।। भक्तामर - स्तोत्र ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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(वसन्ततिलका - छन्द)
भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा-
मुद्योतकं दलित-पप-तमो-वितनाम्।
सम्यक् प्रणम्य जिन-पादयुगं युगादा-
वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम्।।1।।

यः संस्तुतः सकल-वाड्.मय-तत्व-बोधा-
दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुर-लोक-नाथेः।
स्तोत्रैर्जगत्त्रितय - चित्त हरैरूदारैः
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्।।2।।
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अन्वयार्थ - (भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाणाम्) भक्त देवों के झुके हुए मुकुट संबंधी रत्नों की कान्ति के (उद्योतकम्) प्रकाश करने वाले (दलित-पाप-तमोवितानम्) पापरूपी अन्धकार के समूह को नष्ट किया है जिन्होंने (युगादौ) युग की आदि में (भवजले) संसार समुद्र में (पतताम्) डूबे हुए (जनानाम्) प्राणियों के (आलम्बनम्) सहारे (जिनपादयुगम्) जिनेन्द्र भगवान् के दोनों चरणों को (सम्यक् प्रणम्य) भली भांति नमस्कार करके (यः) जो (सकलवाड्.मयतत्वबोधात्) सम्पूर्ण द्वादशांग वाणी के ज्ञान से (उद्भूत बुद्धिपटुभिः) उत्पन्न हुई बुद्धि की चतुरता के द्वारा (सुरलोकनाथैः) इन्द्रों के द्वारा (जगत्त्रितयचित्तहरैः) तीन लोक के जीवों के मन को हरने वाले (उदारैः) गंभीर (स्तोत्रैः) स्तोत्रों के द्वारा (संतुतः) सम्यक् प्रकार से स्तुति को प्राप्त, (तं) उन (प्रथमं) पहले (जिनेन्द्रम्) आदिनाथ को (किल) निश्चय या आश्चर्य से (अहम् अपि) मैं भी (स्तोष्ये) स्तुति करूंगा।।1-2।।

भावार्थ - सै इन्द्रों के द्वारा जिनके दोनों चरण-कमल पूजित हैं, पाप समूह को नष्ट करने वाले, युग के आदि में संसार-समुद्र में डूबे जीवों को हित का उपदेश देकर निकालने वाले, जिनेन्द्र देव आदिनाथ भगवान् के चरण-कमलों कोनमस्कार कर मैं भी आदिनाथ भगवान् की, गंभीर तीन लोक के जीवों के चित्त को हरने वाली, स्तुति करूंगा, जिनकी स्तुति स्वर्ग के इन्द्रों ने भी मनोहर स्तोत्रों के द्वारा की थी।

प्रश्न - 1 युग की आदि में संसार सागर में डूबे जीवों को सहारा किसने दिया?

उत्तर - युग की आदि में दुखी जीवों को सहारा आदिनाथ भगवान् ने दिया।

प्रश्न - 2 आदिनाथ भगवान कौन थे?

उत्तर - आदिनाथ इस युग के प्रथम तीर्थंकर हैं।

प्रश्न - 3 उन्होंने क्या किया? जिससे जीवों की रक्षा हुई?

उत्तर - आदिनाथ भगवान ने संसार सागर में डूबे जीवों को हित का उपदेश दिया। असि, मसि, कृषि, शिल्प, कला और वाणिज्य षट्कर्मों की शिक्षा दी।

प्रश्न - 4 आदिनाथ भगवान किसके द्वारा वन्दनीय हैं? वे कौन-कौन से हैं?

उत्तर - आदिनाथ भगवान सौ इन्द्रों से वन्दनीय हैं।
100 इन्द्र -- देवों में -- भवनवासियों के 40 इन्द्र
व्यन्तरवासियों के 32 इन्द्र
कल्पवासियों के 24 इन्द्र
ज्यौतिषियों के 2 इन्द्र (सूर्य और चंद्र)
मनुष्यों का एक 1 चक्रवर्ती
तिर्यंचों का 1 अष्टापद
= 100

प्रश्न - 5 आदिनाथ भगवान का जन्म कहां हुआ था? उनके माता-पिता का नाम बताइये?

उत्तर - आदिनाथ भगवान का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ था। उनके पिताजी का नाम नाभिराज था तथा माता जी का नाम मरूदेवी था।

प्रश्न - 6 अदिनाथ भगवान की स्तुति करने का संकल्प कौन कर रहा है?

उत्तर - भक्तामर स्तोत्र में आदिनाथ भगवान की स्तुति करने का संकल्प श्री 108 महामुनिराज ‘मानतुंगाचार्य’ कर रहे हैं।

प्रश्न - 7 स्तुति कहां कर रहे हैं। वे कितने तलों में बन्द थे?

उत्तर - मानतुंगाचार्य धारा नगरी के राजा भोज के द्वारा कैद में डाले गये 48 तालों में बन्द एक कोठरी में यह स्तुति कर रहे हैं।

प्रश्न - 8 आदिनाथ प्रभु के दोनों चरण-कमल कैसे हैं?

उत्तर - ‘दलितपापतमोवितानम्’ आदिनाथ प्रभु के चरण-कमल पाप समूह का नाश करने वाले हैं।

प्रश्न - 9 मानतुंगाचार्य कैसे आदिनाथ की स्तुति का संकल्प करते हैं?

उत्तर - तीन लोकों के प्राणियों के चित्त को हरने वाले गंभीर स्तोत्रों से जो स्तुति किए गये हैं ऐसे आदिनाथ प्रभु की स्तुति करने की प्रतिज्ञा मानतुंगाचार्य ने यहां की है।

प्रश्न - 10युग्म किसे कहते हैं?

उत्तर -

द्वाभ्यां, युग्ममिति प्रोक्तं त्रिभिः श्लोकैर्विशेषकम्।
कलापके चतुर्भिः स्यात्तदूध्र्वं कुलकं स्मृतम्।ं

जहां दो श्लोकों में क्रिया का अन्वय हो उसे युग्म, तीन में हो उसे विशेषकर, चार में हो उसे कलाप और पांच, छह आद में हो उसे कुलक कहते हैं।

प्रश्न - 11भ्क्तामर स्तोत्र किस छन्द में रचा गया है?

उत्तर - भक्तामर स्तोत्र वसन्ततिलका छन्द में रचा गया है।

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