।। श्रोग निवारण मन्त्र ।।

ऊँ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणां, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।
ऊँ णमो भगवदी सुहदेवयाण वारसंग एब यण। जणणीये सरस्सह ए सव्वबाइणिसवणवणे।
ऊँ अवतर अवतर देवीमम शरीर प्रविश पुछंत स्मपविससत्व जणमय हरीये।
अरहंत सिरिसिरिए स्वाहा।

यह मन्त्र 108 बार लिखकर रोगी के हाथ में रखे, सर्व रोग जाएं।

मस्तक का दर्द दूर करने का मन्त्र

ऊँ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणां, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।
ऊँ णमो णणाय ऊँ णमो दंसणाय ऊँ णमो चरिताय ऊँ ह्मों त्रैलोक्य वश्यं करीह्मीं स्वाहा।

विधि- एक कटोरी में जल लेकर यह मन्त्र उस जल पर पढ़ कर उस जल को जिसके मस्तक में पीड़ा हो, आधा शीशी हो उसे पिला वे तो उसके मस्तक के सर्व रोगजायें।

ताप निवारामन्त्र

ऊँ ह्मीं णमो लोए सव्वसाहूणं।
ऊँ ह्मीं णमो उवज्झायाणं।
ऊँ ह्मीं णमो आयरियाणं
ऊँ ह्मीं णमो सिद्धाणं।
ऊँ ह्मीं णमो अरहंताणं।

जब यह मन्त्र पढ़े पांच वें चरण के अन्त में ‘‘ऐंह्मीं’’ पढ़ता जावे। एक सफेद शुद्ध चद्दर लेकर उसके एक कोने पर यह मन्त्र पढ़ता जावे और गांठ देने की तरह कोण को मोड़ता जावे, 108 बार उस कोण पर मन्त्र पढ़ कर उस में गांठ देवे, वह चद्दर रोगी को उढ़ा देवे। गांठ शिर की तरफ रहे रोगी का बुखार उतरे जिसको दूसरे या चोथे दिन बुखार आता है। इससे हर प्रकार का बुखार जाता है। जब तक बुखार न हटे, रोगी इस चद्दर को ओढ़े रहे।

सतावे तो यह मन्त्र 108 बार मुट्ठी बांध पढ़ कर उसे झाडे। सुबह शाम दोनों समय झाड़ा करे तो भूता दिक जावे, बालक स्त्री अच्दे हो जावें।

नोट - इस मन्त्र के नीचे के चरण में ह्मीं दुष्टान् ठः ठः ठः में दुष्टान् के स्थान पर दुश्मन का नाम जातना हेा तोले या भूता दिक कहे।