीन ह्रीं अर्हंत बिम्ब, दश दिग्पाल, यन्त्रसम्बन्धी परमदेव समूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं वृषभादिचौबीसतीर्थंकर, अष्ट वर्ग, अर्हंंतादि पंचपद, दर्शनज्ञानचारित्र- रूपरत्नत्रय, चतुर्निकाय देव, चार प्रकार अवधि धारक श्रमण, अष्ट ऋद्धि, चौबीस सूर, तीन ह्रीं अर्हंत बिम्ब, दश दिग्पाल, यन्त्रसम्बन्धी परमदेव समूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
(इति स्थापना)
-गीता छंद-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय फलं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय यंत्र-सम्बन्धि-परमदेवाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय वृषभादि-चतुा\वशतितीर्थंकर- परमदेवाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय कवर्गादि शाषासहा हम्ल्व्र्यूं परमयंत्रेभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-कामिनी मोहनी छंद-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय पंचपरमेष्ठी परमदेवाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-सुन्दरी छंद-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-रूपरत्नत्रयाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: भवनेन्द्र व्यंतरेन्द्र ज्योतिषीन्द्र कल्पेन्द्र चतु:प्रकार देवगृहेषु श्रीजिनचैत्यालयेभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: चतु:प्रकारअवधिधारकमुनिभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-भुजंगप्रयात-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रवविनाशन-समर्थेभ्य: अष्टऋद्धिसहिताय मुनिभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-सखी छंद-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: श्री आदि चतुर्विंशतिदेविभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-हंसा छंद-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: त्रिकोणमध्ये तीन ह्रीं संयुक्ताय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-तोमर छंद-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: अष्टादशदोष-रहिताय छियालीस-महागुणयुक्ताय अरहंत-परमेष्ठिने अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-सोरठा-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: दशदिग्पालेभ्य: जिनभक्ति- युक्तेभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थेभ्य: ऋषिमण्डल-सम्बन्धिदेवीदेवेभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-घत्ता-
ॐ ह्रीं सर्वोपद्रव-विनाशन-समर्थाय रोग-शोक-सर्व-संकट- हराय सर्व-शांतिपुष्टिकराय, श्री वृषभादि चौबीस तीर्थंकर, अष्ट वर्ग अरहंतादि पंच-पद, दर्शनज्ञानचारित्र, चतुर्णिकाय देव, चार प्रकार अवधिधारक श्रमण, अष्ट ऋद्धि संयुक्त ऋषि, बीस चार सूर, तीन ह्रीं, अर्हंतबिम्ब, दशदिग्पाल यंत्र संबंधि परमदेवाय जयमाला-पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
-आशीर्वाद-