।। प्रतिमाधारियों का प्रतिक्रमण ।।

पहली- दर्शन प्रतिमा - 1

हे भगवन्! मैं कृतकर्मों का पश्चातापपूर्वक प्रतिक्रमण करता हूं। यदि मैंने दर्शन प्रतिमा के पालन में जिनोपदृष्टि तत्वों में शंका की हो, शुभाचरण कर संसार सुख की आकांक्षा (निदान) की हो, धर्मात्माओं के मलिन शरीर को देखकर गलानि की हो, मिथ्यामार्ग और उनके सेवनकत्र्ताओं की मन और वचन से प्रशंसा की हो इत्यादि दिवस (रात्रि) संबंधी अतिचार मन, वचन, काय से मैंने किये हों, कराए हो, अन्य को करने में अनुमति प्रदान की हो तत्संबंधी समस्त पापों की आलोचना करता हूं, पश्चाताप करता हूं और मेरे वे पाप मिथ्या हों ऐसी इच्छा करता हूं।

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दूसरी व्रत प्रतिमा -2

हे भगवन् मैं अपने कृतकर्तों का आलोचना पूर्वक पश्चात्ताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी व्रतप्रतिमा के अंतर्गत प्रथम अहिंसाणुव्रत के पालन में जीवों को बाधा दी हो, अंगोपांद छेदा हो, शक्ति से अधिक बोझ लादा हो और अन्नपान का निरोध किया हो इत्यादि अनेक अतिचार व अनाचार मुझसे मन, वचन, काय, कृत, कारित अनुमोदना से लगे हों वे सब मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने कृतकर्मों का आलेचना पूर्वक पश्चात्ताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी प्रतिमा के अंतर्गत स्थूलसत्यव्रत के पालन में मिथ्या उपदेश देने एकांत में कृतक्रिया को प्रकट कर देने, झूठा लेख लिखने, धरोहर हड़प करने, किसी की आकृति या चेष्टा (इशारे) से अभिप्राय समझकर छेद प्रगट कर देने से इत्यादि अनेक प्रकारसे अतिचार व अनाचार मन, वचन, काय और कृत कारित, अनुमोदना से मेरे द्वारा हों, वे सब मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने कृतकर्मों का आलोचना पूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी प्रतिमा के अंतर्गत स्थूल अचैर्यव्रत का पालन करने में मल, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से चोरी का प्रयोग बतलाया हो, चोरी से प्राप्त की हुई वस्तु ग्रहण की हो, राजा की आज्ञा के विरूद्ध कार्य किया हो, तौलने के माप बांट कमती बढ़ती रखे हों और अधिक कीमती वसतु में अल्प कीमती वस्तु मिलकार बेची हो इस प्रकार अनेक दो किए हों, मेरे वे सब दोष मिथ्या हो।

हे भगवन्! मैं अपने व्रत में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी व्रत प्रतिमा के अंतर्गत स्थूल ब्रह्चर्याणुव्रत के पालक में मन, वचन, काय अैर कृत, कारित अनुमोदना से अन्य के पुत्र पुत्रियों का विवाह किया कराया हो, व्यभिचारिणी स्त्री (पुरूष) के घर आना-जाना आदि व्यवहार रखा हो।

वेश्या, कुमारिका और विध्षवा इत्यादि परिगृहीत और अपरिगृहीत सिथ्त्रयों (पुरूषों) के साथ काम वासना का विचार किया हो, कामसेवन के अंगों के सिवाय अन्य अंगों से कामचेष्ट की हो, कामसेवन का तीव्र अभिलाष किया हो इत्यादि अनेक प्रकार के दोष मुझसे बने हों, दूसरे से कराए हों, अन्य के करने में हर्ष माना हो, तो मेरे वे सब पाप मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रतों में लगे हुए दोषों का आलचेनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी प्रतिमा के अंतर्गत स्थूल गृह त्याग व्रत में जीम, घर, बैल, प्रभृति धन, गेहूं आदि धान्य सुवर्णचांदी, जेवरात, दासी-दास, नौकर-’चाकर, वस्त्र और भांड बर्तन इत्यदि समस्त परिग्रह के परिणाम का मैंने मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदन से उल्लंघन किया हो, अन्य से कराया हो, अन्रू के उल्लंघन करने में अनुमति दी हो उस संबंधी मेरे समस्त दोष मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रतों में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। मैंने व्रत प्रतिमा के अंतर्गत गुणव्रत के प्रथमभेद दिग्व्रतनामक व्रत के पालन में ऊध्र्वदिशा की मर्यादा का अतिक्रमण किया हो, नीचे की दिशा की सीमा का अतिक्रमण किया हो तिर्यग्दिशा की मर्यादा का अतिक्रमण किया हो, मर्यादित हो मर्यादित क्षेत्र को बढ़ाया हो अथवा कृत मर्यादा का विस्मरण किया हो इत्यादि अनेक प्रकार के दोष मैंने किये हो, कराए हों, अन्य के करने में अनुमति दी हो तो मेरे वे सब पाप मिथ्या हों।

