'तिलोए सव्वजीवाणं हिदं धम्मोबदेसिणं । वडढमाणं महावीर वंदेहं सब्बवेदिणं ।।
(मैं तीन लोक के समस्त जीवों को हितकर, धोपदेशदाता सर्वज्ञ, वर्धमान महावीर की वन्दना करता हूँ।)
'भूपाल-मौलि-माणिक्यः सिद्धार्थों नाम भूपतिः । कुण्डनाम* पुरस्वामी तस्य पुत्रो जिनोऽवतु ।।
-काव्यशिक्षा, ३१
(कुण्डग्राम नामक नगर के नपति सिद्धार्थ, राजाओं के मुकुटमणि हैं। उनके पुत्र 'महावीर तीर्थकर' हमारी रक्षा करें।)
'देवाधिदेव ! परमेश्वर ! वीतराग ! सर्वज्ञ ! तीर्थकर ! सिद्धि ! महानुभाब ! लोक्यनाथ ! जिनपुंगव ! वर्धमान ! स्वामिन् ! गतोऽस्मि शरणं चरणदयं ते ।
-प्रतिष्ठातिलक, नेमिचन्द्र
(हे देवाधिदेव, हे परमेश्वर, हे वीतराग, हे सर्वज्ञ, हे तीर्थकर, हे सिद्ध, हे त्रैलोक्यनाथ, हे जिनश्रेष्ठ, महानुभाव वर्द्धमान (वृद्धि को प्राप्त महावीर) स्वामिन् ! में आपके उभय चरणों की शरण में प्राप्त हुआ हूँ। मेरा उद्धार कीजिये ।)
वर्द्धमान का जन्म जम्बुद्वीप स्थित भरतक्षेत्र के आर्यखण्डान्तर्गत विदेहदेशस्थ कुण्डग्राम में राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला के गर्भ से हुआ। कवि मनसुखसागर के शब्दों में—
चौपाई
'जम्बूदीप मनोहर सार । भरतक्षेत्र इह अति सुखकार ।। आरजखण्ड विदेह सुदेश । बसैं सुजन सब उत्तम भेष ।। कुण्डलपुर नगरी इक बस । अति अद्भुत सुन्दरता लस" ।। सिद्धारथ नामा भुपती । राज कर राजा समकिती ।। त्रिसला पटरानी मनहार । गुनभित सुभलच्छनधार ।। नई सित नारी पति जदा । इन्द्र अवधि करि जानो तदा ।।
(असंख्यात द्वीप-समद्रों के मध्य) सुन्दर जम्बद्वीप है और उसम सुखकारी भरतक्षेत्र है। भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में विदेह देश है, जिसमें उत्तम वेश के घारक उत्तम जन रहते है। उसमें अति सुन्दर और अद्भत कुण्डलपुर नगरी है। उस नगरी में सिद्धार्थ नाम कसम्यग्दृष्टि राजा राज्य करते थे। राजा के मन को हरण करनेवाली त्रिशला नाम की पटरानी थी जो गणयुक्त तथा शभ लक्षणां की धारक थी। (जम्बूद्वीप यत्र जम्बवृक्षः स्थितः । -सर्वार्थसिद्धि, जम्बुद्वीप में शास्त्र-प्रसिद्ध द्वीप है । जेनेतर पुराणों में भी इसकी प्रसिद्धि है। वंशाली इसी द्वीप की भरतक्षेत्र संबंधी एक नगरी थी। यह धन-जन से पूर्ण और वैशाली गणतंत्र-शासन की केन्द्र-भत थी। इस गणतन्त्र-शासन के नायक राजा 'चेटक' थे । चेटक श्रावक थे। चेटक की अनेक गणवली पुत्रियां थीं। राजा चेटक के सात पुलिया थी। उनमें सब से बड़ी नियकारिणी तदनन्तर मगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलनी (चलना), ज्येष्ठा और अन्तिम चन्दना । सबसे बड़ी का नाम त्रिशला था। त्रिशला का पाणिग्रहण कुण्डलपुर (कुण्डग्राम) के शासक ज्ञातृ-वंशीय क्षत्रिय राजा "सिद्धार्थ" के साथ हुआ था। त्रिशला राजा सिद्धार्य को बहुत प्रिय थीं, जिसके कारण उनका द्वितोय नाम “प्रियकारिणी 1 भी प्रसिद्धि पा चुका था। त्रिशला सर्वगुणसम्पन्ना आदर्श नारी थीं। महारानी के गुणों का वर्णन 'नेति-नेति' अवर्णनीय है।
राजा चेटक और सिद्धार्थ दोनों ही अपने राज्यों को सर्व भांति समद्ध बनाने में दत्तचित्त और निपुण थे। उनके शासन में प्रजा सुखी थी, क्योंकि तत्कालीन उभय राजाओं की राज्य-प्रणालो सर्वतन्त्र-गणतंत्र का अनुसरण करने वाली थी-वहाँ साम्ना ज्यवाद और सामन्तशाही को प्रश्वय नहीं था । वैशाली गणतन्त्र में शासकों की सभा को गणसन्निपात' नाम दिया गया है। मतदान के लिए भो उस समय सभा का आयोजन घोषणापूर्वक किया जाता था और गप्तविधि स शलाकाओं द्वारा अपना 'छन्द (मतदान किया जाता था। राज-सभा में शास्त्र-विहित अंगों का भी पूर्ण समावेश था। किसो विवादग्रस्त विशद विषय के समाधान के लिए सार्वजनिक सभाओं की व्यवस्था भी की जाती थी। राज्य में श्रमण-श्रमणी और श्रावकश्राविकाओं एवं धर्मात्माओ को पूर्ण सम्मान प्राप्त था।