जैन प्रतिष्ठा ग्रन्थों मे शासन देवताओ का विस्तृत वर्णन्न मिलता है। प्रत्येक तीर्थंकर के सेेवक एक यक्ष और यक्षी माने गए हैं। ये शासन-प्रभावक देवता कहे जाते है। इनका अंकन अनेक तीर्थंकर मूर्तियों के साथ भी मिलता है और इनकी स्वतन्त्र मूर्तियां भी मिलती हैं। प्रतिष्ठा ग्रन्थो मे इनके रूप, आकार, वाहन आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है। इन शासन देवताओं के अतिरिक्त कुछ अन्य देवताओं की भी मूर्तियां उपलब्ध होती है, जैसे सोलह विद्या देवता, नवग्रह, दसदिक्पाल, अष्टमातृका। इन देवताओं के भी उल्लेख जैन प्रतिष्ठा ग्रन्थो मे उपलब्ध होतेहैं।
तीर्थंकर मूर्तियां मौर्य काल तक ही मिलती हैं, लगभग तभी से शासन देवताओं की भीमूर्तियां मिलती हैं। लोहानी पुर (पटना) मे जो मौर्य कालीन तीर्थंकर मूर्ति मिली थी, उसके साथ एक यक्षी-मूर्ति भी उपलब्ध हुई थी। ईसापूर्व प्रथम शताब्दी मे तो तीर्थंकर-मूर्तियों के समान यक्ष-यक्षियों की मूर्तियां भी बहुसंख्या मे बनने लगी थीं। उनके कलागत वैशिष्ट्य के भी दर्शन होते हैं। इसकाल की शासन-देवताओं की अनेक मूर्तियां-उदयगिरि-खण्डगिरि के गुहा-मन्दिरों और मथुरा मे विभिन्न स्थानो पर उत्खनन से प्राप्त हुई हैं। उदय गिरि-खण्डगिरि गुफा समूह मे देविया चतुर्भुजी, अष्टभुजी, द्वादशभुजी, षोडशभुजी, और चतुर्विंशति भुजी मिलती है। मथुरा मे उत्खनन के फलस्वरूप् दशभुजी सरस्वती की मूर्ति मिली हैं।
सातवीं-आठवीं शताब्दी की शासन देवताओं की मूर्तियों की दृष्टिसे एलोरा की गुफाएं अत्यन्त समृद्ध हैं। यहां शासन देवताओ मे चक्रेश्वरी, पद्मावती, अम्बिका, सिद्धयिका यक्षियों की और गोमेद, मातंग और धरणेन्द्र की मूर्तिया अधिक मिलती है। यहां की गुफा नम्बर-30 के बाह्य भाग मे द्वादश भुजी इन्द्र नृत्य मुद्रा मे अंकित है। मूर्ति विशाल है। इन्द्रअलंकार धारण किए हुए है। उसकी भुजाओ पर देवियांनृत्य कर रही हैं। देव समाज वाद्य बजा रहे है। यहां की अनेक मूर्तियों के सिर के ऊपर आम्रगुच्छक है। अम्बिका की मूर्तियों के सिर पर अथ्वा हाथ मे आम्रस्तवक है। एक बालक गोद मे है, दूसरे बालक को हाथ से पकड़े हुए है। यहां की यक्ष-यक्षी की अलंकरण-सज्जा, सुघड़ता और सौन्दर्य की ओर शिल्पी ने विशेष ध्यान दिया है।
नौवी-दसवीं शताब्दी की यक्ष-यक्षियों की मूर्तियो मे कला को अपने उत्कृष्ट रूप मे उभरने का अवसर खजुराहो मे प्राप्त हुआ है। यहां शासन देवताओं की मूर्तिया प्रायः जिनालयों की बाह्य जंघाओ और रथिकाओं की रूप-पट्टि का ओंपर उत्कीर्ण हैं। एक शिल्पी सौन्दर्य की जो ऊंची से ऊची कल्पना कर सकता है, ये मूर्तिया उसकी कल्पना के साकार रूपहैं।
जैना श्रित कला मे तीर्थंकर के समान शासन देवताओं की मूर्तियो का भी प्रचलन रहा है। इसलिए ये प्रायः सभी प्राचीन मन्दिरो और तीर्थंक्षेत्रो पर इनकी पाषाण और धाुतु-प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। ये मूर्तिया तीर्थंकर मूर्तियों के दोनो पाश्र्वो मे अंकित मिलती है और इनकी स्वतंन्त्र मूर्तिया भी मिलती हैं। उपलब्ध यक्ष-मूर्तियो मे गोमेद, धरणेन्द्र और मातंग की मूर्तियां अधिक मिलती हैं। इसी प्रकार यक्षियो मे चक्रेश्वरी, ज्वाला मालिनी, अम्बिका, पद्मावती की मूर्तिया सबसे ज्यादा मिलती है। अम्बिका की ऐसी अनेक मूर्तियां मिलती है, जिनमे देवी के एक हाथ मे आम्र फल है या गोद मे बालक है और एक बालक देवी की उंगली पकड़े खडा है। देवी के सिर पर पद्मावती की मूर्तियो मे पद्मावती सुखासन से बैठी है। उसके सिर पर सर्प-फण है और फण के ऊपर पाश्र्वनाथ तीर्थंकर विराजमान है।
यक्ष-यक्षियों की स्वतन्त्र मूर्तियां तो मिलती ही है, उनके स्वतन्त्र मन्दिर भी मिलते है। जैसे कटनी के समीप विलहरी ग्राम मे सागर के तट पर चक्रेश्वरी का एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। चक्रेश्वरी गरूड़ पर विराजमान है और उनके शीर्ष पर आद्य तीर्थंकर ऋषदेव विराजमान है। इसी प्रकार सतना के निकट पतियान दाई का एक मन्दिर है। एक शिला फलक मे ंचैबीस यक्षियों की मूर्तियां है। मध्य मे अम्बिका विराजमान है तथा दोनो पाश्र्वो मे तीर्थंकर और यक्षी मूर्तियां बनी हुई हैं। यह मूर्ति-फलक आजकल प्रयाग संग्राहलय मे सुरक्षित है। यह शिला फलक 6 गुण 3) है। अम्बिका चतुर्भुजी है। इसके कण्ठ मे हार, मुक्ता माल, बांहो मे भुजबन्द, हाथो मे नागावलि सुशोभित है। केश-विन्यास त्रिवल्यात्मक है। देवी के मस्तक पर भगवान ने मिनाथ का अंकन हैं। कला की दृष्टि से अम्बिका और 23 यक्षियों की इतनी भव्य मूर्ति अन्यत्र कही देखने मे नही आई। संभवतः यह फलक 10-11वीं शतब्दी का है।