चन्द्रार्क-कोटिघटितोज्ज्वल-दिव्य-मूर्ते! श्रीचन्द्रिका-कलित-निर्मल-शुभ्रवस्त्रे! कामार्थ-दाय-िकलहंस-समाधिरूढ़े। वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।11।। देवा-सुरेन्द्र-नतमौलिमणि-प्ररोचि, श्रीमंजरी-निडि-रंजित-पादपद्मे! नीलालके! प्रमदहस्ति-समानयाने!। वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।2।। केयरहार-मणिकुण्डल-मुद्रिकाद्यैः, सर्वांगभूषण-नरेन्द्र-मुनीच्द्र-वद्ये! नानासुरत्न-वर-निर्मल-मौलियुक्ते! वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।33। मंजीरकोत्कनककंकणकिंकणीनां, कांच्यश्र्च झंकृत-रवेण विराजमाने! सद्धर्म-वारिनिधि-संतति-वर्द्धमाने! वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।4।। कंकेलिपल्लव-विनिंदित-पाणियुग्मे! पद्ासने दिवस-पद्मासमान-वक्त्रे! जैनन्द्र-वक्त्र-भवदिव्य-समस्त-भाषे! वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि! ।।5।। अद्र्धेन्दुमण्डितजटाललितस्वरूपे! शस्त्र-प्रकाशिनि-समस्त-कलाधिनाथे! चिन्मुद्रिका-जपसराभय-पुस्तकांड्के! वागीश्वरि! प्रतिदिन मम रक्ष देवि!।।6।। डिंडीरपिंड-मिशंखसिता-भ्रहारे! पूर्णेन्दु-बिम्बरूचि-शोभित-दिव्यगात्रे! चांचल्यमान-गृगशवललाट-नेत्रे! वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।7।।
।। इति श्री सरस्वती नाम स्तोत्रम्।।
श्रुत देवी बारह अंगों से, निर्मित जिनवाणी मानी हैं। सम्यग्दर्शन है तिलक किया, चारित्र वस्त्र परिधानी हैं।। चैदह पूर्वाें के आभरणों से, सुंदर सरस्वती माता। इस विध से द्वादशांग कल्पित, जिनवाणी सरस्वती माता।।1।। श्रुत ‘आचारांग’ कहा मस्तक, मुख ‘सूत्रकृतांग’ सरस्वति का। ग्रीवा है ‘स्थानांग’ कहा, श्री जिनवाणी श्रुतदेवी का।। ‘समवाय अंग’’ व्याख्या प्रज्ञप्ती’, मां की उभय भुजाएं हैं। द्वय ‘ज्ञातृकथांग’ ‘उपासकाध्ययनांग’ स्तन कहलाये हैं।।2।।