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हे भगवन्! मैं अपने व्रत में लगे हुए दोषों का आलेचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी व्रतप्रतिमा के अंतर्गत गुणव्रत के दूसरे भेद देश व्रत के पालन करने में मर्यादा किए हुए क्षेत्र के बाहर वस्तु मंगाई हो, मर्यादा के बाहर वस्तु भेजी हो, शब्द आदि की समस्या दिखाकर इशारे से मर्यादा बाह्य का कार्य किया हो, कंकर पत्थर फेंककर अनरू मनुष्य से मर्यादा के बाहर का कार्य कराया हो इत्यादि अनेक दोष मन, वचन, काय से मैंने किए हों, अन्य से कराए हो, अथवा अन्य के दोष करने में अनुमति दी हो, मेरे वे सब पाप मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रतों में लगे हुए दोषों का आलेचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। दूसरी व्रत प्रतिमा का अंतर्गत गुणव्रत के तीसरे भेद अनर्थदंडविरतिव्रत में राग के उदय से हास्यमिश्रित अशिष्ट वचन कहे हों, शरीर की खोटी चेष्टा की हो, बिना प्रयोजन बकवाद किया हो, व्यर्थ के दोड़ धूप के कार्य किए हों प्रयोजन बिना हिंसाजनकव्यापार किया कराया हो। भोगोपभोग की सामग्री आवश्यकता से अधिक (निष्काम) संग्रह की हो इत्यादि अनेक प्रकार के दोष मन, वचन, काय से मैंने किए हों, कराए हों अथवा किसी के दोष करने पर हर्ष प्रदर्शित किया हो तो मेरे वे सब दोष मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रतों में लगे हुए दोषों का आलेचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। व्रत प्रतिमा के अंतर्गत शिक्षाव्रत के प्रथम भोग परिमाणव्रत में स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, ध्राणनेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, श्रोत्रेन्द्रिय इस प्रकार पांच इन्द्रियों के विष्खय भूत भोग पदार्थों के परिमाण में अतिक्रमण मन, वचन, काय द्वारा स्वयं किया हो, अन्य से कराया हो किसी के अतिक्रमण करने में भला माना हो तो मेरे वे सब पाप मिथ्या हों।

हे भगवन्! अपने व्रतों में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। व्रत प्रतिमा के अंतर्गत शिक्षाव्रत के दूसरे भेद उपभोगपरिणामव्रत स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रीत्रेन्द्रिय इस प्रकार पांच इंद्रियों के उपभोग संबंधी पदार्थों के परिमाण का अतिक्रमण मन, वचन, काय से किया हो, कराया हो, अतिक्रमण करने को भला माना हो, तो मेरे वे सब पाप मिथ्या हों।

हे भगवान! मैं अपने व्रत में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। व्रत प्रतिमा के अंतर्गत शिक्षाव्रत के तीसरे भेद अतिथि संविभागनामक व्रत में सचित्त वस्तु में प्रासुक (अचित) पदार्थ रखा हो, सचित्त वस्तु से ढका हो, अन्य का द्रव्य अपना द्रव्य कहकर दान में दिया हो, दान देने में प्रमाद से समय का विच्छेद (उल्लंघन) किया हो, दान देने में अन्य भव्यात्माओं के साथ मान बढ़ाई से द्वेष का मात्सर्ग किया हो इत्यादि अनेक प्रकार के दोष मन, वचन, काय से मैंने स्वयं किए हों, अन्य से कराए हों, किसी को दोष करने में सम्मतिप्रदान की हो तो मेरे वे सब दोष निरर्थक हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रत में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चातप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। व्रत प्रतिमा के अंतर्गत शिक्षाव्रत के चैथे भेद समाधि मरणव्रत पालन में अधिक जीवित रहने की आशा शीघ्रता से मरण की इच्छा, मित्रजनों से प्रेम, पूर्व में भोगे हुए भोगों का स्मरण और व्रत आदिक पालन कर सांसारिक सुख की निदानरूप इच्छा इत्यादि अनेक भावरूप दोष मैंने मन, वचन, काय से स्वयं किये हों, अन्य से कराए हों, किसी के करने में अनुमति प्रदान की हो तो मेरे वे सब दोष मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रत में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। व्रत प्रतिमा के अंतर्गत सामायिक शिक्षाव्रत के पालन करने में पांचों इन्द्रिय के विषयों का चितन किया हो, बातें की हो, शरीर के अंगोंपांग हिलाये हों, नेत्रटंकार, खांसना, छींकना, जंभाई लेना आदि प्रमाद या अज्ञान से किया हो। इत्यादि 12 दोषों में से कोई दोष किया हो, सामायिक के काल में उत्साहपूर्वक सामायिक न किया हो (निद्रा ले ली हो, समय का दुरूपयोग या अविनय किया हो), सामयिक का पाठ भूल गया होऊंगा अन्यथा को इत्यादि अनेक प्रकार के दोष मन, वचन, काय से किया हो, अन्य से कराए हो, अन्य के दोष करने में अनुमुति प्रदान की हो तो मेरे वे सब दोष मिथ्या हों।

हे भगवन्! मैं अपने व्रत में लगे हुए दोषों का आलोचनापूर्वक पश्चाताप ( प्रतिक्रमण ) करता हूं। मैंने शिक्षाव्रत के द्वितीय भेद प्रोष धोपवासशिक्षाव्रत के पालन करने में मूलत्रादिक्षेपण में असावधानी की हो। पूजन के उपकरण आदि को उठाने रखने में असावधानी की हो। बिना देखे चटाई वस्त्र बिछाने, उठाने, रखने में प्रमाद किया हो, व्रत में उत्साहरहित कार्य किया हो, करने योग्य आवश्यक क्रियाओं को भूल गया होऊं इत्यादि अनेक प्रकार के दोष मन, वचन, काय से किये हों, अन्य से कराए हों, करने में अनुमति प्रदान की हो तो मेरे वे दोष मिथ्या हों।

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