।। भक्तामर - स्तोत्र ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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jain temple419

प्रश्न - 12इस स्तोत्र का नाम भक्तामर क्यों रखा गया?

उत्तर - ‘भक्तामर’ शब्द से प्रारम्भ होने से इसका नाम भक्तामर स्तोत्र रखा गया है।

प्रश्न - 13इसमें किसकी स्तुति की गई है?

उत्तर - इस स्तोत्र में आदिनाथ की स्तुति की गई है। इसीलिए इसका दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है।

अन्वयार्थ - (मुनीश!) है मुनियों के नाथ ! (तथापि) फिर भी (सः अहम्) वह मैं (विगतशक्तिः अपि सन्) शक्ति रहित होता हुआभी (भक्तिवशात्) भक्ति के वश से (तव) आपकी (स्तवनम्) स्तुति (कर्तुम्) करने के लिए (प्रवृत्तः) तैयर हुआ हूं। (मृगी) हिरणी (आत्मवीर्यम् अविचार्य) अपनी श्क्ति का विचार न कर (प्रीत्या) प्रेम के द्वारा (निजशिशोः) अपने बच्चे की (परिपालनार्थम्) पूर्ण रक्षा करने के (किम्) क्या (मृगेन्द्रम् न अभ्येति) सिंह केसामने नहीं जाती? अर्थात जाती है।

भावार्थ - हे भगवन्! जिस प्रकार हिरणी शक्ति नहीं होने पर भी सिर्फ प्रीति से अपने बच्चे की रक्षा के लिए सिंह का सामना करती है उसी प्रकार मैं भी अपनी शक्ति के नहीं रहते हुये भी सिर्फ आपकी भक्ति के वश से आपका स्तवन करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं।

प्रश्न - 1 शक्ति नहीं होने पर भी स्तुति का कारण क्या है?

उत्तर - ‘भक्तिवशात्’ शक्ति नहीं होने पर भी मैं (मानतुंग) आपकी भक्ति के वश से स्तुति करने के लिए तैयार हुआ हूं।

प्रश्न - 2 उदाहरण दीजिये?

उत्तर - जैसे एक हिरणी शक्ति नहीं होने पर भी अपने बच्चे की भक्ति या प्रेमवश सिंह कासामना करती हैवैसी ही मेरी स्थिति है।

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