|| पंचमेरू विधान ||
ऊँ

--दोहा--

त्रिभुवनपति सन्मति सकल, विश्ववंद्य भगवान्।
जिनके वंदन से मिले, ऋद्धि सिद्धि सुखखान।।1।।

प्रथम सु जंबूद्वीप में, मेरू सुदर्शन नाम।
पूर्व धातकीखं डमें, विजय मेरू सुखधाम।।2।।

अपरधातकीद्वीप में, अचल मेरू अचलेश।
पुष्करार्ध वर पूर्व में, मंदर मेरू नगेश।।3।।

पश्चिम पुष्कर अर्ध में, विद्युन्माली मेरू।
ढाई द्वीप विषे कहे, पावन पांचों मेरू।।4।।

सोलह सोलह जिनभवन, एक एक में जान।
पंचमेरू के ये सभी अस्सी जिनगृह मान।।5।।

भद्रसाल नंदन तथा वन सौमनस सुरम्य।
चैथा पांडुकवन कहा चारों वन अतिरम्य।।6।।

प्रतिवन के चारों दिशी, चार चार जिनगेह।
प्रतिजिनगृह एकांतरा से उपवास करेय।।7।।

चार चार उपवास पर, इक इक बेला जान।
इस विधि से उपवास सब, हो उस्सी परिमाण।।8।।

वन वन प्रति बेला किये, बेला होवे बीस।
पंच मेरू व्रत की कही, उत्तम विधी मुनीश।।9।।

यदि इतनी शक्ति नहीं, करो शक्ति अनुसार।
व्रत की उत्तम भावना, करे भवोदधि पार।।10।।

--दोहा--
व्रतपूर्ण हेयु उद्यापन विधि, हेतू गुरू के सन्निध जाके।
आज्ञा ले आशिष ले करके, निज शक्ति समान करे आके।।
सुवरन चांदी पाषाणादी, से सुन्दर मेरू बनवाओ।।11।।

यदि इतनी शक्ति नहीं हो तो, मेरू विधान पूजन करिये।
आचार्य निमंत्रण विधिवत् कर याजक की आज्ञा शिरधरिये।।
नानारंग चूर्णों से अथवचा नाना विध रंगे चावलों से।
मंडल बनवाओ आति सुंदर, पांचों मेरू चित्रित करके।।12।।

तोरण ध्वज चंद्रोपक घंटा, किंकिणियां छत्र चामरों से।
वसु मंगल द्रव्य कलश माला, पुष्पों कदली स्तंभो से।।
मंडल अत्यर्थ सजा उस पर, रजतादी के मेरू रखिये।
मंडल के मध्य सिंहासनपर, जिनमूर्ति स्थापित करिये।।13।।

सकलीकरणादि विधी करके, इंद्रादि प्रतिष्ठा विधि करिये।
शास्त्रोक्तपूर्वविधि को करके, मंडल पूजा क्रम से करिये।।
इसविधव्रत का निष्ठापन कर, तुम या शक्ति दानादि करो।
चउ विध संघ की पूजा करके, पिच्छी शास्त्रादि प्रदान करो।।14।।

पूजा पुस्तक या अन्य ग्रंथ, छपवाकर ज्ञानदान दीजे।
औषधि आहार अभय देकर, बहु पुण्य उपार्जित कर लीजे।।
जिन मंदिर में उपकरण दान, जीर्णोद्धारादिक भी करिये।
निजशक्ति के अनुरूप धर्म करके, भव भव का संकट हरिये।।15।।

--दोहा--
पंचमेरू व्रत जो करे, पंचकल्याणक पाय।
पंच परावृत नाशकर, पंचमगति को जाय।।
पुष्पांजलिं क्षिपेत्